झारखंड: कभी पुलिस को देख तान देता था बंदूक, आज उन्हीं की वर्दी सिल रहा पूर्व नक्सली

राम पोद्दो लोहरा कभी कुंदन पाहन के दस्ते में हाथों में बंदूक थामे, तो कभी नक्सलियों के लिये वर्दी सीने का काम किया. मैगजीन के कवर सिलने का भी काम किया, मगर आज ये पूर्व नक्सली इन दिनों रांची के न्यू पुलिस लाइन में एक छोटे से पम्प हाउस के कमरे में पुलिस के लिये वर्दी सीने का काम कर रहे हैं.

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राम पोद्दो लोहरा सिलाई का काम करते हुए राम पोद्दो लोहरा सिलाई का काम करते हुए

आकाश कुमार

  • रांची,
  • 16 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 5:11 PM IST
  • पहले नक्सलियों के साथ थामी बंदूक, सिली वर्दियां
  • अब पुलिस की वर्दियां सिलने का काम करते हैं राम पोद्दो
  • साल 2013 में आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में हुए शामिल

झारखंड पुलिस के विरुद्ध उनकी छाती पर बंदूक तानने वाले हाथ, इन दिनों पुलिस लाइन में जवानों के लिए वर्दी सिलने का काम कर रहा है. पूर्व नक्सली राम पोद्दो का हाथ कभी बन्दूक पर चलता था, लेकिन अब सुई धागे से नाता जोड़ लिया है और वो अब पुलिस लाइन में खाकी वर्दी सिल कर अपना परिवार चला रहे हैं.

राम पोद्दो लोहरा कभी कुंदन पाहन के दस्ते में हाथों में बंदूक थामे, तो कभी नक्सलियों के लिये वर्दी सीने का काम किया, मैगजीन के कवर सिलने का भी काम किया, मगर आज ये पूर्व नक्सली इन दिनों रांची के न्यू पुलिस लाइन में एक छोटे से पम्प हाउस के कमरे में पुलिस के लिये वर्दी सीने का काम कर रहे हैं.

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पूर्व नक्सली राम पोद्दो बताते हैं कि एक वो समय था जब वे इसी पुलिस की वर्दी देख कर उसे खून से लाल कर देने की इच्छा रखते थे, मगर आज उसी की वर्दी सिल कर वे अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.

वे बताते हैं कि उस वक्त कैसे हर पल वे पुलिस के डर के साये में जिंदगी जीने को मजबूर थे. हर पल पुलिस के आ जाने का खतरा सताता रहता था. मगर जब से वे 2013 में आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्य धारा से जुड़े हैं, जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी है, अब उन्हें वही पुलिस के लोग अच्छे लगने लगे हैं, साथ ही पुलिस के आईपीएस अधिकारी से लेकर छोटे तबके के कर्मचारी भी उन्ही के पास वर्दी सिलवाने आते हैं.

रांची के ग्रामीण एसपी नॉशाद आलम कहते हैं कि ''एक समय ये सक्रिय नक्सल हुआ करते थे, मगर आज राम पोद्दो बहुत ही अच्छी वर्दी सिलने का काम कर रहे हैं.'' लोहरा जंगल की जिंदगी छोड़ चुके राम पोद्दो लोहरा समाज से भटके लोगों को भी जंगल की जिंदगी छोड़ समाज की मुख्य धारा में लौट कर सुकून की जिंदगी जीने का संदेश दे रहे हैं.

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