पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद LoC से सटे गांवों में डर का माहौल है. बीती दो रातों में पाकिस्तान ने कश्मीर सेक्टर में भारतीय सेना की कई चौकियों पर बिना उकसावे के फायरिंग की है. भारतीय सेना ने भी पाकिस्तानी फायरिंग का मुंहतोड़ जवाब दिया है. राहत की बात ये रही कि अब तक किसी प्रकार की जानमाल की हानि की खबर नहीं है.
इस तनाव भरे माहौल में आजतक की टीम बड़कूट गांव और उरी कस्बे में पहुंची. ये वो इलाके हैं, जो 1990 के दशक से 2003 तक भारी गोलाबारी का सामना कर चुके हैं और 2016 में उरी सेना शिविर पर हमले के बाद एक बार फिर हिंसा की चपेट में आए थे, जिसमें 19 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. स्थानीय लोगों के लिए ये ताज़ा घटनाएं पुराने दर्दनाक दिनों की यादें ताज़ा कर रही हैं, जिन्हें वे पीछे छोड़ चुके थे.
2003 के युद्धविराम समझौते और 2021 में उसके पुनः आश्वासन के बाद LoC पर नाज़ुक शांति स्थापित हुई थी, लेकिन आज वह शांति फिर खतरे में है. 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए थे, जबकि 17 लोग घायल हुए थे, इस आतंकी हमले ने क्षेत्र में बेचैनी के माहौल को बढ़ा दिया है.
श्रीनगर से करीब 100 किलोमीटर दूर बड़कूट, उरी में एलओसी के पास स्थित एक गांव है. यहां आजतक की टीम की मुलाकात मोहम्मद रफीक से हुई, जो भारतीय सेना से 2018 में नायक के पद से रिटायर होकर एक जनरल स्टोर चलाते हैं. रफीक बताते हैं कि पहले पहलगाम हमले और अब बढ़ते सीमा तनाव ने उनकी मानसिक शांति को भंग कर दिया है. उनके घर से पीओके आसानी से दिखाई देता है. उन्होंने कहा कि फिलहाल शांति है, लेकिन सुनते हैं कि हालात बिगड़ सकते हैं. हम चिंतित हैं, क्योंकि हमारे पास बंकर नहीं हैं. अगर कोई फायरिंग भी होती है तो उसकी आवाज यहां तक आती है और हमें नुकसान पहुंचा सकती है. हमारे घर फायरिंग रेंज के भीतर हैं.
'हमारे पास छिपने की भी जगह नहीं'
गांव के एक युवक वसीम अहमद ने कहा कि उम्मीद करते हैं कि हालात न बिगड़ें, क्योंकि हमने पाकिस्तान को नागरिकों को निशाना बनाते देखा है. भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी तनाव हमारे लिए खतरा बन जाता है. हमारे पास छिपने की भी कोई जगह नहीं है.
'चिंता के साथ सरहद की तरफ देखते हैं'
एक बुजुर्ग महिला, जो अपने पोते को गोद में लिए थीं, उन्होंने कहा कि हम दिन-रात चिंता के साथ सरहद की तरफ देखते रहते हैं, हमारे छोटे-छोटे बच्चे हैं. हम सिर्फ यही दुआ करते हैं कि हालात न बिगड़ें.
'गोलाबारी हुई तो सबसे पहले हम झेलेंगे'
शांत और सुरम्य बड़कूट गांव में कुछ समय बिताने के बाद जहां कभी-कभार पक्षियों की चहचहाहट या मवेशियों की आवाज़ ही सुनाई देती है, हम उरी कस्बे की ओर बढ़ते हैं, जो उरी कैंटोनमेंट के पास है. उरी कस्बे में भी लोगों में चिंता का माहौल है. कमलकोट (एलओसी पर स्थित) के रहने वाले वकील मुर्तजा नक़वी कहते हैं कि सीमा पार तनाव का सीधा असर हम पर पड़ता है. अगर हालात बिगड़े और गोलाबारी शुरू हुई, तो सबसे पहले हमें ही झेलना पड़ेगा. 2005 से पहले हमारे पास नागरिक बंकर थे, जो अब लगभग खत्म हो चुके हैं, इसका मतलब है कि हमें बिना सुरक्षा के सहना होगा.
40 हजार की आबादी, महज 2-3 बंकर
एक अन्य स्थानीय निवासी ने कहा कि हम बॉर्डर एरिया के लोग हैं, यहां नागरिक बंकर बेहद कम हैं. 30-40 हजार की आबादी है, लेकिन महज़ 2-3 बंकर ही हैं. फिर भी हमें भरोसा है कि भारत सरकार किसी भी सीजफायर उल्लंघन को रोकने के लिए कदम उठाएगी. हम पहाड़ों के लोग भारतीय सेना के साथ हैं. जम्मू या श्रीनगर के लोग इन हालातों को नहीं झेलते, हम ही मुश्किलें उठाते हैं.
पहलगाम आतंकी हमले की गूंज उरी में भी
पहाड़ों के दोनों ओर यानी पीर पंजाल रेंज के आसपास भी सुरक्षाबलों ने व्यापक तलाशी अभियान शुरू कर दिया है. हालांकि पहलगाम, उरी से 200 किलोमीटर दूर है, लेकिन इस आतंकी हमले की गूंज अब उरी जैसे एलओसी के कस्बों तक महसूस की जा रही है. एक बार फिर एलओसी पर हालात नाजुक हो चले हैं और इतिहास गवाह है कि सबसे पहले और सबसे ज्यादा दर्द वे मासूम ग्रामीण सहते हैं, जो इन दुर्गम इलाकों को अपना घर कहते हैं.
कमलजीत संधू