The Kashmir Files फिल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है. फिल्म 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुए अत्याचार और विस्थापन के मंजर को दिखाती है. फिल्म एक जन आंदोलन बनती नजर आ रही है. फिल्म के चलते एक बार फिर लोगों का ध्यान कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर पड़ा है. कश्मीरी पंडितों के लिए लोगों के मन में भावनाएं उमड़ पड़ी हैं. यहां तक लोग सिनेमा घरों से रोते हुए बाहर निकल रहे हैं. इतना ही नहीं मोदी सरकार ने भी फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री के प्रयासों की तारीफ की है.
भले ही सरकार दावा करती हो कि उसने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के दर्द को कम करने के लिए तमाम कदम उठाए हैं. लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नजर नहीं आता. पिछले साल जम्मू कश्मीर प्रशासन ने एक पोर्टल लॉन्च किया था, जिसमें कश्मीरी पंडित घाटी में अपनी अवैध कब्जे वाली प्रॉपर्टी को लेकर शिकायत दर्ज कर सकते हैं. सरकार का दावा है कि सैकड़ों कश्मीरी पंडितों को उनकी संपत्ति वापस मिल गई. लेकिन कश्मीरी पंडितों का कहना है कि उनकी शिकायत पर संतोषजनक कार्रवाई नहीं हुई है.
इन सबके बीच इंडिया टुडे ने कुछ ऐसे कश्मीरी पंडितों से बात की, जो अभी दिल्ली-एनसीआर में रह रहे हैं और घाटी में वापस लौटना चाहते हैं, लेकिन किन्हीं वजहों से उन्हें वापस जाने में परेशानियों का सामना उठाना पड़ रहा है.
सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं कश्मीरी पंडित
अश्विनी कचरू अपने परिवार के साथ ग्रेटर नोएडा में रहते हैं और एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते हैं. अश्विनी का दावा है कि जनसांख्यिकीय में भारी अंतर कश्मीरी पंडितों के घाटी में न लौटने की प्रमुख वजह है. उन्होंने कहा, यही वजह है कि हम हमेशा से रहने के लिए सुरक्षित स्थान की मांग करते रहे हैं.
अश्विनी ने कहा, न केवल कश्मीरी हिंदुओं के लिए, बल्कि सिखों और अन्य समुदाय के लिए गेटेड सिक्योर सोसाइटी बनाई जानी चाहिए. इतना ही नहीं जो मुस्लिम हिंदुओं की वापसी का समर्थन करते हैं, उन्हें भी इनमें रहने के लिए बुलाया जाना चाहिए. इससे एक बहुसांस्कृतिक सोसाइटी का निर्माण होगा और कश्मीर में हिंदुओं की वापसी का रास्ता खुल सकेगा.
अश्विनी ने कहा, इसस पहल से लोगों के माइंडसेट में परिवर्तन आएगा और युवाओं की कट्टरता को भी खत्म किया जा सकता है. इसके अलावा सरकार को एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करना होगा, उन लोगों के लिए जो भारतीय संविधान और बहुसंस्कृतिवाद में विश्वास करते हैं.
वहीं, पवन भट्ट जो गुरुग्राम में MNC में जॉब करते हैं, वे भी उन लोगों में शामिल हैं, जो पलायन के वक्त घाटी छोड़कर दिल्ली-एनसीआर आ गए. वे अपने परिवार के साथ यहीं रहते हैं. भट्ट के मुताबिक, वे घाटी में वापस लौटना चाहते हैं. लेकिन माहौल अनुकूल होना चाहिए.
भट्ट के मुताबिक, यह संभव नहीं है कि जिन लोगों ने 30 साल पहले घाटी को छोड़ दिया था, उन्हें उनके घरों में फिर भेज दिया जाए. भट्ट कहते हैं इतने सालों में कश्मीरी मुस्लिमों की ऐसी पीढ़ी बड़ी हो गई है, जिन्होंने कभी अपने पास में कश्मीरी पंडितों को बसे हुए नहीं देखा. उन्हें उस संस्कृति के बारे में जानकारी भी नहीं है, जिसे हिंदू-मुस्लिमों ने सैकड़ों सालों तक सांझा किया है. ऐसे में क्या ये लोग, जिन्होंने हमें देखा तक नहीं, वे हमें स्वीकार करेंगे.
भट्ट ने कहा, दूसरी प्रमुख वजह है जो कश्मीरी पंडितों को घाटी में जाने से रोक रही है, वह है बंदूक...सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां किसी के पास बंदूक न हो. बिना किसी कानूनी वजह के किसी के पास बंदूक न हो. कश्मीरी पंडितों ने बंदूक की वजह से ही घाटी छोड़ी थी.
गुरुग्राम में MNC वर्कर सुनील कचरू ने कहा, घाटी में अब बहुसांस्कृतिक सोसाइटी की जरूरत है. अगर कोई कश्मीर जाना चाहता है और वहां एक महीने भी रहना चाहता है, तो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की जरूरत है. प्रवासियों के तौर पर निवेशकों को बुलाने की जरूरत है और उनके हितों की सुरक्षा सरकार को सुनिश्चित करनी चाहिए. जब कश्मीरी मुस्लिमों को दूसरी संस्कृति देखने को मिलेगी, तो कश्मीरी पंडितों का घाटी में लौटना आसान होगा.
'संपत्ति वापस लेने में भी आ रहीं अड़चनें'
घाटी से विस्थापित हो चुके कश्मीरी पंडित राजिंदर गंजू ने बताया कि जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा पोर्टल की लॉन्चिंग कश्मीरी पंडित समुदाय को उनकी संपत्ति वापस दिलाने की दिशा में अहम कदम है. राजिंदर गंजू दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग से पहलगाम के रहने वाले थे. उन्होंने बताया कि मेरे दादा ने हमारे लिए घर बनाने के लिए कुछ संपत्ति ली थी. 1982 में मेरे पिता के नाम पर यह संपत्ति कानूनी रूप से हो गई. लेकिन मैं यह देखकर चौंक गया कि कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के साथ ही 1989 में संपत्ति पर कब्जा कर लिया गया. राजस्व अधिकारियों की मदद से फर्जी दस्तावेज बना लिए गए. ऐसे में अगर अब मैं अपनी संपत्ति चाहता हूं, तो अब पोर्टल से मुझे मदद कैसे मिलेगी?
उन्होंने कहा, अब केस करना और फिर हर दिन मामले की सुनवाई में शामिल होना हममें से कुछ लोगों के लिए एक कठिन काम है, जो 1989-90 के बाद से घाटी नहीं लौटे. उन्होंने कहा, कब्जा करने वाले पर स्वामित्य साबित करने का अब कोई दबाव नहीं है. बल्कि सही मालिक को केस करके स्वामित्य सिद्ध करना होगा. राजिंदर अकेले कश्मीरी पंडित नहीं हैं, जो राजस्व अधिकारियों पर रिकॉर्ड में छेड़छाड़ करने का आरोप लगा रहे हैं. इसी तरह से श्रीनगर के निवासी राजेश भट्ट और जवाहर लाल ने भी आरोप लगाए हैं.
जवाहर लाल और राजेश भट्ट ने कहा, हमारी जमीन पर 1990 में कब्जा कर लिया गया था. उस वक्त बेइमान अधिकारियों ने उनकी मदद की. राजस्व अधिकारियों ने दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की. हमने पोर्टल पर शिकायत दर्ज की है. मौजूदा डिविजनल कमिश्नर ने इस मामले को AGR कमिश्नर के पास भेजा है, और उन्हें राजस्व अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. उन्होंने संपत्ति की वापसी के लिए भी कार्रवाई करने के लिए कहा है.
रिकॉर्ड के मुताबिक, ट्रिब्यूनल कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला किया. अभी जमीन सरकार के कब्जे में हैं. अभी केस हाईकोर्ट में चल रहा है. लेकिन हम नहीं जानते कि अभी हमें जमीन पाने के लिए कितनी कानूनी बाधाओं से निपटना पड़ेगा.
अभिषेक आनंद