पाकिस्तान को एक और झटका! चिनाब नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को मिली रफ्तार, भारत ने जारी किया ग्लोबल टेंडर

भारत की प्रमुख केंद्र-स्वामित्व वाली एजेंसी नेशनल हाइड्रोपावर कॉरपोरेशन (NHPC) ने 29 जुलाई को जम्मू और कश्मीर में चिनाब नदी पर 1,856 मेगावाट के सावलकोट हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिए ग्लोबल टेंडर मांगे हैं. रामबन जिले के सिद्धू गांव के पास स्थित सावलकोट जलविद्युत परियोजना, 900 मेगावाट की बगलिहार परियोजना को पीछे छोड़ते हुए, जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना बनने की ओर अग्रसर है.

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चेनाब नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के काम में तेजी आई है (फाइल फोटो- ITG) चेनाब नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के काम में तेजी आई है (फाइल फोटो- ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 5:48 PM IST

सिंधु जल संधि (IWT) को स्थगित करने के कुछ महीनों बाद भारत अब चिनाब नदी पर लंबे समय से अटके हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसकी परिकल्पना छह दशक पहले की गई थी, लेकिन पाकिस्तान के साथ इसी संधि के कारण यह परियोजना रुकी हुई थी. भारत ने एक ग्लोबल टेंडर जारी किया है, जो सिंधु जल प्रणाली पर उसकी रणनीति में एक निर्णायक बदलाव को दर्शाती है.

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हाइड्रोपावर विकास के लिए भारत की प्रमुख केंद्र-स्वामित्व वाली एजेंसी नेशनल हाइड्रोपावर कॉरपोरेशन (NHPC) ने 29 जुलाई को जम्मू और कश्मीर में चिनाब नदी पर 1,856 मेगावाट के सावलकोट हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के लिए ग्लोबल टेंडर मांगे हैं.

बता दें कि पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद अप्रैल में सिंधु जल संधि (IWT) के निलंबन के बाद भारत अब अपनी हाइड्रोपावर क्षमता को अधिकतम करने के लिए पश्चिमी नदी, जो पहले संधि के तहत पाकिस्तान को आवंटित थी, का पूरी तरह से इस्तेमाल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

सावलकोट हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का विकास जुलाई में पर्यावरण मंत्रालय के पैनल द्वारा इसकी स्वीकृति और इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना के रूप में नामित किए जाने के बाद हुआ है, जिससे एनएचपीसी 29 जुलाई को 200 करोड़ रुपये का टेंडर जारी कर सकी, जिससे लालफीताशाही कम हुई और निर्माण के लिए मंज़ूरी में तेजी आई.

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जम्मू और कश्मीर में रामबन और उधमपुर जिलों के बीच चिनाब नदी पर सावलकोट जलविद्युत परियोजना के प्रस्तावित स्थान को दर्शाता मानचित्र (स्रोत: एनएचपीसी डीपीआर)

सिंधु जल संधि के कारण रुका था काम

सिंधु जल संधि (IWT) के पालन ने भारत को पश्चिमी नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब, के गैर-उपभोग्य उपयोग तक सीमित कर दिया था. इस संधि ने इन तीन नदियों पर भंडारण-आधारित या बड़े पैमाने पर सिंचाई परियोजनाएं बनाने की भारत की क्षमता को सीमित कर दिया. परिणामस्वरूप, पश्चिमी नदियों पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को नदी के बहाव पर आधारित होना अनिवार्य कर दिया गया, जिसका मतलब है कि वे बड़ी मात्रा में पानी का भंडारण नहीं कर सकते थे.

इससे पहले, सिंधु जल संधि (IWT) के तहत भारत को किसी भी प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले पाकिस्तान को छह महीने का नोटिस देना अनिवार्य था. हालांकि, अब संधि स्थगित होने के कारण यह आवश्यकता लागू नहीं रहेगी और डेटा साझाकरण भी बंद हो जाएगा.

गौरतलब है कि सवालकोट, किशनगंगा और बगलिहार जैसी परियोजनाएं, जो सभी पश्चिमी नदियों या उनकी सहायक नदियों पर स्थित हैं, अक्सर पाकिस्तान की आपत्तियों का सामना करती रही हैं, जबकि इनमें सीमित मात्रा में पानी संग्रहित होता है और ये मुख्य रूप से बिजली उत्पादन के लिए डिज़ाइन की गई हैं.

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अब, सवालकोट परियोजना को तेज़ी से आगे बढ़ाने के फैसले के साथ-साथ भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित रखने और मौजूदा बांधों से पानी के प्रवाह को प्रतिबंधित करने की रिपोर्टों को, पाकिस्तान के संबंध में भारत की जल रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जो कृषि और जलविद्युत के लिए सिंधु बेसिन पर बहुत अधिक निर्भर है.

चिनाब नदी पर बनी सवालकोट जलविद्युत परियोजना, जो एक रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है, की अनुमानित लागत दो चरणों में 22,704 करोड़ रुपये है। (फोटो: एनएचपीसी)

जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना बन जाएगी सावलकोट

रामबन जिले के सिद्धू गांव के पास स्थित सावलकोट जलविद्युत परियोजना, 900 मेगावाट की बगलिहार परियोजना को पीछे छोड़ते हुए, जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना बनने की ओर अग्रसर है. 1960 के दशक में केंद्रीय जल आयोग द्वारा परिकल्पित, यह परियोजना सिंधु जल संधि प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक संवेदनशीलताओं के कारण निष्क्रिय रही. राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) ने हाल ही में इसके निर्माण के लिए एक ई-निविदा जारी की है, जिसके लिए बिड 10 सितंबर, 2025 तक जमा करनी होंगी.

इस परियोजना में 192.5 मीटर ऊंचा रोलर-कॉम्पैक्टेड कंक्रीट ग्रेविटी बांध शामिल होगा, जिसे पश्चिमी हिमालय में चिनाब नदी के उच्च-वेग प्रवाह का दोहन करने के लिए एक रन-ऑफ-द-रिवर योजना के रूप में डिज़ाइन किया गया है. हिमरेखा से ऊपर अपने 10,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक जलग्रहण क्षेत्र के साथ, चिनाब नदी अपार जलविद्युत क्षमता प्रदान करती है, जिसका अनुमान पूरे क्षेत्र में 150,000 मेगावाट से अधिक है.

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इस परियोजना का पुनरुद्धार, सिंधु जल संधि (IWT) के निलंबन के बाद, जिसे कई विशेषज्ञों ने एकतरफ़ा करार दिया था, ऊर्जा आत्मनिर्भरता और पश्चिमी नदियों के संसाधनों से जल पर रणनीतिक नियंत्रण के लिए भारत के प्रयासों के अनुरूप है.

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