दिग्गज साहित्यकार रामदरश मिश्र अपने ही शताब्दी उत्सव में चीफ गेस्ट, DU के खालसा कॉलेज में भव्य समारोह

मशहूर साहित्यकार डॉक्टर प्रोफेसर रामदरश मिश्र ने कविता, उपन्यास, कहानियां, यात्रा वृत्तांत, आलोचना, रिपोर्ताज, डायरी, संस्मरण, साक्षात्कार, ललित निबंध और आत्मकथा लिख चुके हैं.

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प्रोफेसर डॉक्टर रामदरश मिश्र प्रोफेसर डॉक्टर रामदरश मिश्र

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 9:44 AM IST

हिंदी साहित्य की दिग्गज शख्सियत प्रोफेसर डॉक्टर रामदरश मिश्र उम्र के अहम पड़ाव पर हैं. 101वें साल में कदम रख चुके शताब्दी के सहयात्री रामदरश मिश्र अपने ही शताब्दी समारोह के मुख्य अतिथि बनाए गए हैं. सौ साल पहले जिंदगी का सफर शुरू कर पथ के गीत गाते हुए यशस्वी शताब्दी साहित्यकार प्रोफेसर डॉक्टर रामदरश मिश्र के 101वें साल का उत्सव देश की राजधानी में दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीगुरु तेगबहादुर खालसा कॉलेज में हो रहा है. 

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सोमवार से शुरू होने वाले इस दो दिवसीय समारोह में खुद 101 वर्षीय हरफनमौला साहित्यकार डॉक्टर रामदरश मिश्र भी मौजूद रहेंगे. उत्सव में उनके स्वागत सत्कार में पद्म सम्मान अलंकृत साहित्यकारों सहित उनके चाहने वालों की पूरी दुनिया होगी.

इस प्रोग्राम में पद्म भूषण सरदार तरलोचन सिंह, पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा और पद्मश्री प्रोफेसर हरमोहिंदर सिंह बेदी के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री और लेखक रमेश पोखरियाल निशंक भी होंगे. इस उत्सव में डॉक्टर मिश्र की लेखनी से साहित्य की तमाम विधाओं में हुई रचनाओं पर चर्चा की जाएगी.

कई विधाओं में रचनाएं

मशहूर साहित्यकार डॉक्टर प्रोफेसर रामदरश मिश्र ने कविता, उपन्यास, कहानियां, यात्रा वृत्तांत, आलोचना, रिपोर्ताज, डायरी, संस्मरण, साक्षात्कार, ललित निबंध और आत्मकथा लिख चुके हैं. इतना कुछ लिखा है, जिस पर दो दिनों में कई सत्रों तक चर्चा होगी. देश-विदेश के विद्वान साहित्यकार, छात्र और शिक्षक इनमें हिस्सा लेंगे.

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रामदरश मिश्र ने 32 कविता संग्रह, 30 कथा संग्रह, 15 उपन्यास, साहित्य आलोचना के 15 ग्रंथों के अलावा बहुत कुछ लिखा है, जिस पर अगली सदी के बाद तक भी चर्चा होती रहेगी. उन्होंने अपनी पहली कविता 1941 में लिखी थी. इसके बाद 85 वर्ष लगातार छपते-छपाते छपाक से कभी बूंद-बूंद नदी से बहते तो कभी पानी के प्राचीर बनाते हुए निकल गए.

पथ का गीत गाते चले रामदरश मिश्र के सफर में बैरंग बेनामी चिट्ठियां भी पैगाम लाती रही और कभी कंधे पर सूरज तपा तो कभी धूप पक गई. कभी वो लम्हे भी आए कि हंसी होठों पर आंखें नम हुईं, तो बारिश में भीगते बच्चों ने मन मोह लिया. उन्होंने महानगर में रहते हुए अपने गांव को जिया क्योंकि छोटे-छोटे सुख सदा साथ रहे. 

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