इजरायल और हमास की जंग का आज 19वां दिन है. इस बीच केद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से सवाल पूछा गया कि क्या ऐसे समय संयुक्त राष्ट्र अधिक प्रतिनिधिक (और ज्यादा प्रतिनिधियों वाला) बन सकता है. इस सवाल पर केंद्रीय मंत्री ने जवाब देते हुए संयुक्त राष्ट्र की लाचारियों को उजागर किया. उन्होंने कहा कि आज दुनिया में सैकड़ों कनफ्लिक्ट चल रहे हैं. ऐसे समय में सुरक्षा परिषद पंगू (paralysed) बन गई है. सिक्योरिटी काउंसिल को अब भारत की जरूरत है. विश्व में बहुत कम ऐसे देश हैं, जिनमें भारत जितनी शक्ति और समार्थ्य है.
उन्होंने आगे कहा कि संयुक्त राष्ट्र के लिए एक कहावत है कि जब तक संकट नहीं होता, तब तक कुछ बदलता नहीं है. आज दुनिया में सैकड़ों संघर्ष हो रहे हैं. क्या इनमें से किसी ने भी यूएन सिक्योरिटी काउंसिल से सेना के इस्तेमाल की इजाजत ली? नहीं ली.
बता दें कि हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए खुलकर अपना समर्थन जताया था. राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि भारत यूएनएसी का स्थायी सदस्य होना चाहिए. रूसी राष्ट्रपति ने पश्चिमी देशों पर निशाना साधते हुए कहा था कि यह हर उस देश को दुश्मन के रूप में पेश कर रहे हैं, जो आंख बंद करके इनके पीछे-पीछे चलने के लिए तैयार नहीं हैं. एक समय पर इन्होंने भारत के साथ भी ऐसा करने की कोशिश की थी.
पुतिन ने आगे कहा था कि पीएम नरेंद्र मोदी की सराहना करते हुए कहा कि भारतीय नेतृत्व स्व-निर्देशित है, यानी बिना किसी दबाव और झुकाव के काम कर रही है. भारतीय नेतृत्व राष्ट्रीय हितों को साथ लेकर आगे बढ़ रहा है. इसलिए उनकी (पश्चिमी देश) कोशिशों का कोई मतलब नहीं बनता है. लेकिन वो फिर भी कोशिश कर रहे हैं. वो अरब देशों को भी दुश्मन की तरह पेश करने की कोशिश कर रहे हैं.
क्या है यूएनएससी में स्थायी सदस्यता का अर्थ
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्यता दो तरह से होती है. एक है स्थाई और एक अस्थाई. सिर्फ पांच देश ऐसे हैं, जो इस परिषद के स्थायी सदस्य हैं. उन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन शामिल है. इसके अलावा यूनएससी में 10 ऐसे देश सदस्य होते हैं, जो हर दो साल में बदल जाते हैं. भारत आठ बार यूएनएसी का अस्थायी सदस्य रह चुका है.भारत पिछले काफी समय से पक्की सदस्यता के लिए जोर लगा रहा है. भारत को कई देशों का समर्थन भी है. यूएनएससी में स्थायी सदस्य होने का काफी फायदा भी है. एक तरह से कह सकते हैं कि यह देश इस समूह के कर्ता-थर्ता होते हैं. यही देश तय करते हैं कि दो साल की अस्थायी मेंबरशिप के लिए किन देशों को बुलावा भेजा जाना चाहिए और किन्हें जगह नहीं मिलनी चाहिए.
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