दिल्ली नगर निगम के शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षक दिवस के अवसर पर गुरुवार को सिविक सेंटर में निगम शिक्षक सम्मान समारोह 2024 का आयोजन किया गया. यहां पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि हमारे देश में शिक्षकों की सैलरी एक आईएएस या कैबिनेट सेक्रेटरी से अधिक होनी चाहिए. अगर हमें 2047 में विकसित भारत का सपना सच करना है तो यह कदम इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा. इसके अलावा सिसोदिया ने अमेरिका, जापान, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि इन देशों में शिक्षकों का वेतन वहां के सबसे बड़े नौकरशाह से भी अधिक है. लिहाजा हमें विकसित भारत के निर्माण के लिए शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे.
इस दौरान मनीष सिसोदिया ने जेल का अनुभव साझा करते हुए कहा कि पिछले दिनों जब मेरी जिंदगी में विषम परिस्थिति आईं तो उसे मैंने एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया. राजनीतिक जीवन में पढ़ने का मौका नहीं मिल पाता था, लेकिन जब मुझे पढ़ने का समय मिला तो उसे ही चुनौती के तौर पर स्वीकार कर लिया और मैंने डेढ़ साल तक 8-10 घंटे तक रोज पढ़ा. इसमें भी सबसे ज्यादा दुनिया और भारत की प्रचीन व वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के बारे में पढ़ा, आज दुनिया कहां खड़ी है? अगर हम इतिहास पढ़ाते हैं तो नेताओं के नजरिए पढ़ाते हैं. किसने कौन सी पॉलिसी लागू की, कौन सा आंदोलन हुआ आदि पढ़ाते हैं. मुझे लगता है कि शिक्षकों को इतिहास को शिक्षा के नजरिए से भी देखने की जरूरत है, तभी हम आगे बढ़ पाएंगे और देश को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कर पाएंगे.
2047 को देखते हुए शिक्षा की नींव रखनी होगी
मनीष सिसोदिया ने कहा कि आजकल 2047 के भारत की बहुत बात हो रही है. जब मैं दिल्ली सरकार में था, तब कई बार बजट पेश किया और वहां भी रखा कि हम 2047 की नींव रख रहे हैं, शिक्षकों के साथ बात करता था. हमारे प्राइमरी के शिक्षकों के पास जो बच्चे हैं, वो 2047 के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. इन बच्चों की उम्र 3 से 10 वर्ष के बीच है. 2047 तक बच्चों की उम्र लगभग 30 साल की होगी. 2047 का भारत कैसा होगा, उसकी नींव आज हमारे प्राइमरी के शिक्षकों के हाथ में है.
आज हमारे प्राइमरी के शिक्षक 2047 के भारत की एक-एक नींव रख रहे हैं. इतनी विषम परिस्थितियों में हम बच्चे को कैसा पढ़ा पा रहे हैं, जहां शिक्षा के प्रति पारिवारिक स्वीकृति और सोच का भी बहुत फर्क पड़ता है. 2047 के भारत में 30-25 साल का जो बच्चा होगा, वो आज स्कूलों मे हैं उस बच्चे को जैसा तैयार कर रहे हैं, वैसा 2047 का भारत होगा. 2047 के भारत का निर्माण कोई नेता या अधिकारी नहीं, बल्कि शिक्षक कर रहे हैं, हम सब लोग मात्र इसमें सहयोगी हैं.
शिक्षकों की सैलरी नौकरशाहों से ज्यादा होनी चाहिए
मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली के शिक्षा विभाग में भी मैंने कई बार यह बात कही थी कि शिक्षक का काम बच्चों की जिंदगी की गाड़ी को टेक-ऑफ कराना है, हमारे टीचर उसके पायलट हैं. इसलिए बच्चों की जिंदगी की गाड़ी को ठीक से टेक ऑफ कराइएगा, ताकि 2047 में भारत की ठीक से लैंडिंग हो सके. जिन विकसित देशों की तरफ हम बड़ी उम्मीद से देखते हैं, उनकी जड़ में टीचर बैठा हुआ है, वहां शिक्षा काम बैठा हुआ है. मैं किसी देश की शिक्षा पॉलिसी वकालत नहीं कर रहा हूं, लेकिन हम उदाहरण के तौर ले सकते हैं कि कैसे हमें दुनिया के शिक्षा के इतिहास को देखना पड़ेगा. विकास के मामले में अमेरिका की दुनिया बात कर रही है. वह अमेरिका ने 1890 में सभी लड़कियों को स्कूल भेजने का लक्ष्य हासिल कर लिया था. हमने 1911 में शिक्षा कानून बनाया, जापान में सबको शिक्षा का अधिकार कानून 1903 लागू हो गया था.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि 40-50 साल पहले सिंगारपुर बहुत पिछड़ा हुआ देश था, मलेशिया से आजाद हुआ था. उसके प्रधानमंत्री ने पहले टीवी साक्षात्कार में रो पड़े थे. वो बोले थे कि हमारे पास खाने-पीने, खदान, खेती की जमीन नहीं है, हम क्या करेंगे. उस वक्त सिंगापुर के प्रधानमंत्री ने संकल्प लिया कि हम सभी को पढ़ाएंगे और उन्होंने ऐसा किया. उन्होंने एक नियम बनाया कि ग्रेजुएट महिलाओं को मां बनने पर कई तरह के इंसेंटिव दिए जाएंगे. इसके बाद सारी लड़कियां ग्रैजुएट होने लगीं. पढ़े-लिखे ग्रैजुएट मां-बाप के जो बच्चे पैदा हुए, उससे एक नया सिंगापुर खड़ा हुआ. मैं यह नहीं कह रहा कि सिंगापुर के आगे बढ़ने में सिर्फ यही एक फैक्टर था, लेकिन जिन देशों को हम प्रगतिशील के तौर पर देख रहे हैं और वहां अपने बच्चों को पढ़ाने, नौकरी करने के बारे में सोचते हैं, उन सब देशों की बुनियाद में शिक्षक हैं.
विकसित देशों में शिक्षकों की सैलरी अधिकारियों से ज्यादा
मनीष सिसोदिया ने कहा कि दुनियाभर के विकसित देशों की एक खास बात यह भी है कि वहां शिक्षकों की सैलरी किसी भी अधिकारियों से अधिक होती है. भारतीय संदर्भ में देखे तो विकसित देशों में टीचर की सैलरी आईएएस अधिकारियों से अधिक होती है. पांच साल पुराना टीचर, पांच साल पुराने आईएएस से अधिक सैलरी ले रहा है. कई देशों में ऐसी व्यवस्थाएं हैं. हम 2047 के भारत की बात करते हैं, तो देश के विमर्श में यह बात आनी चाहिए. पॉलिस बनाने वाले को आज की जरूरत के अनुसार पॉलिसी बनानी होगी.
ऐसे ही 2047 का विकसित भारत नहीं बन पाएगा. 2047 का विकसित भारत बनाने के लिए हमें भी प्रोग्रेसिव कदम उठाने पड़ेंगे. जर्मनी में एक टीचर की औसत सालाना सैलरी 72 लाख रुपये है और वहां के सबसे बड़े नौकरशाह की सैलरी 71 लाख रुपये है. स्विट्जरलैंड में टीचर की सैलरी 71 लाख और सबसे बड़े नौकरशाह की सैलरी 64 लाख रुपये है. ये देश इसलिए भी आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि वो अपने टीचर्स में निवेश कर रहे हैं. अमेरिका में एक टीचर की औसत सालाना सैलरी 46-60 रुपये है और भारत में 12-15 लाख रुपये ही है.
आईएएस की तुलना में एक टीचर की सैलरी अधिक होनी चाहिए
मनीष सिसोदिया ने कहा कि एक भारतीय होने के नाते कहना चाहता हूं कि अगर हमें 2047 के विकसित भारत की नींव रखनी है और टीचर्स से उसके क्लासरूम से 2047 के भारत के निर्माण की अपेक्षा करनी है, तो हमें यह निर्णय लेना पड़ेगा कि हमारे देश में भी टीचर्स की सैलरी किसी भी अधिकारी से सबसे ज्यादा होनी चाहिए. एक आईएएस डीएम बन जाता है, डीएम एक आईएएस ही बनेगा, लेकिन पांच साल के एक आईएएस की तुलना में एक टीचर की सैलरी अधिक होनी चाहिए.
हमारे देश में एक आईएएस अधिकारी की 30-35 साल में सेक्रेटरी या कैबिनेट सेक्रेटरी बन जाते हैं. आज भारत को अपनी शिक्षा नीति बदलने की जरूरत है. मैंने शिक्षा पर ढेरों किताबें पढ़ी और कहीं नहीं मिला कि किसी देश ने यह कंसेप्ट दिया हो कि गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो मिलाए. ऐसा कंसेप्ट किसी भी देश में नहीं हैं, सिर्फ भारत में है. इसलिए भारत से ही दुनिया को ये संदेश जाना चाहिए कि हम सिर्फ कहते नहीं है, बल्कि करते भी हैं और यह टीचर्स की सैलरी में भी दिखनी चाहिए. हमारे देश में टीचर्स की सैलरी सबसे ज्यादा होनी चाहिए.
देश को नई शिक्षा नीति की जरूरत- मनीष सिसोदिया
मनीष सिसोदिया ने शिक्षकों की सबसे अधिक सैलरी होने के फायदे बताते हुए कहा कि सबसे आकर्षित पेशे में आईएएस होता है, क्योंकि उसमें पावर के साथ सैलरी भी ज्यादा होती है. आज हमारे बच्चों को यह संतुष्टि होनी चाहिए कि अगर हम शिक्षक के पेशे को चुन रहे हैं तो हमारी सैलरी ज्यादा है. फिर वो अपना तन-मन लगाकर एक अच्छा टीचर बनेंगे और देश को खड़ा करेंगे। देश को एक ऐसी नीति की जरूरत है. अब ऐसी नीति बनाने का समय आ गया है और यह नीति बन सकती है. मेरा मानना है कि शिक्षको को ऐसा सम्मान दिए बिना, जो हमारी परंपराओ में प्रदर्शित तो होता है, वो वैलेंस शीट में भी प्रदर्शित होना चाहिए कि हम वो देश हैं, जहां किसी भी कर्मचारी की तुलना में टीचर्स की सैलरी सबसे ज्यादा है। ऐसे में भारत को विकसित होने से कोई नहीं रोक सकता है. सिर्फ इसी से नहीं होगा, लेकिन जब तक इस तरह की चीजें नहीं होंगी, तब तक भारत विकसित देश नहीं हो पाएगा.
जेल मे रहकर 8 से 9 घंटे तक पढ़ाई की
मनीष सिसोदिया ने कहा कि मैं पिछले डेढ़ साल से अपने जीवन की विषम परिस्थितियों में था. मैं कभी जंतर-मंतर पर अखबार बिछाकर सोता था, इसलिए मुझे ये दिन कभी कठिन नहीं लगे. मैं जो कर रहा था, उसमें कुछ अड़चनें आ रही थीं. इसका जिक्र इसलिए कर रहा हूं, क्योकि जब हम अच्छी स्थिति में होते हैं, सबकुछ अच्छा कर रहे होते हैं और हमारे साथ सब कुछ अच्छा हो रहा होता है, तब आपको सिखाया हुआ काम आता ही है, लेकिन जब आप विषम परिस्थितियों में होते हैं, उस वक्त आपको सिखाया हुआ ज्यादा काम आता है. हमारे शिक्षक एक विशेष सामाजिक वर्ग के साथ-साथ विशेष आयु वर्ग को डील कर रहे हैं. इंटरमीडिएट के शिक्षक द्वारा सिखाया गया गणित मेरे काम आया या नहीं, लेकिन प्राइमरी के शिक्षक द्वारा सिखाया गया मेरे हर परिस्थिति में जिंदगी भर काम आने वाला है. इसलिए भी प्राइमरी के शिक्षकों का दर्जा और महत्वपूर्ण हो जाता है.
पंकज जैन