जस्टिस वर्मा से जुड़े केस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, RTI के तहत जांच रिपोर्ट नहीं होगी सार्वजनिक

सुप्रीम कोर्ट ने आरटीआई अधिनियम के तहत न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर से मिली नकद जांच रिपोर्ट जारी करने की मांग अस्वीकार कर दी है. यह आवेदन अमृतपाल सिंह खालसा ने लगाए आरोपों से जुड़ी आंतरिक जांच रिपोर्ट और मुख्य न्यायाधीश के पत्र की प्रति मांगते हुए दायर किया था.

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RTI के जरिए नहीं मिलेगी वर्मा केस की रिपोर्ट, सुप्रीम कोर्ट ने कहा—जांच की गोपनीयता ज़रूरी (फोटो क्रेडिट - AFP) RTI के जरिए नहीं मिलेगी वर्मा केस की रिपोर्ट, सुप्रीम कोर्ट ने कहा—जांच की गोपनीयता ज़रूरी (फोटो क्रेडिट - AFP)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2025,
  • अपडेटेड 5:32 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के तहत जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से अकूत नकदी मिलने की जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराने की अर्जी खारिज कर दी गई.

क्या मांगी गई थी जानकारी?

इस बाबत दायर इस RTI आवेदन में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों के संबंध में आंतरिक जांच समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को उक्त जांच रिपोर्ट भेजते समय लिखे गए पत्र की प्रति मांगी गई थी.

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क्यों खारिज किया गया आवेदन?

सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने अमृतपाल सिंह खालसा की ओर से दाखिल आवेदन पर 9 मई को विचार करने के बाद यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उल्लिखित परीक्षणों के मद्देनजर सूचना प्रदान नहीं की जा सकती. RTI सेल ने इस आवेदन को खारिज करते समय आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(ई) और 11(1) का भी हवाला दिया है.

आरटीआई की कौन-कौन सी धाराएं लागू की गईं?

RTI अधिनियम की धारा 8(1)(ई) के अनुसार, किसी व्यक्ति को तब तक जानकारी नहीं दी जाती जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि व्यापक सार्वजनिक हित में ऐसी जानकारी का प्रकटीकरण आवश्यक है. जबकि धारा 11 के अनुसार, तीसरे पक्ष की जानकारी को प्रकटीकरण से छूट दी गई है.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला

सुप्रीम कोर्ट के अतिरिक्त रजिस्ट्रार और सीपीआईओ ने 21 मई को दिए जवाब में कहा गया कि सिविल अपील संख्या 10044-45/2010 सीपीआईओ, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल, (2020) 5 एससीसी 481) में 13 नवंबर 2019 को पारित अपने फैसले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उल्लिखित परीक्षणों के मद्देनजर जानकारी नहीं दी जा सकती है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता, आनुपातिकता परीक्षण, प्रत्ययी संबंध, निजता के अधिकार का हनन और गोपनीयता के कर्तव्य का उल्लंघन आदि को इसके लिए समुचित वजह बताया गया.

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई रिपोर्ट

इस पूरे प्रकरण में 8 मई को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को आगे की कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री को भेज दिया था.

यह भी पढ़ें: जज के घर कैश मिलने का मामला, SC ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR की मांग वाली याचिका की खारिज

जांच समिति का गठन और नेतृत्व

जांच के लिए चीफ जस्टिस ने 22 मार्च को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस GS संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन की समिति बनाई.

नकदी बरामदगी का मामला क्या है?

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जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर 14 मार्च की रात आग लगी. अग्निशमन अभियान के दौरान जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास के आउटहाउस के स्टोर-रूम से नकदी का एक बड़ा भंडार आकस्मिक रूप से पाए जाने की रिपोर्ट सामने आई. उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे. 

इसके बाद क्या हुआ?

विवाद के बाद, जस्टिस वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया. CJI के निर्देशानुसार जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया है. जबकि दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की प्रारंभिक रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा का जवाब, दिल्ली पुलिस द्वारा लिए गए फोटो और वीडियो के साथ, सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड करके सार्वजनिक कर दिया गया, परन्तु अंतिम जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई.

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