दिल्ली में लाल किले के पास हुए कार बम धमाके की एनआईए की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी रही है वैसे-वैसे बड़े खुलासे होते जा रहे हैं. जांच एजेंसियों को एक बहुत बड़े नेटवर्क, खतरनाक तैयारियों और हमास जैसी शैली के हमले की योजनाओं के बारे में भी पता चल रहा है. इस पूरे माड्यूल में सबसे अहम नाम उमर आमिर और उसका दायां हाथ जसीर बिलाल वानी उर्फ दानिश ने जांच एजेंसियों को चौंका दिया है.
जांच एजेंसियों के मुताबिक यह साजिश सिर्फ एक कार बम तक सीमित नहीं थी. यह एक ट्रिपल लेयर अटैक प्लान था जिसमें ड्रोन, रॉकेट और आखिर में कार बम. यानी वही पैटर्न, जो हमास ने इज़रायल में और आईएस ने सीरिया–इराक में इस्तेमाल किया था. हवा और जमीन से एक साथ वार.
हर काम में थी महारत हासिल
एनआईए ने अपनी शुरुआती जांच में पाया कि उमर और जसीर महीनों से ड्रोन को हथियार बनाने पर काम कर रहे थे. वानी (दानिश) को तकनीकी काम में महारत थी. वह ड्रोन के इलेक्ट्रॉनिक हिस्से, मोटर और लोड-कैपेसिटी बदलकर ऐसा सेटअप तैयार कर रहा था कि उन पर विस्फोटक फिट किए जा सकें. जांच अधिकारियों के मुताबिक योजना बिल्कुल हमास मॉडल जैसी थी. पहले ड्रोन से ऊपर से शुरुआती हमला, ताकि सुरक्षा बलों में भ्रम फैले और भीड़ इधर-उधर भागने लगे. जांच कर रहे अधिकारियों के मुताबिक रॉकेट भी दागने की तैयारी थी. एनआईए के मुताबिक जसीर बिलाल वानी की गिरफ्तारी इस साजिश की सबसे अहम कड़ी थी. वह तकनीकी सपोर्ट के लिए मॉड्यूल में शामिल किया गया था. ड्रोन के साथ-साथ रॉकेट बनाने के लिए भी.
कई टेस्टिंग भी हुई
जांच में खुलासा हुआ कि रॉकेट लॉन्चर जैसी एक मैन्युअल ट्यूब बन रही थी. इसे छोटे आकार के विस्फोटक के साथ टेस्ट किया गया था. इसकी लॉन्चिंग रेंज 300–400 मीटर के आसपास रखी गई थी यह सब कुछ शुरुआती चरण में ही था. लेकिन योजना साफ थी या तो ड्रोन से हमला, नहीं तो रॉकेट से. यानी दिल्ली में पहली बार रॉकेट आधारित आतंकी हमला हो सकता था. जब दोनों कोशिशें ड्रोन और रॉकेट नाकाम हो गईं, तब मॉड्यूल ने तीसरा और अंतिम विकल्प अपनाया कार बम का. और यही वह धमाका है, जिसने दिल्ली को हिला दिया.
एक सुसाइड बॉम्बर बनने का सफर
उमर की पृष्ठभूमि शुरुआती तौर पर बिल्कुल सामान्य दिखती है. डॉक्टर, पढ़ा-लिखा, 28 साल का. लेकिन उसके माइंडवॉश का काम हुआ 2021 में तुर्किये की यात्रा के दौरान. वहां उसने और उसके साथी डॉ. मुज़म्मिल गनई ने ऐसे लोगों से मुलाकात की, जो किसी भी मौके पर जेईएम (जैश-ए-मोहम्मद) के OGW (ओवरग्राउंड वर्कर) बन सकते थे. यात्रा के बाद दोनों ने एकदम बदलकर अपने किरदार तैयार कर लिए.
उमर ने गनई के साथ मिलकर 360 किलो अमोनियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर और बड़े पैमाने पर TATP ओपन मार्केट से खरीदा. इनके भंडार की शुरुआती खेप हरियाणा के फरीदाबाद में अल फला यूनिवर्सिटी के पास किराए के कमरे में रखी गई थी. उनका लक्ष्य था VBIED यानी बहुत शक्तिशाली वाहन बम बनाने का और यह धमाका दिसंबर 6 (बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी ) के आसपास करने की तैयारी थी. लेकिन इससे पहले ही मॉड्यूल खुलासा होने लगा. गनई की गिरफ्तारी के बाद उमर घबराया, लेकिन रुका नहीं. कई प्लान रद्द होते गए, और अंत में दिल्ली ब्लास्ट हुआ.
प्लानिंग की सबसे अहम कड़ी
एनआईए की गिरफ्तारी में अब तक सबसे अहम नाम जसीर बिलाल वानी उर्फ दानिश सामने आया है. वह सिर्फ मददगार ही नहीं था, बल्कि हमला प्लान करने वालों में सबसे आगे खड़ा था. उसने ड्रोन मोडिफिकेशन किए, रॉकेट लॉन्चिंग सिस्टम पर काम किया. उमर को लगातार तकनीकी सपोर्ट देता रहा और खुद भी सुसाइड बॉम्बर बनने को तैयार था लेकिन बाद में उसने अपने आर्थिक हालात और धार्मिक कारणों के चलते इस भूमिका से पीछे हटने की बात कबूली. उसके खुलासे ने ही पूरे मॉड्यूल की परतें खोलीं. जांच अधिकारी साफ कहते हैं यह हमला सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं था. निशाना वह जगह हो सकती थी जहां भीड़ अधिक हो जहां धार्मिक कार्यक्रम, राजनीतिक सभा चल रही हो.
जांच अधिकारियों की राय स्पष्ट है कि अगर ड्रोन या रॉकेट टेस्ट सफल हो जाते, तो दिल्ली पर अब तक का सबसे घातक हमला हो सकता था. कार बम उनका आखिरी और मजबूरी वाला हथियार था, लेकिन उसके बाद भी 13 लोग मारे गए और कई जख्मी हुए. एनआईए की जांच अभी भी कई एंगल पर आगे बढ़ रही है.
जितेंद्र बहादुर सिंह