पति के एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर को नहीं मान सकते क्रूरता या आत्महत्या का उकसावा: दिल्ली HC

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी व्यक्ति का एक्सट्रामैरिटल अफेयर, उसकी पत्नी के साथ क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं माना जा सकता है.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 मई 2025,
  • अपडेटेड 11:28 AM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी व्यक्ति का एक्सट्रामैरिटल अफेयर, उसकी पत्नी के साथ क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं माना जा सकता है. कम से कम तब तक तो नहीं जब तक कि यह साबित न हो जाए कि इससे पत्नी को परेशानी या पीड़ा हुई है. न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि एक्सट्रामैरिटल अफेयर और दहेज की मांग के बीच संबंध न होने पर ये पति को दहेज हत्या के लिए फंसाने का आधार नहीं है.

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इस दौरान अदालत ने एक ऐसे व्यक्ति को जमानत दे दी, जिसे 18 मार्च, 2024 को अपनी पत्नी की उसके ससुराल में अप्राकृतिक मृत्यु के बाद आईपीसी की धारा 498ए (क्रूरता)/304-बी (दहेज हत्या) के अलावा धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत गिरफ्तार किया गया था. ये सब शादी के लगभग पांच साल के भीतर हुआ था.

अदालत ने कहा-'अभियोजन पक्ष ने यह सुझाव देने के लिए सबूतों पर भरोसा किया कि आवेदक एक महिला के साथ विवाहेतर संबंध में शामिल था. समर्थन में कुछ वीडियो और चैट रिकॉर्ड का हवाला दिया गया है. हालांकि, यह मानते हुए भी कि ऐसा कोई संबंध था, कानून तय है कि एक्सट्रामैरिटल अफेयर, अपने आप में, धारा 498ए आईपीसी के तहत क्रूरता या धारा 306 आईपीसी के तहत उकसावे के दायरे में नहीं आता है. जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता कि मृतक को परेशान करने या पीड़ा पहुंचाने के लिए ये संबंध बनाए गए थे.'

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फैसले में आगे कहा गया,'एक्सट्रामैरिटल अफेयर धारा 304बी आईपीसी के तहत अभियुक्त को फंसाने का आधार नहीं हो सकता. हालांकि, अदालत ने माना कि उत्पीड़न या क्रूरता को दहेज की मांग या मानसिक क्रूरता से जोड़ा जाना चाहिए जो 'मृत्यु से ठीक पहले' हुई हो.'

यह व्यक्ति मार्च 2024 से हिरासत में था और अदालत ने कहा कि उसे लगातार हिरासत में रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा. अदालत ने आगे कहा कि जांच पूरी होने के बाद आरोपपत्र दाखिल किया गया था और निकट भविष्य में मुकदमा समाप्त होने की संभावना नहीं है. इसमें कहा गया कि सबूतों से छेड़छाड़ या न्याय से भागने का कोई जोखिम नहीं था और यह अच्छी तरह से स्थापित है कि जमानत देने का उद्देश्य न तो दंडात्मक था और न ही निवारक.

अदालत ने 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानतदारों पर उसे रिहा करने का निर्देश दिया. महिला के परिवार ने आरोप लगाया था कि पति का अपनी सहकर्मी के साथ संबंध था और जब पत्नी ने उससे पूछताछ की तो उसने उसका शारीरिक शोषण किया. उस व्यक्ति पर यह भी आरोप लगाया गया कि वह अपनी पत्नी पर नियमित रूप से घरेलू हिंसा करता था और अपनी खरीदी गई कार के लिए उसके परिवार से ईएमआई भुगतान सुरक्षित करने के लिए उस पर दबाव डालता था. लेकिन, अदालत ने पाया कि महिला या उसके परिवार द्वारा ऐसी कोई शिकायत तब नहीं की गई जब वह जीवित थी और इसलिए प्रथम दृष्टया दहेज संबंधी उत्पीड़न के दावे की तात्कालिकता और व्यावहारिकता कमजोर हो गई.

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