दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं. लेकिन कानूनी जानकर इसे सिर्फ राजनीतिक स्टंट करार दे रहे हैं.
दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस अपने राजनीतिक फायदे के लिए ये मुद्दा उठाती रही हैं. लेकिन केंद्र में इन पार्टियों की सरकार रहने के बावजूद भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सका. उन्होंने आगे कहा कि बिना किसी जानकारी के अब आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को उठा रही है.
एसके शर्मा कहते हैं कि दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की मांग करना डॉ. भीमराव अंबेडकर और अन्य संविधान निर्माताओं की विद्वता पर सवाल उठाना है. उन्होंने बताया, 1947 में स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का निर्माण हो रहा था. उस समय बात उठी कि दिल्ली को भी पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाए. इस मसले पर संविधान सभा में प्रस्ताव भी लाया गया. संविधान सभा ने विचार करने के लिए पट्टाभि सीतारमैया की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी.
अंबेडकर ने किया था खारिज
कमेटी ने रिपोर्ट दी कि दिल्ली को पूर्ण राज्य बना दिया. इसके मुताबिक राज्य के एक मुख्यमंत्री, तीन मंत्री हों और अधिकार दिल्ली को दे दिए जाएं. लेकिन यह रिपोर्ट जब संविधान का प्रारूप तैयार कर रहे डॉ. भीमराव अंबेडकर के सामने लाई गई तो उन्होंने भी इसे सिरे से खारिज कर दिया.
कमेटी की रिपोर्ट को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सौंप दी गई. उन्होंने सुझाव दिया कि भारत की राजधानी पर दिल्ली राज्य का अधिकार नहीं हो सकता है. दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार ही कानून पास करेगी और राज्य का इसमें दखल नहीं होगा. दिल्ली में एक ही सरकार का अधिकार होगा जो केंद्र का होगा.
एक सुझाव यह भी था कि स्थानीय समस्याओं के लिए दिल्ली के लिए विधानसभा का गठन किया जा सकता है, लेकिन इस पर भी राष्ट्रपति का अधिकार होगा. राष्ट्रपति ही दिल्ली के सर्वेसर्वा होंगे. बाद में 1987 में दिल्ली को पूर्ण राज्य पर विचार करने के लिए फिर से बालाकृष्णन कमेटी बनी. कमेटी ने सिफारिश में कहा कि कानून- व्यवस्था में कोई बदलाव दिल्ली के हित में नहीं है.
दीपक कुमार / रोहित मिश्रा