दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाइकोर्ट के सिंगल जज के उस फैसले को दो जजों की खंडपीठ के सामने चुनौती दी है जिसमें पुलिस को आदेश दिया गया था कि वह एक सड़क हादसे में लकवाग्रस्त हुए युवक और उसके पिता को मुआवजे के तौर पर 75 लाख रुपये अदा करे. दिल्ली पुलिस की अपील मंजूर करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने सिंगल जज बेंच के इसी साल 18 मई के आदेश के अमल पर रोक लगा दी है.
यह दुर्घटना दिसंबर 2015 में और नॉर्थ एवेन्यू रोड पर लगाए गए बैरिकेड्स से युवक के टकराने की वजह से हुई थी. सिंगल जज ने मामले में पुलिस को लापरवाही और अपनी ड्यूटी पूरी करने में विफल रहने का जिम्मेदार माना था. यह दुर्घटना दिसंबर 2015 में नॉर्थ एवेन्यू रोड पर रखे बैरिकेड्स से युवक धीरज कुमार के दोपहिया वाहन के टकराने की वजह से हुई थी. हाईकोर्ट ने मामले में पुलिस को लापरवाही और अपनी ड्यूटी पूरी करने में विफल रहने का जिम्मेदार माना.
जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह धीरज कुमार और उनके पिता को मुआवजे के तौर पर 75 लाख रुपये का भुगतान करे. पुलिस को चार हफ्तों के भीतर यह रकम हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास जमा कराने के लिए कहा गया था. समय से मुआवजा भुगतान करने में नाकाम रहने पर देरी के लिए सालाना 9 फीसदी की दर से ब्याज देने का भी आदेश था. एकल जज पीठ के फैसले के मुताबिक इस रकम में से 30 लाख रुपये पीड़ित के पिता को दिए जाने थे. बाकी के 45 लाख रुपये की एफडी कराने का निर्देश था जिससे पीड़ित युवक की भावी जरूरतों के हिसाब से समय-समय पर उसमें से पैसा लिया जा सके.
याचिका के मुताबिक, 21 साल के कुमार के साथ दिसंबर 2015 में यह हादसा हुआ. उस वक्त वह डीयू से बीएससी ऑनर्स की पढ़ाई कर रहे थे. उस रात वो मादीपुर गांव से एक विवाह समारोह से देर रात दोपहिया वाहन से अपने घर लौट रहे थे. इसी बीच नॉर्थ एवेन्यू रोड पर धनवंतरी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के पास लगे बैरिकेड्स से उनकी गाड़ी भिड़ गई. पीड़ित के पिता के मुताबिक इस हादसे के बाद से उनका बेटा पूरी तरह से लकवाग्रस्त यानी शारीरिक तौर पर अक्षम अवस्था में है. पुलिस उनके बेटे के खिलाफ लापरवाही से गाड़ी चलाने का मुकदमा दर्ज करके बैठ गई. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से पुलिस को उन्हें इस हादसे से हुए नुकसान और इलाज में हुए खर्चे की भरपाई का निर्देश देने का अनुरोध किया था.
फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट की एकल जज पीठ ने इस बात पर गौर किया था कि इस हादसे की वजह से पीड़ित आज तक निष्क्रिय अवस्था में है. उन्हें लगातार देखभाल और इलाज की जरूरत पड़ेगी. जस्टिस चावला ने कहा कि जैसा कि पुलिस ने दावा किया और जो सही भी है कि जनता की भलाई के लिए ही शहर भर के अलग-अलग हिस्सों में बैरिकेड्स लगाए जाते हैं. लेकिन ऐसा करते हुए पुलिस को यह सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी है कि वही बैरिकेड दुर्घटनाओं की वजह न बन जाए.
मौजूदा केस के संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि घटनास्थल पर लगे बैरिकेड के आसपास पर्याप्त रोशनी नहीं थी. न ही यह साबित किया जा सकता था कि उन बैरिकेड्स पर जरूरी रिफेलेक्टर या ब्लिंकर्स लगे थे जिससे वो दूर से भी नजर आएं. वे आपस में चेन से बंधे थे जिससे गाड़ियां उस अवरोधक को पार न कर सकें. ऐसी चेन दूर से दिखाई नहीं देती. वहां कोई पुलिसकर्मी भी नहीं था. महज इसीलिए कि साइट से कोई हेलमेट नहीं मिला, इस नतीजे पर नहीं पहुचा जा सकता कि याचिकाकर्ता ने घटना के वक्त हेलमेट नहीं पहना था या वह लापरवाही से बाइक चला रहा था. याचिकाकर्ता को पुलिसवालों की लापरवाही और अपनी जिम्मेदारी पूरा करने में विफलताओं की वजह से पहुंचे नुकसान की भरपाई का हक है. पुलिस ने कोर्ट में दावा किया था कि बैरिकेड के आसपास पर्याप्त रोशनी थी और बैरिकेड्स को पर्याप्त दूरी से साफ तौर पर देखा जा सकता था.
संजय शर्मा / पूनम शर्मा