जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली हाई कोर्ट में वक्फ कानून 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने वाले मामले में अर्जी दाखिल की है. जमीयत ने वक्फ कानून 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका का विरोध किया है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कोर्ट से मांग की है कि वक्फ कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की अर्जी को जुर्माने के साथ खारिज की जाए. इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय शुक्रवार को सुनवाई करेगा.
दरअसल वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की है, जिसमें उन्होंने अन्य धर्मों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए वक्फ कानून 1995 के प्रावधानों को चुनौती दी है. याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून 1995 बनाने का अधिकार ही नहीं है.
वक्फ से जुड़े कानूनों के लिए याचिका दायर
संसद 7वीं अनुसूची की तीसरी सूची में दिए आइटम 10 और 28 के दायरे से बाहर जाकर ट्रस्ट, ट्रस्ट संपत्ति, धर्मार्थ और धार्मिक संस्थाओं और संस्थानों के लिए कोई कानून नहीं बना सकती. याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि केंद्र सरकार के पास देश के गैर-मुस्लिम नागरिकों को छोड़कर 'वक्फ' और धार्मिक संपत्तियों से जुड़े कानून बनाने का संवैधानिक अधिकार नहीं है. इसमें आगे कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों का मैनेजमेंट धार्मिक आधार पर किया जाता है और सरकार को दूसरे धर्मों को छोड़कर सिर्फ एक धर्म के लिए इसे रेगुलेट करने की अनुमति नहीं है.
वक्फ एक्ट क्या है?
वक्फ संपत्तियों की देखरेख के लिए 1955 में वक्फ एक्ट बनाया गया था. इसके तहत सेंट्रल वक्फ काउंसिल का गठन किया गया था, जिसका काम सभी राज्यों के वक्फ बोर्डों की निगरानी करना है. इस काउंसिल के अध्यक्ष अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री होते हैं. ये काउंसिल सभी वक्फ बोर्डों की मदद भी करता है, जिसे मुशरुत अल खिदमत कहा जाता है.
संजय शर्मा