दिल्ली: दाह संस्कार में इस्तेमाल होंगे गाय के गोबर से बने उपले, SDMC ने दी मंजूरी

दक्षिणी दिल्ली की मेयर अनामिका ने बयान जारी करते हुए बताया कि लकड़ियों की बजाए अब गाय के गोबर से बने बड़े उपलों का इस्तेमाल किया जाएगा.यह फैसला एसडीएमसी के तहत आने वाले श्मशान घाटों पर लागू होगा.

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SDMC ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.(प्रतीकात्म तस्वीर) SDMC ने प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.(प्रतीकात्म तस्वीर)

राम किंकर सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 25 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 3:42 PM IST
  • लकड़ी की बजाए उपलों से होगा अंतिम संस्कार
  • आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मिलेगी मदद
  • SDMC ने पास किया प्रस्ताव

दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (SDMC) के तहत आने वाले श्मशान घाटों पर अब अंतिम संस्कार के दौरान लकड़ियों की बजाए गाय के गोबर से बने उपलों का इस्तेमाल किया जाएगा. एसडीएमसी ने इस बात की जानकारी बीते रविवार को दी.

इससे पहले निगम ने एक बयान जारी कर बताया था कि अंतिम संस्कार में लकड़ियों के इस्तेमाल की बजाए उपलों के इस्तेमाल के प्रस्ताव को एसडीएमसी की बैठक के दौरान मंजूरी दे दी गई है.  दक्षिणी दिल्ली की मेयर अनामिका ने बयान जारी करते हुए बताया कि लकड़ियों की बजाए अब गाय के गोबर से बने बड़े उपलों का इस्तेमाल किया जाएगा.यह फैसला एसडीएमसी के तहत आने वाले श्मशान घाटों पर लागू होगा.

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उन्होंने बताया कि श्मशान घाटों पर लकड़ी, उपले और पराली का प्रबंध रहता है लेकिन उपलों के आकार छोटे होने की वजह से लोग लकड़ियों के इस्तेमाल को तवज्जो देते हैं. लेकिन अब निगम ने यह प्रस्ताव पास कर दिया है जिसमें  लकड़ियों के आकार के बराबर उपले भी रखे जाएंगे. उन्होंने कहा क  चिता को जलाने के लिए एक क्विंटल से अधिक लकड़ी लग जाती है, इससे पर्यावरण को भी हानि पहुंचती है. लकड़ी से अंतिम संस्कार करने में लगभग पाँच से छह घंटे का समय लगता है जबकि गाय के गोबर के उपलों से महज़ तीन घंटे का समय ही लगेगा.

उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति अपने जीवन से लेकर मृत्यु तक 20 पेड़ों का इस्तेमाल कर लेता है। वहीं, मृत्यु के बाद भी चिता जलाने के लिए अधिक लकड़ियों की आवश्यकता होती है। इसे देखते हुए हमने श्मशान घाट में गाय के गोबर से बने लकड़ी के रूप में बड़े लट्ठों की व्यवस्था करने का प्रस्ताव पास किया गया है।

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उन्होंने बताया कि लकड़ियों की तुलना में उपलों के दाम कम होंगे और इससे आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को मदद मिलेगी. इसके अलावा गाय के गोबर का हमारी संस्कृति में खास महत्व है. उन्होंने यह भी बताया कि कुछ सामाजिक संगठन हमारे इस फैसले का समर्थन भी कर रहे हैं. जैसे ही यह सुविधा उपलब्ध होगी लोग इसका फायदा उठाना शुरू करेंगे.

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