केजरीवाल को क्यों याद आईं शीला दीक्षित?

CM केजरीवाल का कहना है कि एक चुनी हुई सरकार के पास पिछली सरकार में जितनी शक्तियां थी, मोदी सरकार ने केजरीवाल सरकार से वह तमाम शक्तियां छीन ली और उन्हें बेबस बना दिया है.

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दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने की शीला सरकार से तुलना दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने की शीला सरकार से तुलना

सुरभि गुप्ता / आशुतोष मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 08 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 1:02 PM IST

आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अब अपनी सबसे पहली धुर-विरोधी नेता शीला दीक्षित की याद आई हैं. विधानसभा और विधानसभा के बाहर पार्टी के नेता शीला दीक्षित को याद कर रहे हैं. केजरीवाल को शीला दीक्षित का शासनकाल भी याद आ रहा है. हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा के अंदर बजट भाषण पर बोलते हुए शीला दीक्षित और उनकी सरकार का जिक्र किया था, तो वहीं सदन के बाहर पार्टी के नेता सोशल मीडिया पर भी शीला दीक्षित की सरकार को याद कर रहे हैं. आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्यों आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को शीला दीक्षित की सरकार याद आई?

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दिल्ली विधानसभा में बजट के दौरान बोलते हुए अरविंद केजरीवाल ने जिक्र किया कि कैसे उनकी सरकार में सारी शक्तियों को केंद्र सरकार ने छीन कर उन्हें बेबस बना दिया है. केजरीवाल ने कहा कि वह चाहे तो उनके सामने रिश्वत लेते किसी एक चपरासी को भी वह न सस्पेंड कर सकते हैं ना उसके खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकते हैं. केजरीवाल ने जिक्र किया कि लोग कहते हैं कि शीला दीक्षित कैसे काम कर लेती थीं. केजरीवाल ने सदन में अपने भाषण में कहा कि शीला की सरकार में उनके पास वह 5 बड़ी शक्तियां थी, जो अब केजरीवाल की सरकार के पास नहीं है.

शीला सरकार के पास थीं ये शक्तियां

मुख्यमंत्री के मुताबिक शीला दीक्षित के पास सरकार चलाने के लिए सर्विसेज विभाग उनके अधीन था, एंटी करप्शन ब्रांच शीला दीक्षित के पास था, सरकार के किसी भी अधिकारी से लेकर कर्मचारी को बर्खास्त करने, सस्पेंड करने या ट्रांसफर- पोस्टिंग करने का अधिकार भी उनकी सरकार के पास था, किसी भी खाली जगहों पर नियुक्ति करने और नई नियुक्तियां करने का अधिकार भी शीला दीक्षित के पास था. किसी अधिकारी के खिलाफ कोई मामला सामने आने के बाद विजिलेंस कार्रवाई का अधिकार भी शीला दीक्षित सरकार के पास था.

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केजरीवाल सरकार को सुप्रीम फैसले का इंतजार

केजरीवाल का कहना है कि एक चुनी हुई सरकार के पास पिछली सरकार में जितनी शक्तियां थी, मोदी सरकार ने केजरीवाल सरकार से वह तमाम शक्तियां छीन ली और उन्हें बेबस बना दिया है. साल 2015 में अरविंद केजरीवाल की सरकार बनने के महज कुछ सप्ताह के अंदर ही केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी करके केजरीवाल सरकार से एंटी करप्शन ब्रांच वापस ले लिया था, सर्विसेज विभाग जिसके तहत नौकरशाहों और सभी अधिकारियों, कर्मचारियों की ट्रांस्फर या पोस्टिंग होती है, उसे उपराज्यपाल के अधीन कर दिया था और विजिलेंस विभाग भी चुनी हुई सरकार से छीन लिया गया था. उस नोटिफिकेशन के खिलाफ दिल्ली सरकार दिल्ली हाई कोर्ट भी गई लेकिन फैसले में हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को ही दिल्ली का प्रशासक ठहराते हुए केंद्र सरकार के उस नोटिफिकेशन को सही ठहराया. दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले और उसी नोटिफिकेशन को लेकर केजरीवाल सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है, जहां संवैधानिक पीठ ने सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा है और अब केजरीवाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है.

उपराज्यपाल से जारी है विवाद

केजरीवाल का आरोप है कि उन्होंने राशन वितरण प्रणाली में घोटाले को लेकर बार-बार उपराज्यपाल से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की गुहार लगाई लेकिन उपराज्यपाल ने किसी की नहीं सुनी. वहीं उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी शिक्षा विभाग में एक अधिकारी द्वारा निजी स्कूल के हक में हलफनामा दिए जाने का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ कार्रवाई और सीबीआई जांच की मांग करते हुए उपराज्यपाल को चिट्ठी लिखी लेकिन उनका आरोप है कि LG साहब ने उनके निवेदन पर जवाब तक नहीं दिया.

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केजरीवाल सरकार से छीनी गई सारी शक्तियां

केंद्र सरकार द्वारा नोटिफिकेशन जारी करके केजरीवाल सरकार से सारी शक्तियां छीन लेने के बाद दिल्ली की चुनी हुई सरकार मौजूदा हालात में IAS अधिकारी से लेकर किसी चपरासी तक की ना तो नियुक्ति कर सकती है, ना उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई और ना ही उसका ट्रांसफर. दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास पहले एंटी करप्शन ब्रांच था, जिससे वह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी, लेकिन अब उसके पास वह शक्ति भी नहीं है. वहीं सर्विसेज और सामान्य प्रशासन विभाग भी केजरीवाल सरकार से छीनकर उपराज्यपाल को दे दिया गया है, जिसके चलते चुनी हुई सरकार किसी भी अधिकारी के खिलाफ न कोई कार्रवाई कर सकती है, ना उसका विभाग बदल सकती है, ना ही उसके खिलाफ विजिलेंस की जांच बिठा सकती है.

सरकार के खिलाफ षड्यंत्र कर रहे अधिकारी

किसी पर कटे परिंदे जैसी स्थिति दिल्ली में इस समय चुनी हुई सरकार की है और यही केजरीवाल का सबसे बड़ा दर्द है. शीला दीक्षित की सरकार के पास यह सभी शक्तियां थी, जिससे उन्हें अपनी सरकार में काम कर रहे अधिकारियों पर नकेल लगाने में आसानी होती थी. केजरीवाल का आरोप है कि उनके पास शक्तियां नहीं है इसलिए उपराज्यपाल और बीजेपी के इशारे पर सरकार के अधिकारी चुनी हुई सरकार के खिलाफ लगातार न सिर्फ षड्यंत्र करते हैं बल्कि सरकारी योजनाओं को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं.

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