दिल्ली: CM केजरीवाल ने बायो-डी कंपोजर घोल निर्माण केंद्र की शुरुआत की, नहीं जलानी पड़ेगी पराली

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताया कि दिल्ली सरकार भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (PUSA) के साथ पिछले 2 साल से ऐसे बायो-डी कंपोजर पर काम कर रही है, जिससे पराली को खाद में तब्दील किया जा सकता है.

Advertisement
केजरीवाल ने डी कंपोजर घोल निर्माण केंद्र की शुरुआत की. केजरीवाल ने डी कंपोजर घोल निर्माण केंद्र की शुरुआत की.

सुशांत मेहरा

  • नई दिल्ली,
  • 25 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:09 AM IST
  • इस साल 800 किसान करेंगे डी कंपोजर घोल का इस्तेमाल
  • पिछले साल 300 किसानों ने किया था इस्तेमाल

राजधानी में प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने बायो-डी कंपोजर घोल निर्माण केंद्र की शुरुआत की. इस घोल के छिड़काव के बाद पराली जलाने की जरूरत नहीं होगी. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस केंद्र की शुरुआत की. 

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताया कि दिल्ली सरकार भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (PUSA) के साथ पिछले 2 साल से ऐसे बायो-डी कंपोजर पर काम कर रही है, जिससे पराली को खाद में तब्दील किया जा सकता है. 

Advertisement

300 किसानों ने किया घोल का इस्तेमाल

पिछले साल केवल नॉन-बासमती के 2,000 एकड़ खेत में छिड़काव कराया गया था, लेकिन इस बार बासमती या नॉन-बासमती करीब 4200 एकड़ खेत छिड़काव होना है. अरविंद केजरीवाल ने बताया पिछले साल 300 किसानों ने बायो डी कंपोजर घोल का इस्तेमाल किया था. इस बार 844 किसान इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. 

कृषि अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ सुनील ने बताया कि दिल्ली सरकार के सहयोग से बड़े स्तर पर पराली बायो डी कंपोजर घोल का निर्माण किया जा रहा है. उन्होंने कहा, धान के खेतों में कटाई शुरु हो चुकी है. ऐसे में किसानों को जल्द से जल्द यह घोल प्राप्त कराया जाएगा, ताकि वो अपने खेतों में छिड़काव कर सकें और उन्हें पराली ना जलाना पड़े. 

इस घोल को घर पर बना सकते हैं किसान

Advertisement

इसके लिए 25 लीटर पानी में 750 ग्राम गुड़ का घोल बनाया जाएगा. इसके बाद इसे उबाल लें. इसे ठंडा किया जाएगा. घोल को ठंडा करने के बाद पानी में ढाई सौ ग्राम बेसन मिलाएंगे और PUSA द्वारा निर्मित 20 कैप्सूल घोल में डाले जाएंगे. PUSA केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ सुनील ने बताया कि घोल की मदद से खेतों में पराली खुद-ब-खुद गलने लगेगी और खाद के रूप में काम करेगा. इस तकनीक के इस्तेमाल से किसानों को अपने खेत में पराली को जलाना नहीं पड़ेगा. 

पराली को पूरी तरह से गलने में 20 से 25 दिन का समय लगेगा. इसके लिए धान को काटने के तुरंत बाद इस घोल का छिड़काव करना है. घोल का प्रयोग करने के बाद रोटावेटर की सहायता से पराली को खेत में मिलाना होगा. इसके बाद 10 से 15 दिन लगेगा खेतों की जुताई करने में. तब तक ज्यादातर पराली पूरी तरह से गल चुकी होगी और खाद के रूप में तब्दील हो जाएगी. 

सरकार का फैसला ठीक- किसान 

हालांकि इस मामले को लेकर हमने जब नजफगढ़ स्थित झुलझली गांव के किसान से बात की तो उन्होंने कहा कि तकनीक वाकई कारगर है. लेकिन इसको करने में जो 15 से 20 दिन का वक्त लगेगा, उससे अगली फसल उगाने में 15 से 20 दिन की देरी होगी. वहीं, किसान राकेश यादव ने कहा, सरकार का फैसला ठीक है. लेकिन दिल्ली में पराली जलती ही नहीं है, बल्कि पड़ोसी राज्यों में जलाई जाती है, उसका असर दिल्ली पर पड़ता है और यहां प्रदूषण बढ़ जाता है. 

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement