दिल्ली कार ब्लास्ट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जांच को आगे बढ़ाते हुए एक और डॉक्टर की गिरफ्तारी की है. एजेंसी ने मंगलवार को बताया कि उसने उत्तर कश्मीर के बारामूला निवासी डॉ बिलाल नसीर मल्ला को गिरफ्तार किया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने सुसाइड बॉम्बर डॉ उमर-उन-नबी को पनाह दी और आतंक conspiracy से जुड़े सबूत नष्ट किए.
इस तरह इस मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपियों की संख्या बढ़कर आठ हो गई है. एनआईए के मुताबिक, डॉ बिलाल आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) द्वारा रचे गए उस षड्यंत्र का हिस्सा थे, जिसके तहत 10 नवंबर को लाल किले के पास कार ब्लास्ट किया गया था. इस धमाके में 15 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई लोग घायल हुए थे.
किस तरह जुड़ा डॉ बिलाल का नाम?
एनआईए की जांच में सामने आया है कि डॉ बिलाल ने आरोपी उमर-उन-नबी को न सिर्फ छिपाया बल्कि उसे लॉजिस्टिकल सपोर्ट भी दिया. एजेंसी ने आरोप लगाया है कि वह सबूत नष्ट करने की पूरी साजिश में शामिल थे. धमाका उसी कार में हुआ था जिसमें उमर-उन-नबी सवार था. कार में अमोनियम नाइट्रेट सहित भारी मात्रा में विस्फोटक भरा हुआ था. यह कार आरोपी अमीर रशीद अली के नाम पर खरीदी गई थी, जो पहले ही गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
डॉ बिलाल को कोर्ट में पेश किया गया
एनआईए ने डॉ बिलाल को दिल्ली की एक विशेष अदालत में पेश किया. अदालत की प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंजु बजाज चंडना ने उन्हें सात दिन की एनआईए कस्टडी में भेज दिया. इसी के साथ अदालत ने आरोपी अमीर रशीद अली की कस्टडी भी सात दिन के लिए बढ़ा दी. अली को डॉ बिलाल के साथ ही अदालत में पेश किया गया था.
जांच का दायरा लगातार बढ़ रहा
एनआईए ने कहा कि वह इस पूरे आतंक नेटवर्क की गहराई तक पहुंचने के लिए केंद्रीय और राज्य एजेंसियों की मदद से जांच जारी रखे हुए है. जांच का दायरा लगातार बढ़ रहा है ताकि षड्यंत्र की हर कड़ी को उजागर किया जा सके.
कैसे सामने आया यह व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल?
यह मॉड्यूल अपनी प्रकृति के कारण व्हाइट कॉलर मॉड्यूल कहा जा रहा है, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में डॉक्टरों और शिक्षित युवाओं की भूमिका सामने आई है. मामला तब उजागर हुआ जब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस के साथ मिलकर इस मॉड्यूल के खिलाफ कार्रवाई की. जांच के दौरान पुलिस फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी पहुंची, जहां से 2,900 किलोग्राम विस्फोटक बरामद हुए. यह बरामदगी इस केस की सबसे बड़ी सफलता मानी गई.
शुरुआत पोस्टरों से हुई थी
पूरा मामला तब शुरू हुआ जब 18-19 अक्टूबर की रात श्रीनगर शहर के बाहर दीवारों पर जैश-ए-मोहम्मद के पोस्टर लगने लगे. पोस्टरों में पुलिस और सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की धमकी दी गई थी. इसे गंभीरता से लेते हुए एसएसपी श्रीनगर जीवी संदीप चक्रवर्ती ने कई टीमें बनाई और जांच आगे बढ़ाई.
सीसीटीवी फुटेज की मदद से तीन युवक
आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर-उल-अशरफ ,मकसूद अहमद डार उर्फ शाहिद को पोस्टर चिपकाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. पूछताछ में उन्होंने मौलवी इरफान अहमद का नाम बताया, जो एक पूर्व पैरा-मेडिक और बाद में उपदेशक बन गया था. उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया.
यहीं से खुलने लगी साजिश की परतें
मौलवी इरफान की गिरफ्तारी ने इस पूरे नेटवर्क का रास्ता खोल दिया. उसकी पूछताछ में अल-फलाह यूनिवर्सिटी और कश्मीरी डॉक्टरों के समूह का नाम सामने आया. इसके बाद एक-एक कर गिरफ्तारियां होती गईं.
सबसे पहले पकड़े गए थे ये डॉक्टर
डॉ मुझम्मिल गनई (कोइल, पुलवामा)
डॉ शाहीना सईद (फरीदाबाद)
इसके बाद डॉ अदील राठर को सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) से गिरफ्तार किया गया.
अब तक की सभी गिरफ्तारियां
इस केस में अब तक गिरफ्तार किए गए लोग
डॉ मुझम्मिल गनई
डॉ अदील राठर
डॉ शाहीना सईद
मौलवी इरफान
अमीर रशीद अली
जासिर बिलाल वानी उर्फ दानिश
उमर-उन-नबी (सुसाइड बॉम्बर – मारा गया)
नया आरोपी: डॉ बिलाल नसीर मल्ला
एनआईए की जांच आगे भी जारी है और एजेंसी इस मॉड्यूल से जुड़े हर व्यक्ति की भूमिका की पड़ताल कर रही है.
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