दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक के बाद एक लोकलुभावन घोषणाएं कर अपने सियासी किले को दुरुस्त करने में जुटे हैं. वहीं, दिल्ली में बीजेपी की सत्ता में वापसी की राह कांग्रेस के ग्राफ पर टिकी हुई है. ऐसे में बीजेपी की रणनीति है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का दिल्ली में बढ़ा ग्राफ किसी भी सूरत में कम न हो.
बता दें कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी का ग्राफ दिल्ली में बढ़ा है, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) के वोट फीसदी में गिरावट आई है, जिसके चलते कांग्रेस तीसरे नंबर से दूसरे स्थान पर पहुंच गई है. इसका फायदा यह हुआ कि बीजेपी दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही.
ताकि बचा रहे कांग्रेस का जनाधार
लोकसभा चुनाव के नतीजे पर नजर डालें तो आम आदमी पार्टी का जनाधार 2014 की तुलना में 2019 में 14 फीसदी खिसका है. AAP को दिल्ली में 18.11 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस का 7 फीसदी और बीजेपी का 10 फीसदी जनाधार दिल्ली में बढ़ा है. कांग्रेस को 22.51 फीसदी वोट मिले हैं, लेकिन वह एक भी सीट जीत नहीं सकी. वहीं, बीजेपी 56.56 फीसदी वोट के साथ सभी सातों सीटें जीतने में कामयाब रही. सूत्रों की मानें तो बीजेपी की कोशिश है कि कांग्रेस का जो जनाधार लोकसभा चुनाव में बढ़ा था, उसे किसी भी कीमत पर उसे कम नहीं होने दिया जाए.
कांग्रेस की मजबूती का मिलेगा फायदा
बीजेपी सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को जिंदा रखकर ही दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीता जा सकता है. इस लिहाज से बीजेपी अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने में जुटी है. बीजेपी किसी भी बहाने से कांग्रेस को जिंदा रखने की कवायद में जुट गई है. बीजेपी रणनीतिकारों की मानें तो कांग्रेस जितनी मजबूत होगी, उतनी ही आम आदमी पार्टी को नुकसान होगा.
अंदरूनी तौर पर करेंगे कांग्रेस की मदद!
ऐसे में इसका सीधा फायदा बीजेपी को आने वाले चुनाव में मिलेगा. हालांकि, बीजेपी रणनीति के तहत आम आदमी पार्टी पर सीधे हमले करने के साथ-साथ कांग्रेस को भी अपने निशाने पर लेगी. इससे यह संदेश जाएगा कि उसके मुकाबले मे कांग्रेस भी है. इतना ही नहीं, सूत्रों की मानें तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पाले में आए आम आदमी पार्टी के वोटरों को कांग्रेस के साथ जोड़े रखने में भी बीजेपी ने अंदरूनी तौर पर मदद करने का प्लान बनाया है.
दरअसल, दिल्ली में बीजेपी का वोटर उसके साथ जस का तस बना हुआ है, जबकि कांग्रेस का वोटर ही AAP के साथ गया है, जिसके चलते केजरीवाल दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए हैं. वहीं, इस बार के लोकसभा में AAP का वोटर केजरीवाल से छिटककर कांग्रेस की तरफ लौटा है, जिसे बीजेपी चाहती है कि वह कांग्रेस के साथ जुड़ा रहे.
2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो बीजेपी 33 फीसदी वोटों के साथ 31 सीटें जीती थी, जबकि आम आदमी पार्टी को 29.5 फीसदी वोट के साथ 28 सीटें मिली थी और कांग्रेस को 24.6 फीसदी वोट के साथ 8 सीटें मिलीं थीं. लेकिन, 2015 में विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो कांग्रेस का वोट केजरीवाल के साथ शिफ्ट हो गया है.
इसी का नतीजा था कि आम आदमी पार्टी 54.3 फीसदी के साथ 67 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि बीजेपी को 32.3 फीसदी के साथ 3 सीटें मिली. वहीं, कांग्रेस महज 9.7 फीसदी वोट पर आकर शून्य पर सिमट गई. इससे साफ समझा जा सकता है कि दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का वोटर एक ही है. यही वजह है कि आगामी दिल्ली के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल अपने खिसके हुए जनाधार को जहां वापस लाने की कवायद में जुटे हैं, वहीं बीजेपी की रणनीति है कि कांग्रेस का ग्राफ जिस तरह से मजबूत हुआ है वह बरकरार बना रहे.
कुबूल अहमद