उत्तर भारत के बाकी शहरों से ज्यादा जहरीली है NCR की हवा, जानें इसकी बड़ी वजह

उत्तर भारत के अन्य शहरों की तुलना में दिल्ली एनसीआर में सबसे अधिक प्रदूषण देखने को मिलता है. इसके कई कारण हैं, जिसमें हजारों कारखानों का घुआं और सिविल कंस्ट्रक्शन बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. इसके अलावा पराली जलाना हो या वाहनों का प्रदूषण या औद्योगिक प्रदूषण भी बड़ी वजहें हैं.

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अभि‍षेक आनंद

  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:48 PM IST
  • हवा में जहर घोल रहा कारखानों का घुआं
  • प्रदूषण का बड़ा कारण सिविल कंस्ट्रक्शन

पराली जलाए जाने के चलते एनसीआर में हवा की गुणवत्ता 'बहुत खराब' से 'खतरनाक' कैटेगरी में बनी हुई है. मेन पॉल्युटेंट पीएम 2.5 के साथ दिल्ली की औसत वायु गुणवत्ता 499 है, जो पराली जलाने और वाहनों और औद्योगिक धुएं के कारण होती है. भारत के उत्तरी भाग के अन्य शहरों की तुलना में, नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद सहित एनसीआर के शहर चार्ट में सबसे ऊपर हैं और अक्सर दुनिया के शीर्ष दस सबसे प्रदूषित शहरों में बने रहते हैं. इसके पीछे का कारण बड़े पैमाने पर वाहनों की आवाजाही और हजारों उद्योग हैं.

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हवा में जहर घोल रहा कारखानों का घुआं

दिल्ली के विपरीत, नोएडा और गाजियाबाद में इंडस्ट्रीज ने सीएनजी या सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ईंधन की ओर रुख नहीं किया है. इनमें से ज्यादातर पारंपरिक डीजल जेनसेट पर चलते हैं जिनमें अधिक ईंधन लगता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नोएडा में लगभग 6,200 और गाजियाबाद में 27,000 इंडस्ट्रीज हैं, जिनमें से अधिकांश बिजली या बैकअप के प्रमुख स्रोत के रूप में डीजल जनरेटर का उपयोग करते हैं. इन कारखानों से निकलने वाले धुएं से इन दोनों शहरों में वायु की गुणवत्ता खराब होती है.

नोएडा और गाजियाबाद की हवा बदतर

दिल्ली की एवरेज एयर क्वालिटी 499 है, जबकि नोएडा और गाजियाबाद का औसत एक्यूआई शनिवार को 550 दर्ज किया गया था. इससे वे दुनिया में सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक बन गए हैं. पड़ोसी फरीदाबाद में भी लगभग 5,000 इंडस्ट्रीज हैं और गुरुग्राम में लगभग 45,00 ऐसी यूनिट हैं. इनमें से सेटेलाइट शहरों में हवा की गुणवत्ता भी 'बहुत खराब' श्रेणी में बनी हुई है. पर्यावरण कार्यकर्ता और वन्यजीव फोटोग्राफर आशीष शर्मा ने कहा कि-  हम इस प्रदूषण के लिए एक फैक्टर को पूरी तरह से दोष नहीं दे सकते. चाहे पराली जलाना हो या वाहनों का प्रदूषण या औद्योगिक प्रदूषण. लेकिन समय आ गया है कि सरकार ग्रीन नॉर्म्स के बावजूद इंडस्ट्रियल यूनिट्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे. नोएडा और गाजियाबाद में ऐसी इंडस्ट्रीज पर नियंत्रण कम है. उन्हें जल्द से जल्द सीएनजी में शिफ्ट करने की जरूरत है. 

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प्रदूषण को लेकर सख्त नियमों की जरूरत

नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन (नेफोवा) के अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने कहा, हम शहरों की तरह गैस चैंबर में फ्लैट खरीदने के लिए अपनी सेविंग्स खर्च नहीं कर सकते. सैटेलाइट शहरों में बढ़ते प्रदूषण से भी लोग चिंतित हैं. सरकार इस समस्या से नजरें नहीं फेर सकती. नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुरुग्राम के इलाके बजट आवास के केंद्र हैं और हर दिन बड़ी संख्या में लोग इन शहरों में शिफ्ट हो रहे हैं. सख्त नियम समय की मांग है. 

सिविल कंस्ट्रक्शन भी बड़ी मुसीबत

एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण का एक बड़ा कारण सिविल कंस्ट्रक्शन भी है. नोएडा में एक लाख से ज्यादा फ्लैट बन रहे हैं, गाजियाबाद में भी इतने ही फ्लैट बन रहे हैं. फरीदाबाद में लगभग 40,000 फ्लैट बनाए जा रहे हैं और लगभग इतनी ही संख्या में गुरुग्राम में कंस्ट्रक्शन जारी है. इस सब से साल के इस समय में वायु की गुणवत्ता खराब होती है.
 

 

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