भारत सरकार की 2026 तक देश से नक्सलवाद समाप्त करने की रणनीति के तहत सुरक्षा बलों ने अबूझमाड़ के घने जंगलों में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है. इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) की 44वीं बटालियन ने 28 नवंबर को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले से लगभग 140 किलोमीटर दूर, अत्यंत दुर्गम इलाके लंका गांव में नया ऑपरेशंस बेस स्थापित किया है. यह इलाका लंबे समय से CPI (माओवादी) का गढ़ माना जाता रहा है.
सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार यह नया बेस रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र सीमा से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसके सामने महाराष्ट्र का गढ़चिरोली जिला है, जो नक्सली गतिविधियों का बड़ा केंद्र माना जाता है. यह कैंप नक्सलियों की उस अहम 'क्रॉस बॉर्डर कॉरिडोर' को बंद करेगा, जिसके सहारे वे अबूझमाड़, बीजापुर और गढ़चिरोली के बीच आने-जाने और हथियार-सप्लाई का नेटवर्क संचालित करते थे.
अबूझमाड़ लगभग 4,000 वर्ग किलोमीटर में फैला 'अनन्वेषित' क्षेत्र है, जहां करीब 35,000 आदिवासी 237 गांवों में रहते हैं. सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह क्षेत्र वर्षों से चुनौती रहा है क्योंकि घने जंगल नक्सलियों के लिए स्वाभाविक सुरक्षा कवच बन जाते हैं. इसी वजह से केंद्रीय बलों ने पिछले तीन महीनों में यहां एडजम, आदेर, जटलूर, कुडमेल, धोबे, डोडी मारका और पदमेटा समेत नौ नए कैंप स्थापित किए हैं.
अधिकारियों का कहना है कि लंका बेस न केवल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्र में विकास कार्यों का मार्ग भी खोलेगा. इस बेस की मदद से बेदरे में लंबे समय से रुका पुल निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ सकेगा, जिससे अबूझमाड़ के कई गांव सड़क संपर्क में आ जाएंगे और स्थानीय लोगों तक सरकारी योजनाएं पहुंच पाएंगी.
ITBP वर्तमान में छत्तीसगढ़ में आठ बटालियन तैनात किए हुए है. केंद्र का लक्ष्य है कि 2026 की पहली तिमाही तक देश से लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिज़म का प्रभाव पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए. अबूझमाड़ में सुरक्षा बलों की यह बढ़त उसी व्यापक अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य नक्सलियों की जड़ें पूरी तरह कमजोर करना और क्षेत्र में लंबे समय से रुके विकास कार्यों को गति देना है.
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