देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती समारोह से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दूरी बना ली. हरियाणा के कैथल में ताऊ देवीलाल की जयंती समारोह का आयोजन इंडियन नेशनल लोकदल की तरफ से किया गया लेकिन नीतीश कुमार इस कार्यक्रम में नहीं पहुंचे.
नीतीश कुमार पटना में आज होने वाली कैबिनेट की बैठक के कारण हरियाणा नहीं गए. पहले इसकी चर्चा हुई, लेकिन बाद में नीतीश पटना के अंदर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में शामिल होने पहुंच गए. नीतीश के इस कदम ने बिहार की सियासत में नई चर्चाओं को हवा दे डाली.
सोमवार की सुबह–सवेरे जैसे ही यह खबर सामने आई कि नीतीश कुमार पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के मौके पर आयोजित राजकीय समारोह में शामिल होने जा रहे हैं, राजनीतिक हलचल तेज हो गई. एक तरफ हरियाणा के कैथल में आयोजित देवीलाल के जयंती समारोह से नीतीश की दूरी और दूसरी तरफ बीजेपी के संस्थापकों में से एक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में नीतीश का शामिल होना सियासत को गरमा गया.
हरियाणा में ताऊ देवीलाल की जयंती समारोह में विपक्षी गठबंधन के कई बड़े नेता शामिल हो रहे थे, लेकिन नीतीश कुमार पटना में आयोजित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में शामिल होने पहुंचे. बीजेपी की तरफ से प्रदेश कार्यालय में दीनदयाल उपाध्याय की जयंती मनाई गई.
बिहार सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को राजकीय समारोह का दर्जा चंद साल पहले दिया है. नीतीश सरकार ने यह फैसला तब लिया था जब बीजेपी गठबंधन में नीतीश कुमार के साथ थी लेकिन अब जबकि नीतीश इस बीजेपी के साथ नहीं है इसके बावजूद वह इस जयंती समारोह में पहुंचे तो यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि क्या नीतीश एक बार फिर बीजेपी के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं?
नीतीश कुमार जब दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में पहुंचे तो उनके पीछे-पीछे डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी कार्यक्रम में शामिल हो गए. जयंती समारोह के बाद नीतीश कुमार से भी सीधा सवाल हुआ कि क्या एक बार फिर से वह बीजेपी के साथ या करीब जा रहे हैं? नीतीश ने अपने अंदाज में इस बात को खारिज कर दिया.
नीतीश कुमार ने कहा कि विपक्षी गठबंधन को बनाने में उन्होंने भूमिका अदा की है, उनके बारे में जिसे जो कहना है जो कहते रहे. हालांकि हरियाणा के कैथल में देवीलाल जयंती में शामिल नहीं होने के सवाल को नीतीश कुमार ठीक से समझ नहीं पाए और उन्होंने अपने कैबिनेट के दूसरे मंत्री से इस बारे में जानकारी लेने के बाद जवाब दिया.
नीतीश कुमार ने कहा कि आज कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव मंगलवार को पटना में नहीं रहेंगे और इसी वजह से कैबिनेट की बैठक आज सोमवार को बुलाई गई. कैथल नहीं जाने और कैबिनेट की बैठक का हवाला दिए जाने पर नीतीश ने जिस तरह जवाब दिया वह शायद ही किसी के गले के नीचे उतरे.
उधर बीजेपी भी नीतीश के इस दांव से चौंक गई, हालांकि बीजेपी के नेताओं ने एक बार फिर यह जरूर सुना दिया कि नीतीश के लिए उनका दरवाजा बंद है. नीतीश को लेकर बीजेपी के अंदर भी दो राय देखने को मिली. एक तरफ जहां पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश कुमार की एंट्री बीजेपी में नहीं हो सकती वहीं नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने नीतीश कुमार के पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती में शामिल होने का स्वागत किया.
कुल मिलाकर नीतीश कुमार के इस नए सियासी दांव ने बिहार की राजनीति में कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. पहला सवाल यह है कि क्या वाकई नीतीश में देवीलाल की जयंती समारोह से दूरी बनाकर बीजेपी को कोई मैसेज देने की कोशिश की? पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में शामिल होकर नीतीश आखिर बीजेपी को क्या मैसेज देना चाहते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि नीतीश बीजेपी से नजदीकियां दिखाकर आरजेडी के ऊपर कोई दबाव बनाना चाहते हैं? हकीकत चाहे जो भी हो लेकिन नीतीश की सियासत एक तरफ जहां बीजेपी को सरप्राईज किया है वहीं तेजस्वी यादव भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती समारोह में शामिल होने को मजबूर हुए.
शशि भूषण कुमार