क‍िसी को आया पैनिक अटैक, कोई हुआ बेहोश... 'Saiyara' देख क्यों फूट-फूटकर रोने लगे लोग? एक्सपर्ट से समझ‍िए

मोहि‍त सूरी द्वारा निर्देश‍ित 'Saiyara' फिल्म अपने कथानक से ज्यादा हॉल में लोगों के रिएक्शन से चर्चा में है. सोशल मीड‍िया में कई लोगों ने अनुभव साझाा किए हैं. अब सवाल ये है कि क्या इमोशनल फिल्में ट्रिगर कर रही हैं मेंटल हेल्थ इश्यूज़? एक्सपर्ट बता रहे हैं इसके पीछे का मनोव‍िज्ञान.

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'Saiyaara' ने लोगों को किया भावुक (Photo: India Today/ Vikram) 'Saiyaara' ने लोगों को किया भावुक (Photo: India Today/ Vikram)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 23 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 4:55 PM IST

भोपाल के एक मल्टीप्लेक्स में Saiyara फिल्म देखते हुए 24 साल के राहुल (बदला हुआ नाम) को अचानक घबराहट हुई, सांस फूलने लगी और हाथ-पैर कांपने लगे. कुछ देर में हालत ऐसी हो गई कि परिजनों को एंबुलेंस बुलानी पड़ी. वहीं दिल्ली की 21 साल की युवती को फिल्म के आखिरी 15 मिनट के दौरान uncontrollable crying आने लगी. उसे बाहर ले जाना पड़ा. 

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सैयारा' की कहानी एक उभरते गायक (कृष, अहान पांडे) और एक गीतकार (वाणी, अनीत पड्डा) के प्रेम और बलिदान के इर्द-गिर्द घूमती है. सोशल मीडिया पर Saiyara को लेकर न सिर्फ तारीफें हैं, बल्कि ढेर सारे यूज़र्स अपने इमोशनल ब्रेकडाउन और mental triggers की कहानियां भी शेयर कर रहे हैं. अब सवाल ये है कि क्या ये फिल्में महज इमोशनल नहीं बल्कि यूथ की मानसिक सेहत के लिए trigger बन रही हैं?

क्या 'Saiyara' जैसी फिल्में मेंटल हेल्थ ट्रिगर कर रही हैं

फिल्म Saiyara रिलेशनशिप ब्रेकडाउन, अकेलापन, लाइफ में अधूरापन और खुद से जूझते किरदारों की कहानी है. जो युवा पहले से एंजाइटी, low self-worth या ब्रेकअप से जूझ रहे हैं, उनके लिए ये फिल्म किसी पुराने जख्म को फिर से कुरेद देने जैसा काम कर रही है. 

भोपाल के वर‍िष्ठ मनोच‍िक‍ित्सक डॉ. सत्यकांत त्र‍िवेदी कहते हैं कि ऐसी फिल्मों में दिखाया गया intense emotional pain, किसी के लिए सिनेमैट‍िक अनुभव हो सकता है, लेकिन जिन लोगों की खुद की लाइफ में अन रिजॉल्व्ड ट्रॉमा है, उनके लिए ये ट्र‍िगरिंग एक्सपीरियंस बन सकता है. ब्रेकअप, ठुकराया जाना, नकारा जाना जैसे भावनात्मक मुद्दों से जुड़े लोग बिना तैयारी के इन फिल्मों को देखते हैं और फिल्म देखते हुए उनका नर्वस सिस्टम रिएक्ट करता है. रोना, घबराहट, सांस फूलना, ये सब उसी के लक्षण हैं. 

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Emotional Dysregulation क्या है 

फिल्में मनोरंजन के लिए बनती हैं लेकिन अगर ये दिमाग और शरीर दोनों को झकझोर रही हैं. सिनेमा हॉल में लोगों का बेहोश हो जाना, पैनिक अटैक आना और uncontrollable crying  तो ये सब Emotional Dysregulation के क्लासिक लक्षण हैं. 

साइकेट्रिस्ट डॉ. अन‍िल सिंह शेखावत कहते हैं कि Emotional catharsis एक हद तक ठीक है, लेकिन अगर कोई फिल्म किसी को डिसरेगुलेट कर दे  मतलब दिमाग भावनाओं को संभाल न पाए तो ये खतरे की घंटी है. मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति के लिए ऐसी फिल्में ट्रॉमा ट्रिगर कर सकती हैं. 

क्या फिल्मों के साथ Trigger Warning जरूरी है

Netflix, Prime जैसे OTT प्लेटफॉर्म्स पर ‘Trigger Warning’ का कल्चर बढ़ा है जैसे strong emotional content, suicidal references या self-harm को लेकर लेकिन सिनेमाघरों में अभी भी ऐसी कोई चेतावनी नहीं दी जाती. डीयू के मनोव‍ि‍ज्ञान विभाग के डॉ चंद्र प्रकाश कहते हैं कि ऐसी फिल्मों से पहले चेतावनी दी जानी चाहिए कि इसमें ऐसे सीन हैं जो मानसिक रूप से संवेदनशील दर्शकों को परेशान कर सकते हैं. 

काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ. व‍िधि एम पिलन‍िया कहती हैं कि Trigger Warning देना कोई सेंसरशिप नहीं है, ये संवेदनशीलता की बात है. अगर कोई emotionally vulnerable इंसान फिल्म देखने जाए तो उसे पहले से पता होना चाहिए कि क्या आने वाला है ताकि वो तय कर सके कि वो मानस‍िक रूप से तैयार है या नहीं. 

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