ह्रदय की धमनियों में कैल्शियम! लखनऊ पीजीआई में सफल इलाज

लखनऊ पीजीआई के कॉर्डियोलॉजी विभाग में rotablation के पहले केस का सफल इलाज हुआ है. इस बीमारी में हृदय की प्रमुख धमनी में सघन रूप से कैल्शियम जम जाता है.

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लखनऊ पीजीआई (फोटो: आजतक) लखनऊ पीजीआई (फोटो: आजतक)

सत्यम मिश्रा

  • लखनऊ,
  • 17 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 10:47 AM IST
  • दिल की धमनियों में कैल्शियम
  • लखनऊ पीजीआई ने बनाया नया कीर्तिमान

लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग ने रेडियल रूट द्वारा रोटाप्रो प्रणाली का उपयोग करते हुए रोटेब्लेशन के पहले केस का सफल ट्रीटमेंट करके एक और कीर्तिमान जोड़ा है. रोटाप्रो प्रणाली, रोटेब्लेशन (coronary artery disease) के इलाज की एक अति विशिष्ट तकनीक है.

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के हृदय की धमनियों में कैल्शियम का व्यापक जमाव होता है. इसमें फ्लोरोस्कोप की सहायता से हृदय वाहिकाओं के अंदर कैथेटर की तरह का एक छोटी घूमती हुई ड्रिल को डाला जाता है. कैथेटर तब कैल्शियम को काटता है और इस प्रकार कोरोनरी स्टेंट को आसानी से अंदर डाला जाता है और पर्याप्त रूप से इसे बढाया जाता है.

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यह प्रक्रिया मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित एक मध्यम आयु वर्ग की महिला पर की गई थी, जिसे पिछले 6 महीनों से सीने में दर्द था. उसकी कोरोनरी एंजियोग्राफी से स्पष्ट हुआ कि उसकी हृदय की प्रमुख धमनी (left anterior decending artery LAD) में सघन रूप से कैल्शियम जमा था.
 
कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आदित्य कपूर ने प्रक्रिया के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि ऐसे मामलों में धमनी में जमा प्लाक अत्यंत कठोर हो जाता है और एक साधारण एंजियोप्लास्टी गुब्बारा धमनी को पूरी तरह से नहीं खोल सकता है. इसलिए rotablaion का उपयोग करके इस मामले को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने का निर्णय लिया गया.

वहीं प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि रोटाप्रो प्रणाली जिसमें सभी अंतर्निहित नियंत्रण है, अब सीधे एक डिजिटल कंसोल पर ऑपरेटरों के हाथों में है (पुराने सिस्टम के विपरीत, जिसमें पैर संचालित नियंत्रण पैनल थे), इस प्रक्रिया को उपयोगकर्ता के अधिक अनुकूल बनाता है.

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पीजीआई के एडिशनल प्रोफेसर डाक्टर रूपाली खन्ना ने बताया कि कैल्सीफाइड कोरोनरी धमनियां पारंपरिक एंजियोप्लास्टी के लिए एक तकनीकी चुनौती प्रस्तुत करती है. इसके बावजूद रोटाप्रो के आगमन का मतलब है कि इस तकनीक को रोगियों के व्यापक लाभ के लिये बढ़ाया जा सकता है और उन्हें इस तकनीक का लाभ प्रदान किया जा सकता है.

इस प्रक्रिया को अंजाम देने वाली इंटरवेंशनल टीम में शामिल रहे सहायक प्रोफेसर डॉ. अंकित साहू ने बताया कि हाथ (रेडियल रूट) से ऐसी प्रक्रियाओं को करने से रोगियों को मोबिलाइज (mobilize) करने में मदद मिली और इससे संवहनी जटिलताओं को कम करने की संभावना है. वहीं इस मामले में सफल प्रक्रिया के एक दिन बाद मरीज को छुट्टी दे दी गई. पीजीआई लखनऊ के निदेशक प्रो. आर के धीमन ने कार्डियोलाजी की पूरी टीम को इस उत्कृष्ट कार्य के लिए बधाई दी.

 

 

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