'बेटा कहां गया...', लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य विवादों में, जानें कौन कर सकता है किडनी डोनेट?

रोहिणी आचार्य ने अपने पिता लालू प्रसाद यादव को किडनी डोनेट करने के बाद पारिवारिक तनाव, जेंडर प्रेशर और किडनी डोनेशन से जुड़े मेडिकल-कानूनी सवालों पर खुलकर बात की है. उनके बयान ने भारत में ऑर्गन डोनेशन के नियमों, गलतफहमियों और महिलाओं पर पड़ने वाले दबाव पर नई बहस शुरू कर दी है.

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भारत में किडनी डोनेश के लिए मृत डोनर की मौजूदगी बहुत कम है. (Photo: Freepic/PTI) भारत में किडनी डोनेश के लिए मृत डोनर की मौजूदगी बहुत कम है. (Photo: Freepic/PTI)

आजतक हेल्थ डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:16 PM IST

2022 में, जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की तबीयत बिगड़ी और उन्हें तुरंत किडनी की जरूरत पड़ी, तो उनकी बेटी रोहिणी आचार्य ने अपनी किडनी डोनेट की. उस समय पूरे देश ने उनकी इस हिम्मत और प्यार की तारीफ की थी. लोग उन्हें एक मिसाल के रूप में देख रहे थे. लेकिन दो साल बाद कहानी एकदम बदल गई है.

अब रोहिणी अपने ही परिवार, खासकर भाई तेजस्वी यादव, से नाराज हैं और किडनी डोनेशन को लेकर कई बयान दे चुकी हैं. उन्होंने कहा है कि किसी भी बेटी पर अपने पिता को बचाने के लिए किडनी देने का दबाव नहीं होना चाहिए. उनका मानना है कि ऐसी जिम्मेदारी पहले बेटों या परिवार के पुरुष सदस्यों की होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि एक शादीशुदा बेटी ने अपने पिता को किडनी देने की हिम्मत की तो उसकी बात क्यों नहीं की जा रही, कोई नहीं पूछ रहा कि बेटा कहां था.

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रोहिणी आचार्य के बयानों से क्यों छिड़ी बहस?
रोहिणी ने कहा कि किडनी डोनेशन के फैसले ने उनके परिवार के साथ दूरी पैदा कर दी. उन्होंने दावा किया कि उन्हें ताने झेलने पड़े, यहां तक कि कुछ लोगों ने उनकी किडनी को 'गंदी किडनी' कहकर उनका अपमान किया. अब रोहिणी का कहना है कि बेटियों को किडनी डोनेट करने का फैसला सोच-समझकर करना चाहिए. उनका ये भी कहना है कि अगर घर में बेटा या भाई मौजूद है, तो पिता की जान बचाने की जिम्मेदारी बेटियों पर नहीं डाली जानी चाहिए, 'पहले बेटा आगे आए.' 

उनके इन बयानों ने उस जेंडर प्रेशर को लेकर भी बहस छेड़ दी है, जिसका सामना भारत में कई महिलाएं मेडिकल फैसलों के दौरान करती हैं. 

इस पूरे पारिवारिक विवाद के बीच कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर किडनी कौन डोनेट कर सकता है? किस वजह से कोई इंसान किडनी डोनेट करने के लिए योग्य या अयोग्य ठहरता है?

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भारत में किडनी दान के अपने नियम हैं. किडनी डोनेट एक गंभीर, मेडिकल और कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें कई टेस्ट, एलिजिबिलिटी और स्ट्रिक्ट रूल्स शामिल होते हैं. हालांकि ये भी एक तथ्य है कि भारत में किडनी समेत कई ऑर्गन डोनेट करने के मामले में ज्यादातर महिलाएं ही आगे आती हैं. 

क्या हैं किडनी ट्रांसप्लांट के नियम?
किडनी ट्रांसप्लांट यानी जब खराब किडनी की जगह किसी हेल्दी किडनी को लगाया जाता है. ये किडनी किसी लिविंग/जीवित व्यक्ति या मृत डोनर, दोनों से मिल सकती है. लेकिन डॉक्टर अक्सर बताते हैं कि लिविंग डोनेशन कई तरीकों से ज्यादा फायदेमंद होता है.

लिविंग डोनेशन के फायदे 
• ट्रांसप्लांट ज्यादा सफल होता है.
• नई किडनी कई साल तक अच्छे से काम करती है.
• लंबी वेटिंग लिस्ट में इंतजार नहीं करना पड़ता. 
• कई लोगों को डायलिसिस शुरू होने से पहले ही किडनी मिल सकती है.

भारत में सबसे बड़ी समस्या ये है कि मृत डोनर्स से किडनी बहुत कम मिलती है. इसकी कमी इतनी ज्यादा है कि हर साल इंतजार करते–करते हजारों लोगों की हालत बिगड़ जाती है. इसी वजह से लिविंग डोनेशन बेहद जरूरी हो जाता है. साथ ही, इलीगल ऑर्गन ट्रेड को रोकने के लिए सरकार ने कड़े नियम बनाए हैं, ताकि डोनेशन सिर्फ सही और सुरक्षित तरीकों से ही हो.

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कितने तरह के होते हैं किडनी डोनर्स?
किडनी डोनेट करने वाले दो तरह के लोग होते हैं.  

1. लिविंग/जीवित डोनर: ये वो लोग होते हैं जो जिंदा रहते हुए अपनी एक किडनी डोनेट करते हैं. इनमें मरीज के नजदीकी रिश्तेदार जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे, दादा-दादी, नाती-पोते शामिल होते हैं. भावनात्मक रूप से जुड़े लोग जैसे दोस्त, पड़ोसी या दूर के रिश्तेदार भी किडनी डोनेट कर सकते हैं. लेकिन ऐसे मामलों में सब कुछ बहुत कड़ी निगरानी में होता है, ताकि कोई गलत काम न हो.

2. मृत डोनर: जब कोई व्यक्ति ब्रेन-डेड हो जाता है, तो परिवार की सहमति से उसके ऑर्गन डोनेट किए जाते हैं.  

लिविंग किडनी डोनर बनने के लिए क्या जरूरी?
किडनी डोनेट करना एक बड़ा फैसला है, इसलिए इसके लिए कुछ सख्त मेडिकल, मानसिक और कानूनी नियम बनाए गए हैं.  

उम्र से जुड़े नियम: ज्यादातर डोनर्स 18 से 65 साल की उम्र के होते हैं. अगर कोई बुज़ुर्ग बिल्कुल हेल्दी है, तो वो भी डोनेट कर सकते हैं.

मेडिकल चेकअप जरूरी: किडनी डोनेट करने से पहले कई टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें फुल बॉडी चेकअप, ब्लड टेस्ट, सीटी स्कैन या अल्ट्रासाउंड, किडनी फंक्शन टेस्ट, साइकोलॉजिकल एसेस्मेंट (ताकि पता चले कि आप मानसिक रूप से तैयार हैं). इन सबका मकसद बस इतना है कि डोनेशन के बाद भी डोनर एक किडनी के साथ बिल्कुल हेल्दी रह सके.

किन लोगों को किडनी डोनेशन नहीं करना चाहिए?
अगर आपको कंट्रोल न होने वाला हाई बीपी, डायबिटीज, किडनी की कोई पुरानी बीमारी, गंभीर दिल की समस्या, कोई एक्टिव इंफेक्शन, कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य की समस्या जैसी समस्याएं हैं, तो आप किडनी डोनेट करने के लिए सही नहीं माने जाते.

लाइफस्टाइल भी रखती है मायने: अगर आप धूम्रपान करते हैं, आपको शराब या नशे की लत है, बहुत ज्यादा मोटापा है तो भी आपको किडनी डोनेट करने से रोका जा सकता है. हॉस्पिटल अक्सर डोनेशन से पहले डोनर्स को स्मोकिंग छोड़ने और वजन कम कर हेल्दी बीएमआई में आने की सलाह देते हैं.

किडनी डोनेशन से जुड़ी गलतफहमियां
बहुत से लोग सोचते हैं कि किडनी डोनेट करने से शरीर कमजोर हो जाएगा या आगे चलकर दिक्कतें होंगी. लेकिन ऐसा नहीं है. रिसर्च और डॉक्टर साफ बताते हैं कि डोनेट करने वाले लोग बिल्कुल नॉर्मल जिंदगी जीते हैं. उनकी एक किडनी भी लंबे समय तक बेहतर तरीके से काम करती है. वे बाकी लोगों की तरह काम कर सकते हैं, एक्सरसाइज कर सकते हैं और ट्रैवल कर सकते हैं. यहां तक कि उनकी फर्टिलिटी (प्रेग्नेंसी) पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता है. हां, एक बात ध्यान रखनी जरूरी है कि किडनी डोनेशन एक बड़ा फैसला है. इसे कभी भी दबाव में नहीं, बल्कि अपनी इच्छा और समझ से ही लेना चाहिए.

भारत में किडनी डोनेशन के क्या हैं नियम?
भारत में किडनी ट्रांसप्लांट को बहुत सख्त कानूनों के तहत किया जाता है, ताकि किसी का शोषण न हो और सब कुछ सुरक्षित और ईमानदारी से हो. सबसे बड़ा कानून THOA (ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट), 1994 है, जिसमें 1995, 2008, 2011 और 2014 में बदलाव किए गए. इसके अलावा ह्यूमन ऑर्गन टिशू ट्रांसप्लांट रूल्स, 2014 भी लागू होते हैं.

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1. लिविंग डोनर की मंजूरी रिश्ते के आधार पर होती है: इनमें नजदीकी रिश्तेदार (माता-पिता, बच्चे, भाई-बहन) या पति/पत्नी शामिल होते हैं. डॉस्पिटल की एक कमिटी सारे डॉक्युमेंट्स चेक करती है. जरूरत पड़े तो डीएनए टेस्ट भी किया जाता है. सब सही हो तो मंजूरी मिल जाती है.

इमोशनली जुड़े डोनर्स, जिनमें दोस्त, पड़ोसी या दूर के रिश्तेदार शामिल होते हैं.  इनके लिए अस्पताल, जिला या राज्य स्तर की बड़ी कमिटी से मंजूरी लेनी होती है. ये कमिटी ये टेस्टिंग करती है कि कहीं कोई पैसों का लेन-देन या दबाव तो नहीं है. डोनेशन पूरी तरह स्वैच्छिक है या नहीं, इसकी पूरी टेस्टिंग होती है.

2. विदेशी नागरिकों के नियम: उन्हें अपने दूतावास या सरकार से अनुमति लानी होती है. वे भारत के किसी नागरिक से किडनी नहीं ले सकते, जब तक कि वे दोनों नजदीकी रिश्तेदार न हों.

3. नाबालिगों पर पूरा प्रतिबंध: 18 साल से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति किडनी डोनेट नहीं कर सकता.

कौन नहीं कर सकता किडनी डोनेशन? 
किडनी डोनेट करने के लिए शरीर और दिमाग दोनों का पूरी तरह फिट होना जरूरी है. अगर इनमें से कोई भी समस्या हो, तो आपको डोनेशन के लिए अयोग्य माना जा सकता है.

मेडिकल डिसक्वालीफिकेशन:
अगर आपको इनमें से कोई बीमारी या समस्या है, तो किडनी डोनेशन की अनुमति नहीं मिलती 

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  • डायबिटीज
  • हाई बीपी जो कंट्रोल में न हो
  • खुद किडनी से जुड़ी कोई बीमारी
  • किडनी की कोई जेनेटिक (परिवार में चलने वाली) समस्या
  • बहुत ज्यादा मोटापा (बीएमआई बहुत हाई होना)
  • दिल की बीमारी
  • कोई एक्टिव कैंसर
  • एचआईवी या कुछ गंभीर संक्रमण
  • ऑटोइम्यून बीमारी
  • स्कैन में किडनी की गलत या खराब स्ट्रक्चर दिखना

लाइफस्टाइल से जुड़े कारण
इन आदतों के कारण भी आपको डोनेशन से रोका जा सकता है 

  • धूम्रपान
  • शराब की लत
  • नशीली दवाएं खाना

कानूनी और मोरल वजहें
इन स्थितियों में डोनेशन बिल्कुल मंजूर नहीं किया जाता

  • डोनेशन आपकी मर्जी से न हो (दबाव या मजबूरी हो)
  • डोनेटर 18 साल से कम उम्र का हो
  • पैसों के लेन-देन का शक हो
  • मानसिक स्थिति ठीक न हो या फैसला लेने की क्षमता कमजोर हो
 
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