क्या आपने कभी कम उम्र के या पूरी तरह से हेल्दी लोगों को अचानक दिल का दौरा पड़ने की बात सुनी है? तो ये सवाल मन में जरूर आया होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? अगर हां, तो अब आपके इस सवाल का जवाब साइंटिस्ट्स के पास हो सकता है. दरअसल, बेंगलुरु स्थित स्टेम सेल साइंस एंड रिजेनरेटिव मेडिसिन के रिसर्चर्स ने एक नए जीन की खोज की है जो कार्डियोमायोपैथी के लिए जिम्मेदार हो सकता है. ये एक ऐसी कंडीशन है जो दिल को कमजोर कर देती है और खास तौर पर युवाओं में अचानक दिल की धड़कन रुकने से मौत का कारण बन सकती है.
वैज्ञानिकों ने क्या पाया?
डॉ. धंदापानी पेरुंदुरई और उनकी टीम ने कार्डियोमायोपैथी से पीड़ित भारतीय मरीजों में लगभग 20,000 से 25,000 जीन पर स्टडी किया. उन्होंने ट्यूबुलिन टायरोसिन लाइगेस (टीटीएल) नामक एक जीन की तलाश की, जो इस बीमारी से जुड़ा हो सकता है. इस कंडीशन में दिल की लाइनिंग मोटी होने के कारण दिल का बायां हिस्सा काम करना बंद कर देता है. ये डीएनए में एक बदलाव (जेनेटिक म्यूटेशन) की वजह से होता है, जिससे खराब प्रोटीन बनते हैं और दिल की धड़कन इर्रेगुलर हो जाती है.
समस्या के पीछे का जीन म्यूटेशन
रिसर्चर्स ने पाया कि कार्डियोमायोपैथी मरीजों में, टीटीएल जीन में ग्लाइसिन अमीनो एसिड की जगह सेरीन नामक एक दूसरे अमीनो एसिड ने ले ली है. ये म्यूटेशन प्रदूषण, यह सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों के संपर्क में आने या माता-पिता से जेनेटिक मिलने के कारण भी हो सकता है. डॉ. पेरुंडुराई ने बताया, 'फिजिकल एक्विटी के दौरान, खतरा ज्यादा होता है, जिसके चलते कभी-कभी अचानक मौत भी हो सकती है.'
कैसे की गई स्टडी?
रिसर्चर्स ने इस बीमारी को बेहतर समझने के लिए स्टेम सेल तकनीक का इस्तेमाल किया. उन्होंने मरीजों से ब्लड सेल्स लिए और इन्हें 2D स्टेम सेल कल्चर में बदल दिया. बाद में इन 2D स्टेम सेल्स को धड़कने वाले हार्ट सेल्स में डेवेलप किया गया, जो असली दिल की धड़कन जैसी होती हैं. दिल के स्ट्रक्चर को समझने के लिए उन्होंने 3D ऑर्गेनॉइड बनाए, जो छोटे-से दिल जैसे दिखते हैं. जब उन्होंने नॉर्मल सैंपल्स में ग्लाइसिन की जगह सेरीन डालकर बदलाव किया, तो पता लगा कि हेल्दी दिल के सेल्स भी बीमार हो गए और इर्रेगुलर तरीके से धड़कने लगीं. इससे साबित हुआ कि यही बदलाव कार्डियोमायोपैथी का मुख्य कारण है.
क्या म्यूटेशन को रोका जा सकता है?
डॉ. पेरुंदुरई के अनुसार, इस म्यूटेशन को पूरी तरह से रोकना बहुत मुश्किल है. हालांकि, वे हर पांच साल में जेनेटिक टेस्टिंग कराने का सजेशन देते हैं. इससे म्यूटेशन का जल्द पता लगाने में मदद मिल सकती है, जिससे डॉक्टर इस कंडीशन की रोकथाम के लिए दवाएं लिख सकते हैं.
आजतक हेल्थ डेस्क