Kidney Damage Reversal: किडनी शरीर की सफाई करने वाली मशीन की तरह होती है, जो चुपचाप काम करती है, लेकिन काम बहुत बड़ा करती है. दिक्कत ये है कि जब किडनी खराब होने लगती है, तो हमें तुरंत पता भी नहीं चलता. अचानक एक दिन रिपोर्ट आती है और डॉक्टर कहते हैं कि किडनी डैमेज हो रही है, जो लोगों के लिए एक बहुत बड़ी तकलीफ बन जाती है. क्योंकि इसका इलाज उम्रभर चलता रहता है. लेकिन अब साइंटिस्ट्स की एक नई खोज ने लोगों में बड़ी उम्मीद जगा दी है. उन्होंने ऐसा तरीका ढूंढ लिया है, जिससे किडनी का नुकसान वापस ठीक किया जा सकता है. कम से कम अभी तक तो चूहों पर ये पूरी तरह सफल रहा है.अगर ये इलाज इंसानों पर भी काम कर गया, तो किडनी की बीमारियों का पूरा खेल बदल सकता है.
रिसर्च में क्या नया मिला है?
यूटाह यूनिवर्सिटी हेल्थ के वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक खास फैटी मॉलिक्यूल जिसे सेरामाइड (ceramide) कहा जाता है किडनी सेल्स के माइटोकॉन्ड्रिया (एनर्जी देने वाले हिस्से) को नुकसान पहुंचाता है. उन्होंने माइटोकॉन्ड्रिया की सुरक्षा करके ऐसी स्टडी की जिसमें यह दिखाया गया कि अगर सेरामाइड की मात्रा कम हो जाए, तो किडनी की चोट पूरी तरह रिवर्स/ठीक हो सकती है.
एक्सपेरिमेंट में क्या किया गया?
रिसर्चर्स ने ऐसे खास चूहों पर प्रयोग किया जिनकी जीन में थोड़ा बदलाव किया गया था. इस बदलाव की वजह से उनके शरीर में सेरामाइड नाम का हानिकारक फैट बहुत कम बनता था. जब इन चूहों को ऐसी स्थिति में रखा गया, जहां आम तौर पर किडनी पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है, तो उनकी किडनी पर बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ा और वह ठीक रहीं. ये हैरान करने वाली बात थी. उन्हें कोई बड़ी चोट या नुकसान नहीं हुआ. मतलब साफ है कि साधारण चूहों की जगह ये चूहे किडनी-स्ट्रेस को आराम से झेल गए.
इतना ही नहीं, साइंटिस्ट्स ने Centaurus Therapeutics नाम की कंपनी की एक नई दवा का भी टेस्ट किया. पहले चूहों को ये दवा दी गई, फिर उनकी किडनी पर स्ट्रेस डाला गया. इसके नतीजे भी बेहद चौंकाने वाले थे दवा लेने वाले चूहों की किडनी एकदम नॉर्मल तरीके से काम करती रहीं. माइक्रोस्कोप से जांच करने पर भी उनकी किडनी सेहतमंद दिखी. इसका मतलब है कि यह दवा किडनी को नुकसान होने से बचा सकती है.
सेरामाइड कैसे पहुंचाता है किडनी को नुकसान?
जब शरीर में सेरामाइड ज्यादा हो जाता है, तो यह किडनी सेल्स के पावर हाउस यानी माइटोकॉन्ड्रिया को कमजोर कर देता है. माइटोकॉन्ड्रिया ही सेल्स को एनर्जी देते हैं, लेकिन सेरामाइड बढ़ने पर ये सही से काम नहीं कर पाते. उनका स्ट्रेकचर बिगड़ जाता है और सेल्स में एनर्जी की कमी होने लगती है. एनर्जी कम होने से किडनी जल्दी चोट खा सकती है या खराब हो सकती है. लेकिन जब साइंटिस्ट्स ने सेरामाइड को कंट्रोल किया, तो माइटोकॉन्ड्रिया फिर से ठीक तरह से काम करने लगे और किडनी मजबूत बनी रही.
क्यों मायने रखती है ये खोज?
ये खोज इसलिए खास है क्योंकि यह सिर्फ बीमारी के लक्षण नहीं रोकती, बल्कि उसकी जड़ पर वार करती है. अब तक किडनी की चोटों में ज्यादातर समस्या को संभालने वाला इलाज होता था यानी जो नुकसान हो चुका है, उसे बस कंट्रोल किया जाए. लेकिन इस रिसर्च में पहली बार सेल्स के अंदर मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया को सुरक्षित रखा गया, ताकि किडनी शुरू से ही मजबूत रहे और चोट लगने/डैमेज होने का मौका ही कम हो जाए. यही वजह है कि यह तरीका सिर्फ किडनी ही नहीं, बल्कि उन बाकी बीमारियों के लिए भी मददगार हो सकता है जहां माइटोकॉन्ड्रिया आसानी से खराब हो जाते हैं.
इंसानों के लिए कब की जाएगी इस्तेमाल?
चूहों में ये खोज बहुत शानदार रही है, लेकिन इंसानों में परीक्षण अभी बाकी है. ये दवा अभी प्री-क्लिनिकल स्टेज में है, मतलब कि अभी तक इंसानों पर इसकी सुरक्षितता की टेस्टिंग नहीं हुई है. साथ ही, इस स्टडी में दवा किडनी डैमेज शुरू होने से पहले दी गई थी, न कि बाद में. इसलिए साइंटिस्ट्स ये नहीं जानते कि क्या ये दवा डैमेज होने के बाद भी उतनी ही असरदार होगी या नहीं.
क्या हो सकता है आगे?
अगर इंसानों पर होने वाले टेस्ट सफल रहे, तो ये खोज किडनी डैमेज के इलाज में बड़ा बदलाव ला सकती है. ये सिर्फ एक्यूट किडनी इंजरी (AKI) में ही नहीं, बल्कि उन बीमारियों में भी काम आ सकती है जहां माइटोकॉन्ड्रिया कमजोर हो जाते हैं जैसे डायबिटीज, हार्ट फेल्यर वगैरह. लेकिन आगे बढ़ने से पहले साइंटिस्ट्स को ये देखना होगा कि ये तरीका लंबे समय तक सुरक्षित है या नहीं, कोई नुकसान या साइड इफेक्ट तो नहीं होते, और इंसानों में इसका असर कितना पक्का है.
आजतक हेल्थ डेस्क