हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) ऐसी स्थिति है जिसमें धमनी की दीवारों पर खून का अतिरिक्त दबाव पड़ने लगता है. यदि किसी को ये समस्या होती है तो उसके हार्ट को ब्लड पंप करने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है. हाई ब्लड प्रेशर को पारे के मिलीमीटर (मिमी एचजी) में मापा जाता है. हालांकि हाई ब्लड प्रेशर के कोई खास लक्षण नहीं होते लेकिन इससे हृदय रोग, स्ट्रोक और किडनी की बीमारी जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी और अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, सामान्य ब्लड प्रेशर 120/80 mm Hg से कम होना चाहिए और वहीं सिस्टोलिक 120 से 129 mm Hg से ऊपर और डायस्टोलिक 80 से नीचे होता है तो उसे एलिवेटेड ब्लड प्रेशर मानते हैं. वहीं इसके अलावा सिस्टोलिक 130 से 139 mm Hg से ऊपर और डायस्टोलिक 80 से नीचे होता है तो उसे हाइपरटेंशन की पहली स्टेप माना जाता है.
पहले जहां हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी उम्र के हिसाब से होती थी लेकिन हाल ही में एक रिसर्च में सामने आया है कि बच्चों और टीनएजर्स में हाइपरटेंशन की ग्लोबल रेट वर्ष 2000 के बाद से लगभग दोगुनी हो गई है, जिससे आगे चलकर बच्चों के स्वास्थ्य के खराब होने का खतरा बढ़ गया है. ये स्टडी द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ मैगजीन में पब्लिश हुई है.
क्या कहती है स्टडी?
द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ जर्नल में पब्लिश हुए रिव्यू में 96 स्टडीज और 21 देशों के 4 लाख से ज्यादा बच्चों के डेटा का एनालेसिस किया गया था. नतीजों में सामने आया कि 19 साल से कम उम्र के बच्चों-टीनएजर्स में हाई ब्लड प्रेशर की दर 3.2 प्रतिशत से बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो गई है. यानी सिर्फ 20 साल में हाई ब्लड प्रेशर के केस लगभग दोगुने हो गए हैं. करीब 11.4 बच्चे और टीनएजर्स को हाई बीपी की समस्या है जिसके कारण उन्हें आगे चलकर हार्ट डिजीज, किडनी डिजीज और कई गंभीर दिक्कतों का जोखिम बढ़ सकता है.
चीन के झेजियांग यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के पब्लिक हेल्थ स्कूल की रिसर्चर डॉ. पेइगे सोंग ने बताया, '2000 में लगभग 3.4 प्रतिशत लड़के और 3 प्रतिशत लड़कियों को हाइपरटेंशन की शिकायत थी. 2020 तक ये संख्या लड़कों में 6.5 प्रतिशत और लड़कियों में 5.8 प्रतिशत तक बढ़ गई.
क्यों बढ़ रही हाई बीपी की समस्या?
रिसर्च के मुताबिक बच्चों में मोटापा इस बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा गलत खानपान और फिजिकल एक्टिविटी में कमी भी हाई बीपी का कारण है. रिसर्च का कहना है कि मोटापे से जूझ रहे लगभग 19% बच्चे हाई बीपी से प्रभावित पाए गए हैं और वहीं हेल्दी वजन वाले बच्चों में यह आंकड़ा 3 प्रतिशत से भी कम है. स्टडी के राइटर प्रोफेसर इगोर रूदान ने इसे 'अलार्म बेल' बताया है और कहा कि यह बढ़ोतरी हर डॉक्टर और पैरेंट्स के लिए गंभीर चेतावनी है इसलिए इस पर तुरंत ध्यान देना चाहिए.
क्या है प्री-हाइपरटेंशन और किनको होगा अधिक खतरा?
स्टडी में यह भी सामने आया कि 8.2 प्रतिशत बच्चे और टीनएजर्स प्री-हाइपरटेंशन की स्थिति में हैं यानी बीपी अभी हाई नहीं हुआ है लेकिन सामान्य से ज्यादा है. डॉक्टर्स का कहना है कि टीनएजर्स, खासकर 14 साल के आसपास के लड़कों में बीपी तेजी से बढ़ता है इसलिए इस उम्र में लगातार स्क्रीनिंग बेहद जरूरी है.
ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन के चीफ साइंटिफिक ऑफिसर प्रो. ब्रायन विलियम्स के मुताबिक, यदि किसी का बीपी बचपन से ही बढ़ना शुरू हो जाता है तो उसे आगे चलकर हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावना बढ़ सकती है.
रॉयल कॉलेज ऑफ पेडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ के चेयरमैन प्रो. स्टीव टर्नर का कहना है बच्चों और टीनएजर्स में हाई बीपी की यह समस्या काफी बेहद चिंताजनक है और इसका मुख्य कारण मोटापा है जो पूरी तरह रोका जा सकता है. इसके लिए मां-बाप को कुछ कदम उठाने होंगे.
कैसे कम कर सकते हैं बचपन का मोटापा?
स्टडी की कोराइटर डॉ. पेज सॉन्ग का कहना है कि जो हाई बीपी का सबसे बड़ा कारण मोटापे को बताया जा रहा है, यदि उसे कम कर लिया जाए तो आसानी से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है. इसके लिए पैरेन्ट्स बच्चों को फल, सब्जियां और होल ग्रेन वाली बैलेंस डाइट दें, नमक और चीनी का सेवन कम करने को कहें, स्क्रीन टाइम घटाएं, फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाएं.
जिन फैमिलीज में हाई बीपी की फैमिली हिस्ट्री रही है, वे बच्चों के बीपी की स्क्रीनिंग कराते रहें क्योंकि घर पर ही मॉनिटरिंग करने से शुरुआती स्टेज में समस्या पकड़ना आसान होता है.
आजतक हेल्थ डेस्क