Ethiopian volcano ash: दिल्ली–एनसीआर के आसमान में धुंधली परत देखी जा रही है, ये हमेशा सर्दियों में होने वाला सिर्फ स्मॉग नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक ज्वालामुखी का धुआं भी है. दरअसल, 24–25 नवंबर 2025 को अफ्रीकी देश इथियोपिया में अचानक से एक 12 हजार साल पुराना ज्वालामुखी फट गया और उसकी राख (Volcanic Ash) में मौजूद कणों को 14 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ा दिया था. ये राख हवा के साथ भारत की ओर बढ़ रही है.
मौसम विज्ञान एजेंसियों द्वारा गुजरात, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा पर राख का प्रभाव दिखाई दे सकता है. अब ऐसे में लोगों के मन में चिंता है कि ये राख दिल्ली–एनसीआर तक आ गई तो सेहत को क्या नुकसान हो सकता है?
ज्वालामुखी की राख के बारे में जानें
ज्वालामुखी की राख में सल्फर डाइऑक्साइड गैस और बेहद सूक्ष्म खनिज कण मिले होते हैं. ये राख चूल्हे या लकड़ी की मुलायम राख जैसी नहीं होती बल्कि यह सख्त चट्टान, मिनरल्स और ज्वालामुखीय ग्लास के तेज धारदार कणों का मिश्रण होती है. इनके कणों का आकार इतना बारीक होता है कि वे हवा में तैरते रहते हैं. कई बार इन कणों में क्रिस्टलाइन सिलिका भी होती है जो सेहत के लिए सही नहीं होती.
ज्वालामुखी की राख से सेहत को कितना खतरा?
वैज्ञानिकों का कहना है कि ज्वालामुखी की राख के संपर्क में आने से आंख, त्वचा तथा श्वसन तंत्र संबंधी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. खांसी, गले में जलन, आंखों का लाल होना, सिरदर्द या थकान जैसे लक्षण दिख सकते हैं. वहीं यदि किसी को अस्थमा या ब्रोंकाइटिस की समस्या है तो उन्हें अधिक मुश्किल पैदा हो सकती है.
भारतीय मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि राख का गुबार मंगलवार को 14:00 GMT (स्थानीय समयानुसार शाम 7:30 बजे) तक भारत से निकल जाने की उम्मीद है. आईएमडी ने कहा है कि धुएं का गुबार 25 नवंबर 2025 तक भारत से हटकर विश्व के सबसे बड़े प्रदूषक चीन की ओर बढ़ जाएगा.
दिल्ली पर कितना असर हो सकता है?
एक्सपर्ट्स का कहना है दिल्ली–एनसीआर के ऊपर जो धुंधली परत बनी हुई है वो सिर्फ लोकल स्मॉग नहीं है, उसमें ज्वालामुखी राख के भी कण मिले हुए हैं. राहत की बात यह हो सकती है कि ये ज्वालामुखी की राख ऊपरी वातावरण में तैर रही है इसलिए जमीन पर राख गिरने या फिर शहर में मोटी राख की परत बनने जैसी स्थिति काफी कम है. लेकिन इस राख के कारण हवा की क्वालिटी और विजिबिलिटी पर असर देखने मिलेगा.
मौसम विज्ञानियों और प्रदूषण विशेषज्ञों ने कुछ आश्वासन देते हुए कहा कि चूंकि राख का बादल आकाश में काफी ऊपर, 25,000 से 45,000 फीट की ऊंचाई पर है, इसलिए इससे जमीनी स्तर पर वायु प्रदूषण में कोई खास वृद्धि होने की उम्मीद नहीं है.
ऊपर की पतली परत बादल की तरह काम कर सकती है जिससे रात का तापमान थोड़ा बढ़ सकता है. इसके अलावा, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का बढ़ा हुआ स्तर हिमालय जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए और भी अधिक नुकसानदेह हो सकता है.
खुद को कैसे सुरक्षित रखें?
हवा की धाराएं, ऊंचाई और सूक्ष्म कण मिलकर हजारों किलोमीटर दूर तक असर पहुंचा सकते हैं इसलिए सावधानी के तौर पर भी सभी को अपनी सेफ्टी का ध्यान रखना चाहिए.
आजतक हेल्थ डेस्क