Chronic Kidney Disease: किडनी की बीमारी को अक्सर 'चुपचाप बढ़ने वाली बीमारी' (Silent Disease) कहा जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरुआती समय में किडनी जब खराब होना शुरू होती है तो इसके लक्षण काफी लंबे समय तक महसूस नहीं होते और लोगों को भी अपनी हेल्थ नॉर्मल ही लगती है. फिर जब अचानक किडनी के काम करने में प्रॉब्लम होती है और गंभीर संकेत मिलते हैं, तब जाकर पता चलता है कि किडनी की समस्या हो गई है.
अधिकांश लोग अपने गुर्दे खराब होने का पता तब तक नहीं लगा पाते जब तक स्थिति गंभीर न हो जाए, क्योंकि क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) को 'साइलेंट डिजीज' कहा जाता है. शुरुआती चरणों में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते और गुर्दे चुपचाप अपनी कार्यक्षमता खोते रहते हैं. जब तक ध्यान देने लायक संकेत प्रकट होते हैं, तब तक गुर्दे का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका होता है.
चुपचाप काम करना
किडनी रक्त को साफ करने वाले स्मार्ट फिल्टर की तरह 24/7 काम करते हैं, बिना दर्द या असुविधा के. शुरुआती स्टेज में वे क्षतिग्रस्त हिस्से की भरपाई के लिए कड़ी मेहनत करते रहते हैं, जिससे ब्लड टेस्ट भी सामान्य दिखते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, कई मामलों में रूटीन जांच से ही देर से पता चलता है.
देर से लक्षण
जब लक्षण उभरते हैं, तो ये आमतौर पर थकान, मतली, पैरों में सूजन, खुजली, नींद की समस्या, सांस फूलना या पेशाब में बदलाव के रूप में होते हैं. लोग इन्हें तनाव, उम्र या लाइफस्टाइल से जोड़कर नजरअंदाज कर देते हैं. इससे ट्रीटमेंट और लेट हो जाता है.
मुख्य कारण
डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर क्रॉनिक किडनी डैमेज के प्रमुख कारण हैं जो धीरे-धीरे फिल्टर्स को नुकसान पहुंचाते हैं. अन्य कारक जैसे बार-बार इंफेक्शन, किडनी की सूजन, ज्यादा पेनकिलर (एनएसएआईडी) का सेवन, ऑटोइम्यून बीमारियां और जेनेटिक स्थितियां भी जिम्मेदार हैं.
जल्दी जांच जरूरी
हाई रिस्क वाले लोगों जैसे डायबिटीज/बीपी रोगी, हार्ट डिजीज, परिवार में किडनी समस्या या 60 से अधिक उम्र के लिए ब्लड क्रिएटिनिन या ईजीएफआर और यूरिन एल्ब्यूमिन टेस्ट करवाएं. शुरुआती पता चलने पर बीपी-शुगर कंट्रोल, दवाओं और लाइफस्टाइल से नुकसान रोका जा सकता है. लक्षणों का इंतजार न करें, लैब रिपोर्ट्स पर भरोसा करें.
आजतक हेल्थ डेस्क