नए वायरस की दस्तक? खांसी में सिरप-दवा कुछ नहीं आ रहा काम, एक्सपर्ट्स से जानें क्या है इसकी वजह

देशभर में खांसी के मामले बहुत अधिक बढ़ रहे हैं. क्या यह किसी नए वायरस की दस्तक है? इस सवाल का जवाब ढ़ूंढ़ने के लिए आजतक की टीम ने कई डॉक्टरों से बातचीत की. एक्सपर्ट्स ने इसके लिए मौसम को भी जिम्मेदार ठहराया. दरअसल सुबह और शाम के समय तो मौसम ठंडा रहता है जबकि दिन में भयंकर गर्मी का मौसम महसूस किया जा रहा है. 

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खांसी के मामलों में लगातार देखी जा रही बढ़ोतरी (प्रतीकात्मक तस्वीर) खांसी के मामलों में लगातार देखी जा रही बढ़ोतरी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

धर्मेंद्र कुमार / विशाल शर्मा / सत्यम मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 04 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 12:19 AM IST

देश में बदलते मौसम के साथ यह महसूस किया गया है कि लोगों में खांसी के मामले बहुत अधिक बढ़ रहे हैं. क्या यह किसी नए वायरस की दस्तक है? इस सवाल का जवाब ढ़ूंढ़ने के लिए आजतक की टीम ने कई डॉक्टरों से बातचीत की. इस बीच ICMR ने भी इस पर गाइडलाइंस जारी की हैं. अपने सवाल के जवाब पाने के लिए सबसे पहले हम पहुंचे जयपुर के डॉक्टर गोविंद शरण शर्मा के पास. डॉक्टर गोविंद ने बताया कि आज कल देखा गया है कि खांसी के ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि लोग महीनों तक इस बीमारी से ठीक नहीं हो पा रहे हैं. 

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डॉक्टर गोविंद ने बताया कि कोविड के बाद से यह तो देखने में आया है कि लोगों के खानपान में और उनकी सहन शक्ति में कमी आई है. इसके अलावा एक दूसरी वजह जो लोगों की सेहत पर फर्क डाल रही है, वह ये है कि मौसम में लगातार बदलाव देखे जा रहे हैं. सुबह और शाम के समय तो मौसम ठंडा रहता है जबकि दिन में भयंकर गर्मी का मौसम महसूस किया जा रहा है. 

खांसी की बीमारी बच्चों को ज्यादा शिकार बना रही है?

इस सवाल पर डॉक्टर गोविंद ने बताया कि आमतौर पर बच्चों में इम्यूनिटी वैसे भी कम रहती है. खांसी-जुकाम बच्चों को वैसे भी पहले ही जकड़ लेते हैं. इससे बचाव के लिए बच्चों के लिए भी वैक्सीनेशन की जरूरत है. 

बच्चों में बचाव के लिए करें यह खास उपाय

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नागपुर के एक डॉक्टर का इस मामले पर कहना है कि मौसम में परिवर्तन में भी इस तरह की बीमारियों का मुख्य कारण है. सुबह और शाम में ठंड रहना और दिन में गर्मी रहना इस तरह की बीमारियों को पैदा कर रहा है. एक्सपर्ट के मुताबिक बच्चों और वृद्धों में इस तरह के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं. एक्सपर्ट ने इससे बचने के लिए एक मंत्र भी बताया. P मतलब प्रिवेंशन. यानी अगर खांसी के शुरुआती लक्षण दिखाई दें तो तुरंत बच्चे को स्कूल या बाहर कहीं जाने से रोकें. इससे अन्य लोगों में खांसी कम फैलेगी. 

साथ ही डॉक्टर ने बताया कि बच्चे की डाइट का खास ख्याल रखें. इसके अलावा नागपुर के एक्सपर्ट डॉक्टर ने बताया कि बच्चों की इम्यूनिटी को मजबूत करने के लिए लगातार काम करते रहें. बच्चों को गन्ने का जूस आदि पिलाएं. लेकिन स्वच्छता का खास ध्यान रखें.

क्या यह चिंताजनक है?

उल्लेखनीय है कि ICMR के विशेषज्ञों का इस मामले पर कहना है कि भारत में पिछले दो-तीन महीने से लगातार खांसी का कारण इन्फ्लुएंजा A सब वैरिएंट H3N2 है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के वैज्ञानिकों ने कहा कि एच3एन2, जो पिछले दो-तीन महीनों से व्यापक रूप से प्रचलन में है, अन्य सब वैरिएंट्स की तुलना में ज्यादा अस्पताल में भर्ती होने का कारण बन रहा है. यह वायरस रिसर्च का मुद्दा है.

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ICMR के विशेषज्ञों ने लोगों को वायरस से खुद को बचाने के लिए क्या करें और क्या न करें की एक सूची भी सुझाई है. वहीं दूसरी ओर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने देश भर में खांसी, सर्दी और मतली के बढ़ते मामलों के बीच एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग के खिलाफ सलाह भी दी है.

खांसी नहीं जा रही, बुखार ठीक हो जा रहा है

IMA के मुताबिक मौसमी बुखार 5 से 7 दिनों तक रहेगा. आईएमए की एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस के लिए स्थाई समिति ने कहा कि बुखार तीन दिनों में चला जाता है लेकिन खांसी तीन सप्ताह तक बनी रह सकती है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण वायरल के मामले भी बढ़े हैं. यह ज्यादातर 15 वर्ष से कम और 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में होता है और बुखार के साथ ऐसे मामले ज्यादा उभर कर आ रहे हैं.

आईएमए ने एक बयान में कहा, अभी लोग एजिथ्रोमाइसिन और एमोक्सिक्लेव आदि एंटीबायोटिक्स लेना शुरू कर देते हैं. डॉक्टर के मुताबिक एक बार बेहतर महसूस होने पर इसका उपयोग बंद कर दें. इसे रोकने की जरूरत है क्योंकि यह एंटीबायोटिक प्रतिरोध की ओर जाता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसका सबसे अधिक दुरुपयोग एंटीबायोटिक्स एमोक्सिसिलिन, नॉरफ्लोक्सासिन, ओप्रोफ्लोक्सासिन, ओफ़्लॉक्सासिन और लेवोफ़्लॉक्सासिन में किया जा रहा है. डायरिया और यूटीआई के इलाज के लिए भी लोग इन्हीं दवाईयों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

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लोगों ने सोशल मीडिया पर पूछे सवाल

इस बीमारी के बढ़ते मामलों के बीच लोग सोशल मीडिया पर अपनी बात रखकर चिंता जाहिर कर रहे हैं कि आखिर उसको यह क्या हो रहा है. इन्हीं सब समस्याओं और सवालों के जवाब को लेकर आजतक ने केजीएमयू के पलमोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ वेद प्रकाश से बातचीत की और डॉक्टर ने जानकारी देते हुए बताया कि जब भी मौसम का बदलाव होता है तो जितने भी रेस्पिरेट्री वायरस हैं जिन्हें RNA और फ्लू वायरस भी कहा जाता है. ऐसे में मौसम के बदलने के चलते यह वायरस रेस्पिरेटरी सिस्टम पर अटैक करते हैं और बहुत ही जल्दी म्यूटेट करते हैं. आरएनए वायरस के म्यूटेशन के कारण वायरस के नए-नए वेरिएंट सामने आते हैं, इसके बचाव के लिए हम लोग वैक्सीन देते हैं क्योंकि वायरस के नए-नए वैरिएंट सामने आते हैं.

कोविड के बाद लोगों में आए बदलाव

डॉ वेद बताते हैं कि जब पिछले साल कोविड हुआ तो सभी लोगों ने कोविड एपरोपरिएट बिहेवियर का अच्छे से पालन किया. इसी नाते जो इस तरीके के वायरस और फ्लू हैं, उनमें कमी देखने को मिली है लेकिन इंफेक्शन के कारण और कोविड से बचाव के लिए जो नियम तय किए गए थे, लोग उसका अब पालन नहीं कर रहे हैं. इसीलिए इम्यूनिटी पर भी असर पड़ रहा है और तबीयत बिगड़ रही है. ऐसे में वायरल इंफेक्शन के चलते अपर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन हो सकते हैं, जिनमें खांसी आना, बार-बार जुकाम होना, सिर दर्द करना और बुखार हो जाने के साथ-साथ शरीर-जोड़ों और मसल्स में दर्द होना यह इसके लक्षण है. ऐसा देखने में आ रहा है कि खांसी जुकाम सब हो जाता था तो इसकी रिकवरी एक हफ्ते में हो जाती थी. लेकिन अब रिकवरी होने में दो-दो हफ्ते लग रहे हैं.

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वहीं कछ मामलों में तीन-तीन हफ्ते तक रिकवरी देखी जा रही है. पीसीसीएम के एचओडी ने कहा कि ऐसा पोस्ट कॉविड की वजह से हो रहा है या फिर किसी अन्य कारण से, इस पर स्टडी चल रही है और जैसे ही डेटा मिलेगा तब हम कह सकेंगे ऐसा क्यों हो रहा है और यह वायरल इन्फेक्शन क्या है?

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