दिल्ली-एनसीआर हर बार की तरह इस बार फिर गैस का चैंबर बन चुका है. अभी सर्दी की शुरुआत भी नहीं हुई है लेकिन सांस लेना मुश्किल होने लगा है और प्रदूषण का स्तर भी खतरनाक श्रेणी में पहुंच चुका है. एम्स (AIIMS) के पूर्व डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने वायु प्रदूषण को 'एक साइलेंट किलर' बताया है जो मुसीबत बनता जा रहा है.
शरीर को भी प्रभावित कर रहा प्रदूषण
डॉ. गुलेरिया ने कहा, 'अब यह समस्या सिर्फ सांस की बीमारियों तक सीमित नहीं रही है बल्कि यह अब पूरी बॉडी को भी प्रभावित कर रही है. एयर पॉल्यूशन, खासकर PM2.5 और 0.1 माइक्रॉन से छोटे अल्ट्रा-फाइन पार्टिकल्स सिर्फ फेफड़ों तक ही नहीं जाते बल्कि ये खून में मिलकर शरीर के अन्य हिस्सों तक भी पहुंच जाते हैं. ये ब्लड वेसल्स में सूजन और सिकुड़न पैदा करते हैं जिससे हार्ट अटैक, स्ट्रोक और यहां तक कि डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है.'
एयर पल्यूशन बना संकट
डॉ. गुलेरिया का कहना है, 'लंबे समय तक प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने से सिर्फ खांसी या सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं नहीं होतीं, बल्कि हार्ट प्रॉब्लम्स, हार्ट फेल्योर, स्ट्रोक और कैंसर का भी खतरा बढ़ सकता है. कई नेशनल और इंटरनेशन ऑर्गनाइजेशंस एयर पॉल्यूशन को हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर जैसी बीमारियों का बड़ा कारण मान रही हैं.'
'2024 में दुनियाभर में करीब 8.1 मिलियन लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई थी और यह संख्या कोविड-19 से मरने वालों से भी अधिक है. भारत की हवा ऐसे है, जैसे आप रोजाना 8-10 सिगरेट पी रहे हों. यह साइलेंट है लेकिन यह मौतों की महामारी है.'
फेफड़े-दिल-दिमाग को कर रहा खराब
पिछले करीब 10 साल के आंकड़ों के मुताबिक, साल के करीब 70 प्रतिशत समय हवा सुरक्षित नहीं है और हम अधिकतर समय जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं. लगातार इस जहरीली हवा का एक्सपोजर शरीर में क्रॉनिक इंफ्लेमेशन पैदा करता है जो फेफड़ों, दिल, दिमाग और ब्लड वेसिल्स को प्रभावित करता है. जब बच्चे सुबह या शाम के वक्त बाहर खेलते हैं तो वे तेजी से प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं और ये हवा उनके फेफड़ों पर असर डाल सकती है.
कैसे होगा बचाव?
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि N95 मास्क सही तरीके से पहना जाए तो यह काफी हद तक बचाव दे सकता है. ये मास्क ऐसे फिल्टर की तरह काम करते हैं जो हवा के जहरीले कणों को सांस में जाने से रोकते हैं. लेकिन ये तभी सही से काम करेंगे जब ये नाक और मुंह पर पूरी तरह से फिट हो जाते हैं.
एयर प्यूरीफायर पर अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि भारत के अधिकतर घर पूरी तरह से पैक नहीं होते और हवा भी अंदर आती-जाती रहती है.
माता-पिता बच्चों को दिन में मिड-मॉर्निंग या दोपहर के समय खेलने दें और स्मॉग के समय बाहरी गतिविधियों से बचना चाहिए.
वायु प्रदूषण पर काबू पाने के लिए पर्यावरण फ्रेंडली व्हीकल, पब्लिक व्हीकल और लोगों का सहयोग जरूरी है. इसके अलावा लोगों को पैदल चलने या साइकिल का इस्तेमाल करने के लिए मोटिवेट करना चाहिए. निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल और फैक्ट्रीज से निकलने वाला धुंआ भी प्रदूषण का मुख्य सोर्स हैं. इसलिए कंस्ट्रक्शन वाली जगह पर डस्ट-कंट्रोल जरूरी है. सर्दी के मौसम में इलेक्ट्रिक हीटर जलाएं ना कि कोई लकड़ी या कचरा.
क्लाउड सीडिंग से नहीं मिलेगा फायदा
डॉ. गुलेरिया का कहना है, 'क्लाउड सीडिंग जैसे तरीके हवा की गति और नमी आदि पर निर्भर करते हैं और ये सिर्फ आपको अस्थायी राहत देते हैं लेकिन भारत में दीर्घकालिक और टिकाऊ तरीके की जरूरत है. अगर लंदन, लॉस एंजेलिस और बीजिंग जैसे शहरों की बात की जाए तो वहां पर सख्त कानून से प्रदूषित हवा पर नियंत्रण पा लिया गया है. भारत में भी अगर राजनीतिक और लोगों की इच्छाशक्ति हो तो यहां भी ऐसा होना नामुमकिन नहीं है.'
आजतक लाइफस्टाइल डेस्क