पिछले साल ढाका की सड़कों पर शुरू हुआ विद्रोह प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे पर जाकर रुका. हालात इतने बिगड़े कि हसीना को भारत में राजनीतिक शरण लेनी पड़ी. हालांकि मुश्किल टली नहीं. पूर्व पीएम के खिलाफ जांच चलती रही. अब इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने उन्हें मानवता के खिलाफ गंभीर अपराधों में दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई है. ये वक्त भारत के लिए भी नाजुक है. क्या वो ढाका के दबाव में आकर हसीना को वापस लौटा सकता है या उसके पास दूसरे रास्ते भी हैं?
पिछले साल से ही हसीना की वापसी की मांग हो रही है. दिसंबर 2024 में राजनयिक नोट भेजते हुए ढाका ने कहा था कि सरकार लीगल प्रोसेस के लिए हसीना का प्रत्यर्पण चाहती है. अंतरिम सरकार का आरोप था कि हसीना की वजह से नरसंहार भी हुआ. हालांकि भारत ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इस बीच वहां से इंटरपोल से भी संपर्क किया गया कि वे हसीना को खोजकर ढाका पहुंचाने में मदद करें, लेकिन यहां भी बात नहीं बनी.
लेकिन अब आर-पार का वक्त आ चुका. ढाका स्थित आईसीटी ने हसीना पर लगे आरोपों के आधार पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई है. हसीना पर बेहद गंभीर आरोप लगे हैं. ऐसे में उन्हें बचाने का ये मतलब भी निकल सकता है कि भारत उनके अपराधों का समर्थन कर रहा है. लेकिन इसका दूसरा एंगल भी है.
जिस इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने सजा सुनाई, उसपर पहले भी राजनीतिक इरादों के लिए काम करने का आरोप लग चुका. अब नई सरकार है तो यह भी हो सकता है कि सुनवाई और जांच प्रक्रिया उतनी फेयर न रही हो, या राजनीति से प्रभावित रही हो. इस दलील को रखते हुए भारत हसीना के प्रत्यर्पण से साफ मुकर सकता है.
असल में भारत और बांग्लादेश के बीच हुई प्रत्यर्पण संधि ही ये गुंजाइश दे रही है. यह संधि साल 2013 में हुई, जब हसीना पीएम थीं. इसके मुताबिक, नई दिल्ली को अगर लगे कि मांग के पीछे कोई गलत राजनीतिक मंशा है, तो वो प्रत्यर्पण की गुजारिश को रिजेक्ट कर सकता है.
हालांकि इसमें यह भी है कि गंभीर अपराधों के आरोपी को सौंपने से मना नहीं किया जा सकता. चूंकि हसीना के खिलाफ नरसंहार जैसे आरोप हैं, जिन्हें ट्रिब्यूनल सच भी मान चुका, ऐसे में न सौंपने का रास्ता भी मुश्किल हो सकता है, खासकर ऐसे वक्त पर, जबकि ढाका से हमारे रिश्ते पहले से ही तनाव भरे हैं.
लेकिन इसका भी तोड़ है. प्रत्यर्पण संधि में एक नियम यह भी है कि अगर होस्ट नेशन को लगे कि आरोपी को अपने घर वापस लौटने पर किसी किस्म का खतरा हो सकता है, या फिर उसके खिलाफ गलत एक्शन लिया जा सकता है, तब भी वो आरोपी को सौंपने से मना कर सकता है.
एक रास्ता और भी है. संधि में एक अनुच्छेद है कि दोनों देशों में से कोई भी पार्टी संधि खत्म कर सकती हैं. लेकिन इससे डिप्लोमेटिक रिश्ते कमजोर पड़ जाएंगे. वैसे भी यह कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें वक्त लग सकता है. ऐन सजा के वक्त ऐसा करना संभव नहीं. कुल मिलाकर, भारत फिलहाल राजनीतिक द्वेष को ही हथियार बनाते हुए हसीना को सुरक्षित रख सकता है.
वैसे हसीना भारत के लिए दशकों तक एक भरोसेमंद साझेदार रहीं. सीमा सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी अभियान और पूर्वोत्तर की स्थिरता में उनका बड़ा योगदान था. भारत अचानक उन्हें ऐसे माहौल में वापस भेजकर पुराना रिश्ता खत्म नहीं करना चाहेगा.
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