ईरान का एक कदम और पूरा मिडिल ईस्ट बन जाएगा न्यूक्लियर टाइम बम, क्या परमाणु अप्रसार संधि तोड़ना इतना आसान है?

ईरान को न्यूक्लियर वेपन बनाने से रोकने के लिए इजरायल ने उसपर हमला कर दिया, जिसके बाद से लड़ाई चल रही है. इस बीच ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से बाहर निकलने की तैयारी शुरू कर दी. उसका कहना है कि हथियार उसके लिए जरूरी हैं. तेहरान अगर संधि से छिटक जाए तो क्या बाकी देश भी न्यूक्लियर ताकत जुटाने पर काम करने लगेंगे?

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ईरान और इजरायल के बीच परमाणु ताकत को लेकर संघर्ष जारी है. (Photo- AP) ईरान और इजरायल के बीच परमाणु ताकत को लेकर संघर्ष जारी है. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 जून 2025,
  • अपडेटेड 12:26 PM IST

मिडिल ईस्ट में ईरान और इजरायल के बीच तनाव सैन्य संघर्ष तक जा पहुंचा. इसकी वजह है- परमाणु हथियार. ईरान न्यूक्लियर ताकत जुटाने के काफी करीब पहुंच चुका, और इजरायल ये नहीं चाहता. भारी जंग के बीच ईरान खुलकर खेलने लगा. खबरें हैं कि वहां की संसद परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से बाहर निकलने की कोशिश में है. इसके बाद वो बिना किसी नैतिक बोझ के इसपर काम कर सकेगा. वहीं ये बात भी आ रही है कि तेहरान का ये कदम क्या बाकी देशों को भी परमाणु शक्ति जुटाने के लिए उकसा सकता है!

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कितने करीब है ईरान परमाणु ताकत बनने के

पिछले हफ्ते इजरायल ने दावा किया कि तेहरान के पास सारा साजोसामान जुट चुका और लगभग 15 दिनों में उसके पास न्यूक्लियर हथियार आ जाएगा. वो ऐसा न कर सके, इसके लिए इजरायली सेना सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले करने लगी. हमला अब जंग का रूप ले चुका. इस बीच खबरें आ रही हैं कि ईरान जल्द ही एनपीटी यानी हथियार बनाने से रोकने वाली संधि से बाहर हो सकता है.

एनपीटी से बाहर निकलने के बारे में ईरान ने अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन कथित तौर पर संसद में इसपर बात चल रही है. इधर इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने भी आरोप लगा दिया कि तेहरान संधि की शर्तों को तोड़ रहा है. यानी चुपके से परमाणु शक्ति पर काम कर रहा है. 

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क्या है एनपीटी और क्यों विवादित

परमाणु अप्रसार संधि एक इंटरनेशनल ट्रीटी है, जिसका मकसद न्यूक्लियर हथियारों को बढ़ने से रोकना है. इसके तहत तय हुआ कि जो देश हथियार बना चुके, उनके अलावा कोई और इसपर काम नहीं करेगा. और परमाणु शक्ति पा चुके देश भी धीरे-धीरे हथियारों को खत्म करने पर काम करेंगे. संधि पर लगभग सारे देशों ने साइन किया. हालांकि भारत समेत पाकिस्तान और इजरायल कभी इसका हिस्सा नहीं बने. वहीं उत्तर कोरिया इसमें शामिल तो हुआ लेकिन फिर इससे बाहर निकल गया और न्यूक्स बनाने लगा. 

भारत दुनिया के अमनपसंद देशों में गिना जाता है. लेकिन वो शुरुआत से ही एनपीटी का विरोध करता रहा. दरअसल इस संधि के तहत केवल पांच देशों- अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, को ही परमाणु हथियार रखने की इजाजत रही. ये वो देश हैं, जो साल 1967 से पहले ही ताकत जुटा चुके थे. बाकियों को परमाणु ताकत पाने की मनाही है, चाहे उनकी सुरक्षा जरूरत कुछ भी हो.

क्या दलील है संधि से दूरी पर

भारत समेत इजरायल का तर्क रहा कि अगर परमाणु बम बुरा है, तो सबके लिए बुरा होना चाहिए, इसमें पांच देशों को छूट क्यों मिले! चूंकि दूसरों के भरोसे सुरक्षा नहीं चल सकती. लिहाजा भारत इसे दूर ही रहा. एक और गड़बड़ संधि में दिखती है. इसमें पांच देशों के बारे में कहा गया कि वे धीरे-धीरे अपने हथियार खत्म करेंगे लेकिन इस धीरे-धीरे का कोई पक्का टाइमफ्रेम नहीं. 

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क्या संधि से हटना आसान है

ईरान ने वैसे संधि पर हामी भरी थी, लेकिन अब अपनी सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए वो इससे बाहर भी आ सकता है. वैसे ही अगर वो परमाणु ताकत जुटा ले तो उसे तकनीकी रूप से इससे बाहर निकला ही माना जाएगा. एनपीटी में किसी भी दूसरी संधि की तरह खुद को हटाने का ऑप्शन है. कोई देश राष्ट्रीय हितों पर खतरा बताते हुए 90 दिन का नोटिस देकर संधि तोड़ सकता है. इसके बाद तेहरान को खुले तौर पर परमाणु हथियार बनाने की छूट मिल जाएगी. 

अगर सिर्फ एक अर्जी देकर एनपीटी से बाहर निकला जा सकता है, तो फिर देश इसमें क्यों टिके हुए?

क्योंकि इससे देशों को इंटरनेशनल वैधता मिलती है. पश्चिम देश उसे शांतिप्रिय मानते हुए कई तरह की मदद देते हैं. एनपीटी में शामिल सरकारें बड़े देशों से परमाणु रिएक्टर खरीद एनर्जी पर काम कर सकती हैं. अब जैसे ही कोई देश बाहर निकलता है, दुनिया मान लेती है कि वह अब बम बनाएगा या बना रहा है. इसका सीधा असर कूटनीति, व्यापार और सुरक्षा पर पड़ता है. बड़े देश उसे धमकाने लगते हैं या शक करते हैं. मसलन नॉर्थ कोरिया को ही लें तो साल 2003 में वो संधि से बाहर निकला. इसपर यूएन ने उसपर भारी पाबंदियां लगा दीं. तब से वो अलग-थलग पड़ा हुआ है. 

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तेहरान संधि से अलग हो जाए तो क्या होगा

मिडिल ईस्ट में हथियारों की दौड़ शुरू हो सकती है. बहुत हैरानी नहीं होगी अगर जल्द ही सऊदी अरब, तुर्की, मिस्र जैसे देश भी न्यूक्स पर काम शुरू कर दें. 

इजरायल इस मौके को हाथ से शायद ही जाने दे और खुलकर जंग छेड़ दे. इससे उसे कई चरमपंथी समूहों से भी छुटकारा मिल जाएगा. अमेरिका भी इस हमले में तेल अवीव के साथ आ सकता है.

सैन्य हमले से अलग भारी आर्थिक प्रतिबंध लग जाएंगे. तो केवल बम बनाना वही बात है कि तिजोरी तो भरी हुई है, लेकिन थाली खाली है. 

एक देश के बाद कई देश संधि से निकलेंगे, जिससे पूरा इलाका न्यूक्लियर टाइम बम हो जाएगा, जबकि पहले से ही वे आपस में लड़-भिड़ रहे हैं.

एक कम चर्चित अनुमान और भी है. हो सकता है कि संधि से बाहर होते ही ईरान झटपट न्यूक्लियर वेपन बना ले. ऐसे में कोई भी देश उसपर हमला करने की सोचेगा भी नहीं, जैसा कि उत्तर कोरिया के केस में भी हुआ. 

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