टनल में फंसे मजदूरों को किसी भी वक्त बाहर निकाला जा सकता है. एनडीआरएफ की टीम पाइप के जरिए मजदूरों तक पहुंच गई है. अंदर स्ट्रेचर भी पहुंचाए जा चुके हैं. अब कुछ ही घंटों के भीतर रेस्क्यू पूरा हो सकता है. इस कामयाबी का बड़ा क्रेडिट रैट होल माइनर्स को जाता है. इन्होंने मशीन से ज्यादा तेजी से खुदाई मैनुअली ही कर डाली.
क्या है ये प्रोसेस
रैट होल माइनिंग में खुदाई करने वाले मजदूर कोयला या खनिज निकालने के लिए संकरे बिलों के जरिए अंदर जाते थे. जैसा कि नाम से समझ आता है, ये तकनीक चूहों के बिल खोदने की तरह काम करती है. इसमें माइनिंग करने वाले लोग चार फीट खुदाई करके ऐसे गड्ढों में घुसते, जहां एक इंसान के ही जाने की जगह हो. जैसे-जैसे गड्ढा गहरा होता, वे बांस की सीढ़ी और रस्सियों के सहारे नीचे जाते और फिर कोयला जमा करते.
क्यों हुआ विवाद
मेघालय में इस तरीके से ज्यादा माइनिंग हुआ करती थी. लेकिन जल्द ही इसके खतरे सामने आए. माइनर्स बिना किसी सेफ्टी उपकरण के नीचे उतर जाते. अगर बारिश का मौसम हो तो गड्ढों में पानी भर जाता और श्रमिक फंस जाते थे.
रैट होल माइनिंग के भी दो तरीके थे
साइड कटिंग मैथड में श्रमिक पहाड़ी ढलानों में सुरंगों की खुदाई करते, जब तक कि अंदर उन्हें कोयले की परत न मिल जाए. मेघालय की पहाड़ियों में ये 2 मीटर जितनी दूरी पर हो जाता था. दूसरा तरीका ज्यादा मेहनत वाला, और उतना ही खतरनाक भी था, जिसमें वर्टिकली खुदाई होती.
चूंकि सुरंगों का साइज छोटा होता था, तो इसमें जाने के लिए कई बार महिलाओं, यहां तक कि छोटे बच्चों को काम पर लगा दिया जाता. वे घुटनों के बल भीतर रेंगकर कोयला निकालने का काम करते. इसके खतरों को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इस प्रैक्टिस पर पाबंदी लगा दी. अब कोई भी वैध माइन इस तरह का काम नहीं कर सकती थी. NGT ने साफ कह दिया कि ये तरीका न तो प्रैक्टिकल है, और न ही सेफ.
पानी में फंसकर हुई मौतें
रैट माइनिंग तब भी चलती रही और बहुतों की मौत हुई. साल 2018 में इसी वजह से 15 श्रमिक गड्ढों में फंस गए. तब दो महीने चले रेस्क्यू अभियान में दो मृत श्रमिक ही मिल सके. साल 2022 में मेघालय हाई कोर्ट ने जांच में पाया कि रैट होल माइनिंग अब भी जारी है.
सिलक्यारा में क्यों पड़ी जरूरत
यहां सुरंग के भीतर मशीन के पार्ट्स टूट या फंस रहे थे. बारिश का भी डर है. अगर एक बार सुरंग में पानी भरने लगा तो वापसी का रास्ता आसान नहीं होगा. मजदूर भीतर से सिरदर्द और उल्टियों की शिकायत भी करने लगे, जो ऑक्सीजन कम होने का संकेत है. यही वजह है कि इसके लिए रैट माइनिंग को भी आजमाने का फैसला लिया गया.
किस तरह किया रैट माइनर्स ने काम
इसमें काम 3 चरणों में हो रहा था. एक व्यक्ति खुदाई करता, दूसरा मलबा जमा करता, और तीसरा उसे बाहर करता. बेहद मेहनत और जोखिम वाले इस काम में खतरे को कम करने के लिए बहुत से इंतजाम भी किए गए. ऑक्सीजन के लिए ब्लोअर लगाया गया ताकि कड़ी मेहनत कर रहे मजदूरों को सांस की परेशानी न हो.
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