मध्य प्रदेश में कुछ ही महीनों में चुनाव हैं और प्रधानमंत्री मोदी ने राजधानी भोपाल से चुनावी बिगुल फूंक दिया है. भोपाल में पीएम मोदी ने 'मेरा बूथ, सबसे मजबूत' कार्यक्रम को संबोधित किया. इस दौरान एक महिला कार्यकर्ता ने उनसे समान नागरिक संहिता पर भी सवाल किया. जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'आजकल समान नागरिक संहिता के नाम पर भड़काया जा रहा है. परिवार के एक सदस्य के लिए एक नियम हो, दूसरे सदस्य के लिए दूसरा नियम हो तो क्या वो घर चल पाएगा? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा?'
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि कॉमन सिविल कोड लाओ, लेकिन ये वोटबैंक के भूखे लोग... वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने पसमंदा मुसलमानों का शोषण किया है, लेकिन उनकी चर्चा कभी नहीं हुई.'
समान नागरिक संहिता एक ऐसा मुद्दा रहा है, जो हमेशा से बीजेपी के एजेंडे में रहा है. 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार अपने घोषणापत्र में इस मुद्दे को शामिल किया था. 2019 में भी बीजेपी ने इसे दोहराया था. कई बीजेपी शासित राज्यों में भी समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही जा रही है. बीजेपी का मानना है कि जब तक समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती.
लेकिन ये समान नागरिक संहिता क्या है?
- समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून. अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है.
- हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों से जुड़ी बातें हैं. मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों को अपना पर्सनल लॉ.
- समान नागरिक संहिता को अगर लागू किया जाता है तो सभी धर्मों के लिए फिर एक ही कानून हो जाएगा. मतलब जो कानून हिंदुओं के लिए होगा, वही कानून मुस्लिमों और ईसाइयों पर भी लागू होगा.
- अभी हिंदू बिना तलाक के दूसरे शादी नहीं कर सकते, जबकि मुस्लिमों को तीन शादी करने की इजाजत है. समान नागरिक संहिता आने के बाद सभी पर एक ही कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या मजहब का ही क्यों न हो.
पर चुनौतियां भी हैं कई?
- अगस्त 2018 में 21वें विधि आयोग ने अपने कंसल्टेशन पेपर में लिखा था, 'इस बात को ध्यान में रखना होगा कि इससे हमारी विविधता के साथ कोई समझौता न हो और कहीं ये हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरे का कारण न बन जाए.'
- समान नागरिक संहिता का प्रभावी अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा. 21वें विधि आयोग ने कहा था कि इसके लिए देशभर में संस्कृति और धर्म के अलग-अलग पहलुओं पर गौर करने की जरूरत होगी.
- समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे सभी धर्मों पर हिंदू कानूनों को लागू कर दिया जाएगा.
- विरोध करने वाले ये भी कहते हैं कि इससे अनुच्छेद 25 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन होगा. अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है.
- समान नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता है. उसका कहना है कि इससे समानता नहीं आएगी, बल्कि इसे सब पर थोप दिया जाएगा.
फिर क्या समाधान है इसका?
- 2018 में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समान नागरिक संहिता पर कोई आम सहमति नहीं होने के कारण पर्सनल लॉ में ही थोड़े सुधार करने की जरूरत है.
- आयोग ने कहा था कि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि पर्सनल लॉ की आड़ में मौलिक अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है और इसे दूर करने के लिए कानूनों में बदलाव करना चाहिए.
aajtak.in