चुनाव की ओर बढ़ रहे हरियाणा में यू-टर्न... दुष्यंत चौटाला को आखिर कांग्रेस संग क्यों दिख रहा भविष्य? 5 Factor

बीजेपी सरकार से तीन निर्दलीय विधायकों की समर्थन वापसी के ऐलान के बाद हरियाणा में सियासी हलचल पैदा हो गई है. इस बीच जेजेपी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला का कहना है कि बीजेपी सरकार गिराने के लिए वो कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार हैं. ऐसे में जानते हैं कि दो महीने पहले तक बीजेपी सरकार में सहयोगी रहे दुष्यंत चौटाला अचानक कांग्रेस के साथ जाते क्यों दिख रहे हैं?

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दुष्यंत चौटाला. दुष्यंत चौटाला.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 मई 2024,
  • अपडेटेड 2:36 PM IST

लोकसभा चुनाव की वोटिंग के बीच हरियाणा की सियासत में जबरदस्त हलचल हो गई है. तीन निर्दलीय विधायकों ने अचानक बीजेपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. इससे दो महीने पहले ही मुख्यमंत्री बने नायब सिंह सैनी की सरकार संकट में आ गई है.

जिन तीन निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया है, उनमें सोमवीर सांगवान (दादरी), रणधीर सिंह गोलेन (पुंडरी) और धरमपाल गोंदेर (नीलोखेड़ी) शामिल हैं. इन तीन विधायकों ने बीजेपी से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया है.

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इस बीज बीजेपी की सहयोगी रही जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने भी बड़ा ऐलान कर दिया. जेजेपी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा कि बीजेपी सरकार गिराने के लिए उनकी पार्टी कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार है.

इतना ही नहीं, जेजेपी ने राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को चिट्ठी लिखकर कहा है कि उनकी पार्टी सरकार बनाने वाली किसी भी राजनीतिक पार्टी को समर्थन देने के लिए कहा है. जेजेपी ने हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग भी की है.

ऐसे में समझते हैं कि चार साल से भी ज्यादा लंबे समय तक बीजेपी की साथ सरकार में शामिल रहे दुष्यंत चौटाला ने अचानक कांग्रेस का साथ देने के लिए तैयार क्यों हो गए?

बीजेपी का साथ बिल्कुल नहींः चौटाला

हिसार में मीडिया से बात करते हुए दुष्यंत चौटाला ने कहा, 'मैं सदन में विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा से कहना चाहता हूं कि विधानसभा की मौजूदा संख्या के आधार पर जब सरकार अल्पमत में आ गई है, तो ऐसे में लोकसभा चुनाव के बीच अगर इस सरकार को गिराने के लिए कोई भी कदम उठाया जाता है, तो हम उन्हें बाहर से समर्थन देने के लिए तैयार हैं.'

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उन्होंने कहा, 'अब कांग्रेस को सोचना होगा कि क्या वो बीजेपी सरकार को गिराने के लिए कोई कदम उठाएगी.'

चौटाला ने बीजेपी के साथ जाने की संभावनाओं को भी खारिज कर दिया. दो महीने पहले मार्च में ही बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन टूट गया था.

उन्होंने कहा, 'मैं साफ कर देना चाहता हूं कि जेजेपी अब बीजेपी के साथ नहीं जाएगी.' उन्होंने ये भी मांग रखी कि सैनी या तो बहुमत साबित करें या फिर इस्तीफा दें.

पर कांग्रेस का साथ क्यों?

1. बीजेपी से नाराजगीः दुष्यंत चौटाला बीजेपी से नाराज हैं. चार साल तक उनकी पार्टी ने बीजेपी सरकार को समर्थन दिया. लेकिन लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मतभेदों के चलते गठबंधन टूट गया. चौटाला फिलहाल तो वापस बीजेपी के साथ जाने के मूड में नहीं हैं. इसलिए वो कांग्रेस का साथ देकर बीजेपी को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे.

2. वोट बैंक की राजनीतिः बीजेपी का साथ न देने की एक वजह जाट वोटों की राजनीति भी है. दुष्यंत चौटाला की जेजेपी जहां जाट पार्टी है, वहीं बीजेपी को गैर-जाट पार्टी समझा जाता है. हरियाणा में जाट 25 फीसदी के आसपास हैं. और अगर ये सारा वोट एक पार्टी को मिल जाए तो बाकियों को नुकसान होना लगभग तय है.

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3. जाटों का गणितः हरियाणा में लोकसभा के बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां की 90 विधानसभा सीटों में से 36 पर जाटों की मजबूत स्थिति है. सीवोटर ट्रैकर के मुताबिक, 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी को 12.7 फीसदी, कांग्रेस को 38.7 फीसदी और बीजेपी को 33.7 फीसदी जाट वोट मिले थे. हालांकि, हरियाणा के जाट अब बीजेपी से नाराज बताए जा रहे हैं और जेजेपी उसका साथ देकर अपने कोर वोटर को नाराज नहीं करना चाहती. 

4. जनता का मूड भांप गई जेजेपीः पहलवानों के प्रदर्शन के कारण हरियाणा की जनता बीजेपी से नाराज है. इसका खामियाजा पार्टी को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है. विधानसभा चुनाव में जेजेपी के किंग तो नहीं, लेकिन किंगमेकर बनने की संभावना है. अगर बीजेपी का वोटर छिटककर कांग्रेस को मिलता है, तो हो सकता है कि कांग्रेस और जेजेपी मिलकर सरकार बना लें.

5. किसान आंदोलन का असरः किसानों का विरोध प्रदर्शन और उस पर केंद्र और हरियाणा सरकार ने जिस तरह प्रतिक्रिया दी, उससे हरियाणा के लोग बीजेपी और जेजेपी से नाराज हैं. ये नाराजगी का ही असर है कि 5 अप्रैल को दुष्यंत चौटाला को हिसार के नारा गांव में आने से रोक दिया गया था. लेकिन अब चौटाला फिर इन्हें साधने में जुटे हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें खुद को बीजेपी से दूर दिखाना होगा.

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तो क्या अभी गेम पलट सकते हैं चौटाला?

90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में इस वक्त 88 विधायक हैं. इनमें से बीजेपी के 40, कांग्रेस के 30 और जेजेपी के 10 विधायक हैं. इंडियन नेशनल लोक दर और हरियाणा लोकहित पार्टी के 1-1 और 6 निर्दलीय विधायक हैं.

बहुमत का आंकड़ा 45 है और सैनी सरकार के पास अभी 43 विधायकों का समर्थन है. हालांकि, बीजेपी ने 47 विधायकों के समर्थन का दावा किया है. बीजेपी का दावा है कि तीन निर्दलीयों के साथ-साथ चार निर्दलीय भी उसके साथ हैं. इस तरह से उसके पास 47 विधायकों का समर्थन है और सरकार पर कोई संकट नहीं है.

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, जेजेपी विधायक जोगी राम सिहाग और राम निवास सुरजाखेड़ा ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान किया है. एक और जेजेपी विधायक देवेंदर बबली ने भी 11 मई को अपने समर्थकों की बैठक बुलाई है. वहीं, जेजेपी के विधायक राम करण काला भी ऐसा ही कुछ करने की तैयारी कर रहे हैं.

हालांकि, जेजेपी ने विधायकों को बीजेपी के साथ जाने से रोकने के लिए व्हिप जारी किया है. दुष्यंत चौटाला का कहना है कि पार्टी के विधायक व्हिप को मानने के लिए बाध्य हैं और अगर कोई पार्टी लाइन से हटकर किसी और का समर्थन करता है तो उसे पहले इस्तीफा देना होगा.

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क्या सैनी को साबित करना होगा बहुमत?

नहीं. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को अभी विधानसभा में बहुमत साबित करने की जरूरत नहीं है. जब तक राज्यपाल खुद उनसे ऐसा करने को न कहें. क्योंकि 13 मार्च को ही नायब सिंह सैनी की सरकार ने बहुमत साबित साबित किया है. और नियम ये है कि इसके 6 महीने तक कोई विश्वास मत परीक्षण नहीं हो सकता. यानी 13 सितंबर तक विश्वास मत परीक्षण कहीं कोई नहीं ला सकता है.

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