गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बने केबल ब्रिज टूटने से अब तक 134 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. ये पुल 765 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा था और 143 साल पुराना था. इंजीनियरिंग का चमत्कार कहे जाने वाले इस पुल का उद्घाटन 1879 में किया गया था.
मोरबी का ये केबल ब्रिज राजा वाघजी रावजी ने बनवाया था जिन्होंने 1922 तक मोरबी पर शासन किया था. बताया जाता है कि वाघजी ठाकोर ने इस पुल को बनाने का फैसला इसलिए लिया था, ताकि दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ा जा सके.
राजधानी गांधीनगर से 300 किलोमीटर मच्छु नदी पर बना ये केबल ब्रिज 7 महीने से बंद था. पुल की मरम्मत का काम अजंता मैनुफैक्चरिंग (ओरेवा ग्रुप) को मिला था. ये कंपनी घड़ियां, एलईडी लाइट, सीएफएल बल्ब, ई-बाइक बनाती है. हालांकि, अब ये जानकारी सामने आई है कि अजंता मैनुफैक्चरिंग ने मरम्मत का ठेका किसी दूसरी कंपनी को दे दिया था.
ये ठेका किसी पांचाल नाम के मालिकाना हक वाली देवप्रकाश सॉल्यूशन को दिया गया था. यानी, अजंता मैनुफैक्चरिंग ने पहले कॉन्ट्रैक्ट लिया और फिर मरम्मत के काम का जिम्मा देवप्रकाश सॉल्यूशन को सौंप दिया.
रेनोवेशन के बाद पुल चार दिन पहले ही दोबारा खोला गया था. दिवाली के बाद पहला रविवार होने की वजह से इस पुल पर भीड़ जमा हो गई और ये टूट गया. हादसा कैसे हुआ, इसकी जांच अब SIT कर रही है.
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क्या है अजंता कंपनी का इतिहास?
1971 में ओधावजी पटेल ने 1 लाख रुपये की लागत से मोरबी में अजंता कंपनी की शुरुआत की थी. उस समय ये किराये की जगह पर खोली गई थी.
अजंता कंपनी शुरू में केवल दीवार घड़ी बनाती थी. महज 1 लाख रुपये से शुरू हुई इस कंपनी का सालाना टर्नओवर एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है. दीवार घड़ी बनाने के अलावा कंपनी अब होम अप्लायंसेस, इलेक्ट्रिकल अप्लायंसेस और ई-बाइक भी बनाती है. अहमदाबाद में कंपनी का हेडक्वार्टर है, जिसे 'ओरेवा हाउस' कहा जाता है.
कंपनी का दावा है कि आज घड़ियां बनाने वाली ये दुनिया की सबसे बड़ी मैनुफैक्चरिंग कंपनी है. गुजरात के कच्छ जिले के समाखियाली में कंपनी का देश का सबसे बड़ा मैनुफैक्चरिंग प्लांट है. ये प्लांट 200 एकड़ से ज्यादा के इलाके में बना हुआ है.
ओधावजी पटेल को 'दीवार घड़ियों का जनक' भी कहा जाता है. 18 अक्टूबर 2012 को 87 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. उनके बाद उनके बेटे जयसुख पटेल ने अजंता मैनुफैक्चरिंग (ओरेवा ग्रुप) के मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए. जयसुख पटेल के बेटे चिंतन पटेल ग्रुप के डायरेक्टर हैं.
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पुल का कॉन्ट्रैक्ट कैसे मिला?
ये दूसरी बार है जब कंपनी को मोरबी के पुल का कॉन्ट्रैक्ट मिला है. मोरबी नगरपालिका के चीफ ऑफिसर संदीप सिंह ने बताया कि 2008 में पुल का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था. ये कॉन्ट्रैक्ट 10 साल यानी 2018 तक था.
उन्होंने बताया कि 2018 के बाद इस पुल का कॉन्ट्रैक्ट किसी को नहीं दिया गया. इसी साल मार्च में एक बार फिर से इसी कंपनी को 15 साल के लिए पुल के रखरखाव और मरम्मत का ठेका दिया गया था. इसके तहत, ओरेवा ग्रुप 2037 तक इस केबल ब्रिज का कामकाज और रखरखाव का जिम्मा संभालेगी.
समझौते के तहत कंपनी को रखरखाव और रेनोवेशन के लिए 8 से 12 महीने का समय लेना चाहिए था, लेकिन पुल को पहले ही खोल दिया गया.
संदीप सिंह ने बताया कि मार्च में ब्रिज को रेनोवेशन के लिए बंद कर दिया गया था. 26 अक्टूबर को ही इस ब्रिज को दोबारा खोला गया था. 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष होता है.
उन्होंने बताया कि रेनोवेशन का काम पूरा होने के बाद इसे आम लोगों के लिए खोला गया था. हालांकि स्थानीय नगरपालिका ने रेनोवेशन वर्क के बाद फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया था. यानी, बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के ही इस पुल को खोल दिया गया.
जयसुख पटेल कहां है?
जयसुख पटेल कहां है, इस बारे में अभी तक पता नहीं चल पाया है. वो अभी तक पुलिस के सामने भी पेश नहीं हुए हैं. पटेल अहमदाबाद या मोरबी के दफ्तर में भी नहीं हैं. पटेल को गुजरात में राजनेताओं का करीबी भी माना जाता है.
हालांकि, बताया जा रहा है कि पुल की मरम्मत का काम थर्ड पार्टी को दिया गया था. ये ठेका किसी पांचाल नाम के मालिकाना हक वाली देवप्रकाश सॉल्यूशन को दिया गया था. यानी, अजंता मैनुफैक्चरिंग ने पहले कॉन्ट्रैक्ट लिया और फिर मरम्मत के काम का जिम्मा देवप्रकाश सॉल्यूशन को सौंप दिया.
(इनपुटः अरविंद ओझा, सौरभ वक्तानिया)
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