एक नाइट क्लब में लगी आग की वजह से चर्चा में आया गोवा अपनी नाइटलाइफ ही नहीं, बल्कि वास्तुकला के लिए भी ख्यात रहा. यहां की संकरी गलियों और लाल-सफेद घरों में यूरोपीय छाप दिखती है. लगभग पांच सौ सालों तक यहां पुर्तगाली शासन रहा, जिसकी वजह से यहां काफी खूबसूरत चर्च भी हैं और विदेशी सुगंध लिए खानपान भी. कुल मिलाकर, गोवा को गोवा बनाने में पुर्तगाल का बड़ा हाथ रहा.
दिसंबर 1961 में जब पुर्तगालियों ने हारकर गोवा को मुक्त किया, तब तक यह क्षेत्र पूरी तरह से पुर्तगाली रंगढंग में ढल चुका था. हालांकि इससे पहले भी राज्य में कई सत्ताएं आती-जाती रहीं. कोंकण इलाके के दक्षिण-पश्चिमी समुद्री तट पर बसे इलाके में जाएं तो लगता है कि छोटा-मोटा यूरोप दिख गया हो. यहां के लोगों के रहन-सहन से लेकर फूड और वास्तु तक पर यूरोपियन शैली दिखती है. लेकिन पहले यहां कई हिंदू शासक रह चुके.
गोवा में पुर्तगालियों के आने से पहले उसकी कहानी दो बड़े और लंबे साम्राज्यों से बनती है- कदंब और विजयनगर. दोनों ने गोवा को अलग-अलग रंग दिए, और इन्हीं की नींव पर बाद में पुर्तगालियों ने कब्जा जमाया.
सबसे पहले यहां शक्तिशाली कदंब वंश का शासन रहा, जो 10वीं से 14वीं शताब्दी तक गोवा में रहे. कदंब समुद्री व्यापार के उस्ताद थे. उन्होंने मसालों, रेशम, धान और समुद्री उत्पादों का ऐसा बड़ा नेटवर्क खड़ा किया कि गोवा धीरे-धीरे पश्चिमी तट का बिजनेस हब बन गया. कई मंदिरों और शहरों की नींव उसी दौर में पड़ी.
कदंबों के पतन के बाद गोवा कुछ कमजोर पड़ा लेकिन कुछ ही वक्त के लिए. इसके बाद असली स्थिरता विजयनगर साम्राज्य के शासन में आई. चौदहवीं सदी से लगभग पंद्रहवीं सदी तक इस सत्ता में गोवा व्यापारिक ही नहीं, रणनीतिक तौर पर भी आगे बढ़ा. यहां कर्नाटक, तटीय कोंकण, अरब और फारस के लोग आकर बसने लगे थे और एक मल्टी-कल्चरल इलाका बनने लगा था.
समुद्री रूट के कारण यहां बाहर से आने वालों का असर भी दिखता था लेकिन कदंब और विजयनगर दोनों ही के दौरान यहां मंदिर और हिंदू तीर्थस्थान बढ़े. कदंब काल में गोवा मंदिरों, तीर्थस्थलों और लोक-परंपराओं का केंद्र था. महादेव, देवी-उपासना और कोंकणी देवताओं से जुड़े उत्सव खूब मनते थे.
गांवों में देवालयों और देवस्थान समितियों का बड़ा असर था. शासक खुद शिव-भक्त थे, इसलिए मंदिर स्थापत्य, नृत्य और संगीत फले-फूले. कोंकणी भाषा का शुरुआती साहित्य भी इसी दौर में पनपा.
विजयनगर साम्राज्य के दौरान यह और मजबूत हुआ. ये शासक भी हिंदू थे, इसलिए उन्होंने मंदिरों को संरक्षण दिया और तटीय व्यापार को बढ़ावा दिया. गोवा में कर्नाटक, तटीय कोंकण और यहां तक कि अरब लोगों का मेल दिखाई देता था, पर सामाजिक ढांचा, जैसे गांवों की व्यवस्था, उत्सव, खान-पान हिंदू कोंकणी परंपरा पर ही टिका था.
15वीं शताब्दी के अंत में हालात बदले, जब दक्कन की राजनीति उथल-पुथल में आई. विजयनगर कमजोर हुआ और गोवा आदिलशाही सुल्तानों के अधीन पहुंच गया. इस दौर में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ कि गोवा मल्टी-कल्चरल से इस्लामी प्रशासन वाले समुद्री बंदरगाह में बदलने लगा. अरबी और फारसी व्यापारी ज्यादा सक्रिय हुए. पुराने मंदिर-नगरों की जगह व्यापारिक कस्बे बनने लगे. हालांकि समुद्री तट के चलते गोवा व्यापार का चमकता हुआ सेंटर बन चुका था.
यही चमक पुर्तगालियों को खींच लाई. साल 1510 में अफोंसो द अल्बुकर्क ने आदिलशाहों को हराकर गोवा पर कब्जा कर लिया. यहीं से गोवा की कहानी बिल्कुल नई दिशा में मुड़ गई. धर्म से लेकर वास्तुकला, भाषा, खान-पान और यहां तक कि रोजमर्रा की आदतें भी बदलने लगीं.
साल 1510 में कब्जे के साथ ही पुर्तगालियों ने गोवा को ईसाईकरण शुरू कर दिया. ढेर के ढेर चर्च बने. मिशनरी स्कूल खुले और कैथोलिक कस्टम तेजी से फैला. कई हिंदू परिवारों ने राजनीतिक और सामाजिक दबावों के चलते धर्मांतरण कर लिया तो कई वाकई प्रभावित होकर बदलने लगे. दिलचस्प ये रहा कि लोगों ने पुर्तगाली कल्चर को अपनाया तो लेकिन अपनी भी कई चीजें बनाए रखीं. इससे एक तरह का फ्यूजन कल्चर बन गया, जिसमें यूरोप का छौंक लगा हुआ था.
गोवा की वास्तुकला में सबसे बड़ा बदलाव इसी दौर में आया. पुराने कदंब और विजयनगर शैली के मंदिर और शहरों की जगह अब बरोक और मैनुएलिन शैली के बड़े-बड़े चर्च, सफेद चूने से पुते भवन, लाल टाइलों वाले पुर्तगाली घर और संकरी यूरोपीय गलियां दिखने लगीं. ये भारत में सबसे अलग था. उस दौर की इमारतें आज भी उसी तरह से सहेजी हुई हैं, जो देसी ट्रैवलर्स को लुभाती हैं.
वेस्टर्न संगीत भी कोंकणी के साथ घुल-मिल गया. दुल्हनें सफेद पोशाक पहनने लगीं. काजू की शराब आ गई. बेकरीज खुलने लगीं. और कई तरह के यूरोपीय त्योहार मनने लगे, जो पहले कभी नहीं सुने गए थे. क्रिसमस और नया साल यहां लोकल धार्मिक त्योहार की तर्ज पर मनाया जाने लगा. एशिया में सबसे लंबा चला यूरोपीय औपनिवेशिक शासन गोवा में ही रहा, लगभग पांच सौ साल.
गोवा फतह के लिए काफी सैनिक यहीं बसने लगे और स्थानीय महिलाओं से शादियां कर लीं. इससे एक बड़ी आबादी एंग्लो-एशियन बन गई, जो खुद को यूरोपीय संस्कृति के ज्यादा करीब पाने लगी. इस वक्त नाइट क्लब का कंसेप्ट कम था, लेकिन रात में मेलजोल, मनोरंजन, कार्निवल्स काफी कॉमन थे. यही चीज आगे चलते हुए नब्बे के दशक में नाइट लाइफ में बदल गई. लेकिन गोवा के खुलेपन में यह बात पहले से दिखती रही थी.
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