तटीय राज्य केरल में साल 2016 में ब्रेन ईटिंग अमीबा का पहला मामला मिला था, इसके बाद से सिलसिला चल रहा है. इस साल की शुरुआत से सितंबर के मध्य तक ऐसे 65 से ज्यादा केस आ चुके. केरल में इसे लेकर दो राजनीतिक धड़े हो चुके. पक्ष और विपक्ष आरोप और स्पष्टीकरण में उलझे हुए हैं, वहीं यह बात चर्चा में है कि आखिर क्यों राज्य में ये दुर्लभ बीमारी दिख रही है.
क्या है यह बीमारी
बोलचाल की भाषा में इसे ब्रेन ईटिंग डिसीज कहते हैं, जो कि दरअसल ब्रेन में संक्रमण को बताता है. इसका असल नाम है- प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोइन्सेफलाइटिस (पीएएम), जोअमीबा की एक खास किस्म की वजह से होने वाली बीमारी है.
क्यों फैलता है संक्रमण
शुरुआत में माना गया कि यह केवल स्विमिंग पूल या तालाब या किसी भी वॉटर बॉडी में तैरने से होता है. इस दौरान पानी में पाया जाने वाला अमीबा नाक के होते हुए भीतर ब्रेन तक पहुंच जाता है और संक्रमण फैल जाता है. पानी के अलावा यह मिट्टी में भी मिलता है और अगर हाथ संक्रमित होते हुए नाक तक पहुंचे तो भी जोखिम हो सकता है.
बीमार से स्वस्थ शरीर में यह नहीं फैलता और न ही गंदा पानी पीने से भीतर पहुंच सकता है. यूनाइटेड स्टेट्स सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, इसका सोर्स नाक है, वहीं ऑलफैक्ट्री नर्व के पैसेज से होते हुए अमीबा की मस्तिष्क तक एंट्री होती है.
इसके बाद क्या होता है
ब्रेन तक पहुंचकर अमीबा ब्रेन के ऊतकों को खाने लगता है. इससे भयंकर सूजन आ जाती है. बीमारी के साथ समस्या ये है कि इसके लक्षण तब सामने आते हैं, जब इंफेक्शन फैल चुका हो. चूंकि ये रेयर बीमारी है और लक्षण कई बीमारियों से मिलते-जुलते हैं इसलिए पहचान भी कई बार नहीं हो पाती और मर्ज जानलेवा हो जाता है.
क्या हैं लक्षण और क्यों खतरनाक
शुरुआती संकेतों में तेज बुखार, मतली या उल्टी, सिर दर्द और शरीर में दर्द है. संक्रमण के चार से पांच दिन बाद ये दिखने लगता है. मर्ज पकड़ा न गया तो लक्षण बिगड़ते चले जाते हैं. गर्दन जकड़ जाती है, मतिभ्रम होने लगता है और शरीर का संतुलन जा सकता है. बीमार कोमा में भी जा सकता है.
जब तक समझ आता है, तब तक अक्सर ब्रेन में सूजन बढ़ चुकी होती है और मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है. इसमें मौत की दर 97 प्रतिशत होती है. सीडीसी के अनुसार, बीमारी के लक्षण दिखने से 18 दिनों के भीतर अधिकतर मरीजों की मौत हो जाती है. अमेरिका से लेकर भारत और पाकिस्तान में भी ये संक्रमण दिखा. सीडीसी ने माना कि साल 1971 से लेकर 2023 तक कुल मरीजों में से कुछ ही बच सके.
केरल में मौत की दर ग्लोबल औसत से काफी कम
राज्य में इसके मामले पूरे राज्य के अलग-अलग जिलों में सामने आए. तीन महीने के बच्चे से लेकर 91 साल तक के लोगों में भी संक्रमण दिख रहा है. बीमारी के मामले भले डराते हों लेकिन राहत की बात ये है कि राज्य में मौत की दर लगभग 24 प्रतिशत है, जो कि दुनिया के औसत 97 प्रतिशत की तुलना में काफी कम है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में यह आंकड़ा केरल के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के हवाले से दिया गया.
बाकी देशों की तुलना में कम डेथ रेट की वजह ये है कि ऐसे मामलों की जल्दी पहचान और इलाज के लिए प्रशासन ने कई प्रोटोकॉल लागू किए हैं. जरूरी दवाओं का स्टॉक है. साथ ही अवेयरनेस प्रोग्राम भी चल रहे हैं, जैसे वॉटर बॉडीज की सफाई और गंदे पानी में न उतरने की अपील करना. यही वजह है कि साल 2016 से लेकर शुरुआती सालों में बीमारी जानलेवा रही, लेकिन वक्त के साथ मौत का आंकड़ा कम होता चला गया.
क्या इलाज है
दवाओं के कॉम्बिनेशन से सूजन कम करने की कोशिश की जाती है. मरीज के ठीक होने और अस्पताल से छुट्टी के बाद भी महीनाभर या उससे कुछ ज्यादा समय तक दवा लेनी होती है.
राज्य में बीमारियों को लेकर क्या रहा विवाद
यहां कई दुर्लभ और संक्रामक बीमारियां पहली बार सामने आईं. इसमें पीएएम से लेकर निपाह वायरस, जिका वायरस और मंकीपॉक्स भी शामिल हैं. चूंकि ये संक्रमण देश में सबसे पहले केरल में दिखे, तो इस राज्य पर कई सवाल भी खड़े हुए. आरोप लगा कि वहां सेहत को लेकर जागरुकता कम है. हालांकि मामला इससे कुछ उलट है. स्टेट में हेल्थ की निगरानी और रिपोर्टिंग सिस्टम काफी पक्का है. वहां के अस्पताल और सरकारी नेटवर्क वक्त रहते बीमारियों की पहचान करते और उसे डॉक्युमेंट करते हैं.
इसके अलावा केरल तटीय राज्य है, जहां नदियां, झीलें और भारी बारिश वाले इलाके हैं. इनकी वजह से पानी और मिट्टी से जुड़ी बीमारियों का खतरा दूसरी जगहों की तुलना में ज्यादा रहता है. साथ ही केरल की बड़ी आबादी खाड़ी से लेकर दुनिया के कई देशों में कामकाज के लिए फैली हुई है. वहां से होते हुए भी कई संक्रमण भीतर प्रवेश कर जाते हैं. कुल मिलाकर, केरल में बीमारियां ज्यादा नहीं फैलतीं, बल्कि उन्हें जल्दी और सही तरीके से पकड़ लिया जाता है, यही वजह है कि खबरें अक्सर पहले यहां से सुनाई देती रहीं.
तो क्या पूल में नहाने से हो सकता है खतरा
गंदे और गर्म पानी में अमीबा ज्यादा पनपता है. वहीं पानी में अगर पर्याप्त मात्रा में क्लोरीन डाल दी जाए तो डर कम हो जाता है. जोखिम तब बढ़ता है जब पानी नाक में चले जाए, क्योंकि अमीबा नाक के रास्ते ब्रेन तक जाता है. इसलिए कहा जा रहा है कि तैरते या नहाते हुए भी डुबकी न लगाएं, बल्कि नाक को ऊपर ही रखें या फिर प्रोटेक्टिव लेयर के साथ पानी में उतरें.
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