लंदन में कुछ रोज पहले ऐतिहासिक रैली निकली, जिसमें लाखों की भीड़ सड़कों पर उतर आई. यूनाइट द किंगडम रैली का एजेंडा था- प्रवासियों का विरोध करना और नेताओं पर दबाव बनाना कि वे इमिग्रेशन पर काबू पाएं. काफी सारे ब्रिटिशर्स मानते हैं कि बाहरी लोगों के आने से उनका काम-धंधा खतरे में आ गया. यहां तक कि वे अपने ही यहां शरणार्थी जैसे लगने लगे. प्रोटेस्ट में एक नारा बुलंद हो रहा था- एक वक्त पर हमने जिनपर राज किया, अब वे हमपर हुकूमत कर रहे हैं.
इसी नाराजगी में एंटी-इमिग्रेशन प्रोटेस्ट हो रहे हैं. दूसरी तरफ एक तबका वो भी है, जो प्रवासियों को देश के लिए जरूरी मानता है और रैली के खिलाफ रैली निकाल रहा है. इसमें बीस हजार से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए.
स्टैंड अप टू रेसिज्म के सपोर्टर प्रवासियों के अधिकार पर बात करते हैं. उनका दावा है कि एंटी-इमिग्रेशन के पक्ष में आए लोग असल में बहकाए गए हैं. दक्षिणपंथी लीडर उन्हें गलत-सही थ्योरीज दे रहे हैं ताकि ब्रिटेन की शांति और एकता भंग हो जाए.
ब्रिटेन इस हाल में पहुंचा क्यों
ये देश दशकों से प्रवासियों की पहली पसंद रहा, फिर चाहे यहां का मौसम हो, या फिर कल्चर और सुरक्षा. यही वजह है कि ब्रिटेन में रिफ्यूजियों की संख्या लगातार बढ़ी. इसमें कुछ हाथ पोरस सीमाओं का भी रहा. जिन लोगों को वैध तरीके से एंट्री नहीं मिल पाई, वे चुपके से भीतर आने लगे. यूके का सरकारी डेटा कहता है कि शरणार्थियों की संख्या में लगातार बढ़त हुई. मार्च 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, लगभग सवा लाख लोगों ने शरण के लिए आवेदन किया, जो पिछले साल की तुलना में 17 फीसदी ज्यादा है.
घुसपैठ बढ़ने से शुरू हुई समस्या
यहां तक फिर भी ठीक था. मुश्किल तब शुरू हुई, जब अवैध तरीके से ब्रिटेन में आने वाले बढ़े. अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया और सूडान जैसे सिविल वॉर में फंसे देशों से लोग भाग-भागकर आने लगे. घुसपैठियों के बढ़ने के साथ ब्रिटेन के भीतर भी संघर्ष बढ़ा. इसे लोकल्स के नजरिए से ऐसे समझें कि एक घर में तीन कमरे हैं. हर कमरे में दो से चार लोग आसानी से रह सकते हैं. ये हेड काउंट थोड़ा-बहुत और बढ़ जाए तो भी तालमेल बना रहेगा. लेकिन अगर हर कमरे में 10 से 15 लोगों को ठूंस दिए जाए तो संघर्ष बढ़ेगा. यही स्थिति ब्रिटेन की हो रही है. वहां बढ़ते अपराधों के लिए भी घुसपैठियों को दोषी माना जा रहा है.
क्या शरणार्थियों को स्थानीय लोगों से ज्यादा अपनापन मिल रहा
यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि नेता जान-बूझकर ऐसी नीतियां बना रहे हैं कि देश पर बाहरियों का कब्जा हो जाए. गौर से देखें तो ब्रिटेन में प्रवासियों को कई रियायतें मिलती रहीं. मसलन, ब्रिटिश सरकार ने हाल ही में न्यू प्लान फॉर इमिग्रेशन लागू किया. इसके तहत अगर लोग साबित कर दें कि उनके देश में खतरा है, तो उन्हें ब्रिटेन में तुरंत और अनिश्चितकाल के लिए रहने का हक मिल जाएगा.
अवैध तौर पर आए हुए लोगों को भी कानूनी मदद
अब सवाल उठता है कि जो लोग अवैध रूप से ब्रिटेन में आएं, उन्हें तो कोई सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए? लेकिन असलियत कुछ अलग है.
नेशनलिटी एंड बॉर्डर एक्ट 2022 ने साफ कर दिया कि भले ही कोई शख्स बिना दस्तावेज के ब्रिटेन आ जाए लेकिन अगर वो ह्यूमन ट्रैफिकिंग या किसी क्राइम का शिकार है तो उसे सुरक्षा मिलेगी.
ऐसे कई नियम हैं, जो सताए हुए लोगों की सुरक्षा पक्की करते हैं. लेकिन यहीं पर फसाद शुरू होता है. युद्धग्रस्त देशों से आए ज्यादातर लोग अनस्किल्ड हैं, जिनके पास इकनॉमी को देने के लिए कुछ खास नहीं. उनके रहने-खाने-पीने और मेडिकल खर्च के लिए ब्रिटिश टैक्सपेयर पैसे देते हैं. यही बात गुस्सा भड़का रही है. बढ़ती महंगाई ने आग में घी का काम किया. स्थानीय लोग मानने लगे कि उनकी सरकार, उन्हें ही पराया कर रही है. हालिया एंटी इमिग्रेशन प्रोटेस्ट इसी गुस्से की देन था.
कौन से समूह प्रवासियों के पक्ष में और क्यों
दूसरी तरफ मानवाधिकार गुट हैं. वे कहते हैं कि जो लोग बेबस हैं, अपनी जमीन और पहचान छोड़कर आए हैं, उन्हें शरण ही नहीं, आश्वासन भी मिलना चाहिए. उन्हें वापस भेजना अमानवीय होगा. कई ऐसे संगठन हैं, जो उनके लिए काम कर रहे हैं. जैसे, रिफ्यूजी काउंसिल से लेकर टूगेदर विद रिफ्यूजीस जैसे गठबंधन हैं. हरेक संगठन अलग-अलग काम देखता है. कुछ लोग उन्हें कानूनी मदद देते हैं तो कुछ शेल्टर और खाना पहुंचाते हैं. कई धर्म आधारित पहचान पर भी काम करते हैं, जैसे कुछ मुस्लिम शरणार्थियों के लिए ही सक्रिय हैं, तो कुछ यहूदियों की मदद करते हैं.
पारदर्शिता पर सवाल
कुछ समय से इनकी फंडिंग को लेकर भी सवाल होने लगे. वैसे तो ये संगठन स्वतंत्र और पारदर्शी होने का दावा करते हैं लेकिन आरोप लगे कि इनमें विदेशी हस्तक्षेप है, जो देश को प्रवासियों से भर देना चाहते हैं. कई संस्थानों को निजी फंडिंग भी होती रही, वो भी काफी बड़ी. ऐसे में आरोप रहा कि वे निजी एजेंडा पर काम कर रहे हैं.
एक बड़ा विवाद इसपर भी रहा कि ज्यादातर संगठन मुस्लिम प्रवासियों पर काम कर रहे हैं. स्थानीय लोगों में पिछले कुछ वक्त में मुस्लिम इमिग्रेंट्स पर नाराजगी बढ़ी. कहा जाने लगा कि वे ग्रूमिंग गैंग की तरह एक्टिव हैं, और ब्रिटिश बच्चियों का यौन शोषण कर रहे हैं. ऐसे कई मामले पकड़ाने के बाद इसपर जोर बढ़ा. एंटी-इमिग्रेशन गुट में शामिल लोग ये भी मानते हैं कि इस्लाम ब्रिटिश मूल्यों के साथ मेल नहीं खाता. इसी साल YouGov के एक सर्वे के अनुसार, लगभग 41 प्रतिशत ब्रिटिश मानते हैं कि मुस्लिम प्रवासियों का ब्रिटेन पर नकारात्मक असर हुआ.
इसी विरोध के बीच कई संगठन खासकर मुस्लिम प्रवासियों के हित पर काम करने लगे. हाल में हुई रैली स्टैंड अब टू रेसिज्म इसी का नतीजा था.
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