कहते हैं इन्सान के सपने देखने और उनको पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती. जो ये कहते हैं, सच कहते हैं. अपनी पूरी जिंदगी हम किसी सपने को लेकर जीते हैं और अपने सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी आपके अपने कंधों पर होती है. दूसरा आपकी मदद कर सकता है लेकिन उन्हें आपके लिए सच नहीं कर सकता, जी नहीं सकता. और जो इन्सान अपने चाह को पूरा करने की ठान ले उसे फिर कोई रोक नहीं सकता.
ऐसी ही सपने देखने, दिखाने और फिर उन्हें सच करने की कहानी है, यूपी के बागपत के जोहरी गांव की शूटर दादियों, चन्द्रो और प्रकाशी तोमर की. बहादुर होते हैं वो लोग जो कुछ कर दिखाने का जज्बा रखते हैं और मिसाल कायम करते हैं. शूटर दादियों की जिंदगी की कहानी भी हमारे देशवासियों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है और इस पर बनी तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर की फिल्म सांड की आंख से बड़ा ट्रिब्यूट दोनों के लिए शायद ही कुछ और हो सकता है.
क्या है फिल्म की कहानी?
बागपत के जोहर गांव में स्थित ये कहानी है तोमर परिवार की बहू चन्द्रो और प्रकाशी तोमर की, जो अपनी जिंदगी में घर का काम करने, खाना पकाने, अपने पति की सेवा करने, खेत जोतने और भट्टी में काम करने के अलावा ज्यादा कुछ खास कर नहीं पाईं. उनके पति दिन भर हुक्का फूंकते और बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. जिंदगी के 60 साल ऐसे ही जीवन निकाल देने एक बाद चन्द्रो और प्रकाशी को अचानक से अपने शूटिंग टैलेंट का पता चलता है. लेकिन शूटर बनने का सपना देखने लगी इन दोनों दादियों के सामने एक-दो नहीं बल्कि हजारों चुनौतियां हैं. इनमें से सबसे बड़ी है शूटिंग की ट्रेनिंग लेना और उससे भी बड़ी है टूर्नामेंट में जाकर खेलना. जो औरतें कभी अपने घर से बिना किसी मर्द के बाहर ना निकली हों, उन्होंने कैसे अपने इस सपने को ना सिर्फ पूरा किया बल्कि बाकी देशभर की महिलाओं को भी कर दिखाने की प्रेरणा कैसे दी यही इस फिल्म में दिखाया गया है.
शूटर दादी की कहानी आपने बहुत से अखबारों में पढ़ी होगी, बहुत से शो या न्यूज में देखी होगी. लेकिन तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर की फिल्म सांड की आंख के जरिए आप इन दोनों दादियों की कहानी को जीते हो. इस फिल्म में एक नहीं बहुत सी अच्छी बाते हैं. लेकिन अगर सबसे ऊपर किसी चीज को रखना हो तो मैं एक्टर्स की परफॉरमेंस को रखूंगी. इस फिल्म में बढ़िया एक्टर्स को लिया गया है और बहुत सोच समझकर लिया गया है. ये बात आपको फिल्म की शुरुआत में ही समझ में आ जाएगी.
चन्द्रो तोमर के रोल में भूमि पेडनेकर और प्रकाशी तोमर के रोल में तापसी पन्नू की जितनी तारीफ की जाए कम है. इन दोनों ही एक्ट्रेसेज ने बढ़िया काम करके दिखाया है. पर्दे पर जब दोनों साथ में होती हैं, तो आप उनका काम देखकर मन ही मन उनकी दाद दे रहा होता है. कई सीन ऐसे हैं, जिनमें दोनों की एक्टिंग दूसरे से बेहतर है. लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि दोनों की केमिस्ट्री इतनी लाजवाब है कि दोनों एक-दूसरे के साथ फिट बैठती हैं. भूमि पेडनेकर को हमने बहुत से देसी अवतारों में देखा है. ऐसे किरदार निभाना मानो उनकी खासियत है और इस बार भी उन्होंने बेमिसाल काम किया है. वहीं मुझे नहीं लगता कि अभी तक कोई ऐसा रोल बना है, जिसे तापसी पन्नू ना निभा पाएं.
फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट बहुत सॉलिड है. प्रकाश झा, विनीत कुमार सिंह, पवन चोपड़ा समेत सभी का एक्टर का काम बढ़िया है. प्रकाश झा जब भी पर्दे पर आते हैं, हर सीन, फ्रेम सबकुछ अपने नाम कर लेते हैं.
डायरेक्टर तुषार हीरानंदानी ने इस फिल्म को बहुत अच्छे से बनाया है. फिल्म आपको पहले सीन से अपने साथ बांध लेती है और फिर आप उसके साथ चलते जाते हैं. इसकी एडिटिंग बहुत क्रिस्प है और आपको एक भी बार ऐसा नहीं लगता है कि ये स्लो है या कहीं अपना पॉइंट खो रही है. पहले सीन से लेकर आखिरी सीन तक आप अपनी सीट पर जमे रहते हैं और प्रकाशी और चन्द्रो की जिंदगी को जीते और महसूस करते रहते हैं. ये फिल्म अलग-अलग इमोशन्स से भरी हुई है और अंत तक आते-आते आपकी आंखों से आंसू छलक ही जाते हैं. फिल्म का बैकग्राउंड और गाने बहुत अच्छे हैं, जिनपर आपका मन थिरकने को जरूर करता है.
सिर्फ एक चीज आपको खटक सकती है वो है तापसी और भूमि का मेकअप. उसके अलावा छोटी-मोटी कमियां आप आराम से नजरअंदाज कर सकते हैं. तो कुल-मिलाकर फिल्म सांड की आंख को आपको जरूर देखना चाहिए क्योंकि ये फुल पैसा वसूल फिल्म है, जो आपको बढ़िया चीजें सिखाती है.
पल्लवी