80 के दशक का पॉपुलर सीरियल महाभारत इन दिनों टीवी पर काफी धूम मचा रहा है. लेकिन अगर फिर भी आपने इसका लेटेस्ट एपिसोड मिस कर दिया हो, तो कोई बात नहीं. क्योंकि हम आपके लिए लेकर आए हैं नए एपिसोड की अपडेट्स. आइए आपको बताएं कि शनिवार शाम बी आर चोपड़ा की महाभारत में क्या हुआ.
कृष्ण और बलराम ने राक्षस धेनुकासुर और प्रलम्बासुर का वध कर नन्द गांव के वासियों की रक्षा की. उनकी इस लीला को देखकर सभी गांव वालों ने नंदराय से उनकी प्रशंसा की. इस पर नंदराय ने इंद्र भगवान की कृपा बताते हुए उनकी पूजा की घोषणा की. यशोदा पूजा की तैयारियां कर ही रही थीं कि वहां कृष्ण आते हैं और पूजा के बारे में पूछते हैं. तब यशोदा बताती हैं कि ये पूजा अर्चना की तैयारी देवराज इंद्र के लिए है.
कृष्ण की गोवर्धन लीला
कृष्ण अपनी मैय्या से ये पूजा करने लिए मना करते हैं और कहते हैं, 'हमारा जीवन तो गऊ से जुड़ा हुआ है, तो हमारे लिए पूजनीय योग्य है गऊ, क्यूंकि वो हमें पीने के लिए दूध और खाने के लिए माखन देती हैं. गऊ का जीवन वनों के बिना संभव नहीं है, इसीलिए वनों की पूजा करें. वन ना होंगे तो गइया नहीं होंगी. यमुना की पूजा करो, जो हमारे वृक्षों को अमृत पिलाती हैं और पर्वतों की पूजा करो मैय्या, जो जाते हुए मेघों को रोककर वर्षा करवाते हैं, जिनके कारण हमारे वन हरे भरे रहते हैं. बस इन्हें पूजो मैय्या, यही पूजने योग्य हैं. हमारे पूजने योग्य हैं हमारे गोवर्धन पर्वत और इंद्रा के क्रोध से मत डरो मैय्या, क्यूंकि जो पूजनीय योग्य है वो क्रोध नहीं करता. मैं तो इंद्र देव से नहीं डरता मैय्या.'
यह सुनकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. सभी गांव वासी बारिश से बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे. सुदामा ने कृष्ण के पास आकर इंद्र देव से माफी मांगने के लिए कहा लेकिन कृष्ण जानते थे की असमय तूफान और बारिश करके इंद्र गलत कर रहे हैं इसीलिए उनके घमंड को चूर करने के लिए कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर अपनी छोटी उंगली पर रख दिया और सभी ब्रजवासियों को आश्रय दिया. कृष्ण की ये लीला देख देवराज इंद्र ने कृष्ण से क्षमा मांगी.
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कंस ने कृष्ण को दिया मथुरा में आने का आमंत्रणदूसरी ओर ये सुचना मथुरा नरेश कंस के पास पहुंची जिसे सुनकर उसे यकीन हो गया की कृष्ण नंदराय का पुत्र नहीं बल्कि देवकी का आठवां पुत्र है, जो उसका काल बनकर आया है. उसने अपने भांजे कृष्ण को मथुरा बुलाने की योजना बनाई और वासुदेव के दोस्त अक्रूर के सामने बेबसी का ढोंग रचाकर नन्द गांव भेज दिया कृष्ण को लाने के लिए. वहां ब्रज में कृष्ण अपनी मुरली की धुन पर राधा को नचा रहे हैं और राधा संग रासलीला रचा रहे हैं. उसी समय अक्रूर नंदराय के पास आते हैं और बताते हैं कि कंस ने कृष्ण का बुलावा भेजा है. ये सुनकर नंदराय कंस का आदेश मानने से मना कर देते हैं. यशोदा भी कृष्ण को जाने से रोकती हैं, लेकिन कृष्ण जानते हैं कि कंस का समय आ गया है, तो भला वो कैसे रुकते. यशोदा और नंदराय के साथ गांव के सभी लोग दुखी मन से कृष्ण को मथुरा की ओर विदा करते हैं.
मथुरा आते ही शुरू हुई कृष्ण की लीलाएं
मथुरा पहुंचते ही कंस से मिलने से पहले कृष्ण-बलराम और उनके सखा मथुरा नगरी घूमने निकल गए, जहां मथुरा के लोगों की आंखें कृष्ण पर ही टिकी हैं. तभी कृष्ण को एक कुबड़ी औरत दिखती है जिस से वो माथे पर चन्दन का लेप लगवाते हैं और उससे झुककर चलने का कारण पूछते हैं. कृष्ण अपना हाथ उसपर रखते हैं और उसे सीधा खड़े होने के लिए कहते हैं. प्रयत्न करने पर वो कुबड़ी औरत ठीक हो जाती है और खुशी से झूम उठती है. वही दूसरी ओर नदी किनारे धोबी कंस महाराज के वस्त्र धो रहा होता है कि तभी कृष्ण वो वस्त्र पहनने के लिए मांगते हैं. ये सुनकर वहां पर खड़ा दूसरा धोबी कृष्ण को मारने के लिए लाठी उठाता है लेकिन उसकी लाठी कृष्ण को लगने के बजाय हवा में ही चलती है जिसे देख वो धोबी घबरा जाता है.
इतना ही नहीं जब कृष्ण सेनाओं के सामने अपने भाई बलराम से पूछते हैं धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की तो वहां खड़े सैनिक उनका मजाक उड़ाने लगते हैं कि प्रत्यंचा तो दूर धनुष उठाकर तो बता दो. कृष्ण मुस्काते हुए धनुष को न सिर्फ उठाते हैं बल्कि प्रत्यंचा चढ़ाकर उस धनुष को तोड़ भी देते हैं, जिसके टूटते ही आसमान में गर्जन होने लगता है. ये गूंज सुनकर कंस को पहली बार भय लगता है और जब उसे ये समाचार मिलते हैं कि कृष्ण ने यज्ञ का वो धनुष तोड़ दिया जिसकी प्रत्यंचा चढ़ाने में खुद कंस को भी कष्ट होता है तो वो और भी भयभीत हो उठता है.
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कृष्ण ने किया कंस का वधकंस ने कृष्ण की हत्या के लिए रंगशाला में मल्ल युद्ध आयोजित किया जहां उसने कृष्ण को मारने के लिए द्वार पर मस्त हाथी छोड़ रखा था. हाथी ने कृष्ण पर प्रहार करने के बजाय उन्हें प्रणाम किया और जब दोनों भाई रंगशाला के अंदर आए तो पहलवान चाणूर और मुष्टिक ने कृष्ण और बलराम को मल्ल युद्ध के लिए ललकारा. मल्ल युद्ध आरम्भ हो गया, कृष्ण ने चाणूर और बलराम ने मुष्टिक को पछाड़कर उनका वध कर दिया. उनके विजयी होने पर कंस ने कृष्ण को गले लगाकर मारना चाहा पर कृष्ण सब जानते थे इसलिए उन्होंने कंस को अपनी लीला दिखानी शुरू कर दी. इस पर कंस और भी क्रोधित होने लगा, उसने कृष्ण को मारने के लिए तलवार तक निकाल ली, लेकिन कृष्ण की लीलाएं नहीं रुकी और कंस थक हारकर धरती पर जा गिरा. इस प्रकार कृष्ण ने कंश का वध कर दिया, परन्तु मृत्यु से पहले कंस को कृष्ण के विष्णुरूप के दर्शन भी मिले.
वासुदेव और देवकी कारागृह से हुए मुक्त
कंस का वध करने के पश्चात कृष्ण और बलराम सबसे पहले अपने माता-पिता यानी देवकी और वासुदेव से मिले. इतने समय बाद वासुदेव और देवकी अपने बेटों से मिलकर बहुत खुश हुए लेकिन वो इस बात से अनजान थे कि कृष्ण ने कंस का वध कर दिया है. ये समाचार सुनकर देवकी और वासुदेव हर्ष से गदगद हो गए. कृष्ण ने माता पिता की बेड़ियां काटने को कहां लेकिन वासुदेव ने कृष्ण से पहले मथुरा के राजा उग्रसेन की बेड़ियां काटने को कहा.
कृष्ण ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया और उग्रसेन की बेड़ियां भी कटवा दीं. उग्रसेन ने कृष्ण से मथुरा का राज सिंघासन पर बैठने का आग्रह किया लेकिन कृष्ण ने कहा, 'मेरा मुकुट तो मयूर पंख है, मथुरा का राज मुकुट तो आप ही के सिर पर शोभा देगा महाराज.' ऐसा कहकर कृष्ण ने महाराज उग्रसेन से अपने माता-पिता की बेड़ियां कटवाने का आग्रह किया. खुद उग्रसेन ने अपने हाथों से देवकी और वासुदेव की बेड़ियां काटी.
इसके बाद कृष्ण ने खुद अपने हाथों से महाराज उग्रसेन को राजमुकुट पहनाया. देवकी ने अपने लाडले कृष्ण को अपने हाथों से माखन खिलाया और खूब दुलार किया. वासुदेव ने कृष्ण और बलराम को ऋषि सांदीपनी के पास जाकर शिक्षा ग्रहण करने का आदेश दिया.
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कैसे हुई पाण्डु की मृत्यु?तपोवन में कुंती और माद्री के पांचों पुत्र भी बाल अवस्था में आ गए हैं, जो मां कुंती के कहने पर शिक्षा ग्रहण करने अपने गुरुदेव के पास चले गए. वहीं माद्री भी स्नान करने और पानी भरने नदी किनारे चली गयी. वहां वन में पाण्डु ध्यान कर रहे थे, जैसे ही उनकी नजर माद्री पर पड़ी तो खुद पर नियंत्रण ना रख पाए और उनकी मृत्यु हो गयी. ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि ऋषि किंदम ने उन्हें श्राप दिया था कि जिस दिन पाण्डु किसी स्त्री के साथ सम्बंध बनाएगा उस दिन उसकी मृत्यु हो जाएगी. पाण्डु के वियोग में माद्री ने भी वही पर देहत्याग कर दिया. वहां वासुदेव भी आए और ऋषियों से कुंती और पांचों पुत्रों को ले जाने का आग्रह भी किया. लेकिन ऋषियों ने कहा कि कुंती अभी हस्तिनापुर की राजमाता हैं, अगर हस्तिनापुर से आदेश होगा तो ही वासुदेव, कुंती को अपने साथ मथुरा ले जा सकते हैं.
उधर पाण्डु की मृत्यु और माद्री के देहत्याग की खबर सुनकर धृतराष्ट और गांधारी को बहुत दुख हुआ और धृतराष्ट्र ने कुंती और उसके पांचों पुत्रों को लाने का आदेश दिया. कुंती पांचों पांडवों के साथ हस्तिनापुर आईं लेकिन पांचों पांडवों को देख दुर्योधन ने कहा, 'यह केवल मेरा घर है, केवल मेरा.' दुर्योधन की बातें सुनकर गांधारी को आभास हो गया कि दुर्योधन कभी भी पांचों पांडवों को नहीं अपनाएगा.
इनपुट: साधना
aajtak.in