'कांतारा चैप्टर 1' का ट्रेलर देखने के बाद से ही जनता थिएटर्स में ऋषभ शेट्टी का जलवा देखने के लिए तैयार बैठी है. दर्शकों में ये उत्साह इसलिए भी है क्योंकि राइटर-डायरेक्टर ऋषभ ने 2022 में 'कांतारा' से लोगों को ऐसा चकित किया कि वो बार-बार टिकट खरीदकर उनकी फिल्म देखने पहुंच रहे थे. वो अपने साथ, अपने इलाके दक्षिण कर्नाटक की एक ऐसी दंतकथा लेकर आए थे जो देश के दूसरे इलाकों में लोगों ने कभी नहीं देखी थी.
‘कांतारा’ में ऋषभ की जिस एक तस्वीर से भारत भर के दर्शक इम्प्रेस हुए, वो थी 'कांतारा' में उनकी यक्षगान परफॉरमेंस की तस्वीर, जिसे क्षेत्रीय भाषा में भूत-कोला भी कहा जाता है. ऋषभ ने पहली बार यक्षगान तब किया था जब वो छठी क्लास में पढ़ रहे थे. कन्नड़ फिल्म स्टार डॉक्टर राजकुमार की नकल करते बड़े हुए ऋषभ का बड़े पर्दे तक पहुंचना, उनकी कड़ी मेहनत तो है ही. मगर इसमें दो बहुत बड़े संयोगों का भी हाथ है. जिसमें से एक उनका फिल्मी नाम ‘ऋषभ’ भी है. ऑरिजिनल नाम तो कुछ और था…
जब 'एंग्री यंग मैन' को पिता ने गांव से किया दूर
कर्नाटक के उडुपी जिले की, कुंडापुर तालुका से आने वाले प्रशांत शेट्टी ने जब छठी क्लास में पहली बार यक्षगान किया, तब वो दुबले-पतले से थे. चेहरा छोटा सा था. जो किरदार प्रशांत ने निभाया, वो था भगवान सुब्रमण्यम का, जिन्हें शनमुगा भी कहा जाता है. शनमुगा बने प्रशांत को साथी बच्चे, अपनी भाषा में 'शन्नू मुगा' कहकर बुली करने लगे. शन्नू मुगा का अर्थ था छोटे से चेहरे वाला. ऋषभ की यात्रा में इस छोटी सी डिटेल का बहुत बड़ा रोल है.
बुली होने से प्रशांत इतना तंग हुए कि उन्होंने स्कूल बदल लिया और नई पहचान बनानी शुरू की. उम्र बढ़ी होगी तो शरीर भी कुछ मजबूत हुआ होगा… इंटरमीडिएट तक आते-आते वो एक टिपिकल एंग्री यंग मैन बन गए. हमेशा लड़ाई की तलाश में रहते. ऋषभ के पिता ने सोचा कि बेटा गंभीर कांड करने लगे, इससे पहले उसे कहीं और भेज दिया जाए. तो ऋषभ को बी.कॉम के लिए बैंगलोर भेज दिया गया.
कभी बेचे पानी के कैन, कभी किया कंस्ट्रक्शन का काम
द न्यूज मिनट को ऋषभ ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था, 'मैं बड़ा निराश था कि यहां मुझसे कोई लड़ने वाला नहीं था. तो अपने शारीरिक दमखम को सही जगह लगाने के लिए मैंने कुश्ती और जूडो शुरू किया. इसने मुझे बहुत पॉजिटिव बनाया और एक व्यक्ति के तौर पर मुझे एक नया रंग दिया.' ऋषभ ने पिता के सामने बैंगलोर भेजे जाने का विरोध कभी इसलिए भी नहीं किया क्योंकि इससे वो अपने बचपन के सपने, एक्टिंग के थोड़े और करीब पहुंच गए थे. दरअसल, कन्नड़ सिनेमा का गढ़ बैंगलोर ही है.
लेकिन शहर में आते ही कोई सीधा फिल्म इंडस्ट्री में थोड़ी पैठ बना लेता है! ऋषभ ने कॉलेज में पढ़ते हुए पैसे जुटाने के लिए कई छोटे-छोटे काम शुरू किए. कंस्ट्रक्शन बिजनेस में ठेकेदारी का अनुभव उन्हें फिल्मों में कैसे काम आता है. इसकी भी अलग कहानी है. मगर उनका मिनरल वाटर के कैन सप्लाई करने का काम, उनके फिल्म करियर के लिए पहली कड़ी बना.
एक दिन प्रशांत को मल्लेश्वरम में होने वाले एक इवेंट के लिए पानी के कैन सप्लाई करने का ऑर्डर मिला. वो सप्लाई करने पहुंचे तो देखा कि इवेंट असल में एक फिल्म स्कूल का उद्घाटन है. उन्होंने सारी इन्क्वारी की और तुरंत एडमिशन ले लिया. ये इस कहानी का पहला संयोग है. यहां से प्रशांत का सपना पहली बार रियलिटी की जमीन पर उतरा.
क्लासरूम से निकलकर क्लैपबोर्ड तक का सफर
एक्टिंग की पढ़ाई करके निकले प्रशांत अब काम की तलाश में निकले. कन्नड़ इंडस्ट्री के स्टंट मास्टर एमडी प्रकाश से होते हुए वो डायरेक्टर ए.एम.आर. रमेश तक पहुंचे. रमेश उन दिनों अपनी फिल्म 'साइनाइड' शुरू करने जा रहे थे मगर जबतक प्रशांत पहुंचे टीम तैयार हो चुकी थी. फिर भी रिक्वेस्ट करने पर उन्हें लास्ट असिस्टेंट रख लिया गया और शॉट से पहले क्लैप देना, फिल्म इंडस्ट्री में प्रशांत का पहला काम था.
‘साइनाइड’ पूरी होते-होते रमेश के को-डायरेक्टर और असिस्टेंट्स काम छोड़ते चले गए. शूट खत्म होने तक प्रशांत एकमात्र असिस्टेंट बचे. पहली ही नौकरी ने उन्हें डायरेक्टर के नजरिए से काम करना सिखा दिया. मगर इसके बाद असली स्ट्रगल शुरू हुआ. एक्टिंग रोल मिले तो फिल्में नहीं शुरू हुईं. दूसरा कोई काम नहीं मिला तो प्रशांत ने सीनियर ऐक्ट्रेस उषा भंडारी को कॉल किया, जो उन्हें बहुत मानने लगी थीं.
प्रशांत ने कहा कि वो उन्हें टीवी पर एसोसिएट डायरेक्टर बनने में मदद कर दें क्योंकि इसमें 500 रुपये प्रतिदिन मिलते थे. उषा ने मदद की और वो डायरेक्टर अरविंद कौशिक की टीम में आ गए. इस बीच प्रशांत के दोस्तों में से एक ने उन्हें न्यूमरोलॉजी के हिसाब से एक नया नाम रखने की सलाह दी, कि शायद कृपा यहीं से आए. दोस्त ने नाम भी सुझाया.
जिन टीवी डायरेक्टर अरविंद कौशिक की टीम में प्रशांत थे, उन्होंने 2008 में अपनी पहली फिल्म शुरू कर दी. इस फिल्म से साइड हीरो के रोल में एक्टर रक्षित शेट्टी भी डेब्यू करने जा रहे थे. इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग करके आए रक्षित खुद कन्नड़ में नए तरह का सिनेमा बनाने का सपना लिए आ रहे थे और बतौर एक्टर ये उनकी शुरुआत थी.
रक्षित एक बार अपने डायरेक्टर से मिलने उनके टीवी शो एक सेट पहुंचे तो उनकी मुलाकात एक नए लड़के से हुई जिसके साथ फिल्मों पर बातचीत बड़ी मजेदार रही. इस लड़के ने रक्षित को इंट्रो देते हुए अपना वो नाम बताया, जो अभी ताजा-ताजा रखा गया था— ऋषभ शेट्टी.
प्रशांत से ऋषभ बनते ही शुरू हुई नई कहानी
रक्षित ने ऋषभ से कहा कि वो उन्हें हीरो के रोल में रखकर एक कहानी क्यों नहीं लिखते. ऋषभ ने बात को गंभीरता से लिया और काम शुरू कर दिया. यही स्क्रिप्ट आगे चलकर, बतौर डायरेक्टर ऋषभ का डेब्यू कराने वाली 'रिक्की' बनी. मगर उस वक्त तो रक्षित खुद करियर शुरू कर रहे थे और ऋषभ अभी तक असिस्टेंट डायरेक्टर ही थे.
पहली फिल्म में क्रिटिक्स से रक्षित को तारीफ मिली तो अरविंद ने उन्हें अपनी दूसरी फिल्म 'तुगलक' (2012) में लीड रोल के लिए साइन किया. अरविंद ने इसी फिल्म में विलेन के रोल से ऋषभ को उनका पहला ब्रेक दिया. ‘तुगलक’ चली तो नहीं, मगर इसने प्रशांत से ऋषभ शेट्टी बन चुके लड़के को रक्षित शेट्टी का पक्का दोस्त बना दिया.
जब थिएटर्स से ‘तुगलक’ उतरने की बारी आई तो पहली बार लीड हीरो बने रक्षित मायूस होने लगे. उनकी आंखें लगभग भर आई थीं. ऋषभ ने त्रिभुवन थिएटर से, अपनी टीवीएस विक्टर पर रक्षित को बिठाया और जयनगर के लिए निकले, जहां किराए के मकान में रक्षित रहते थे. रास्ते में ऋषभ ने रक्षित को वो कहानी सुनाई जिसपर वो टीवी वाली नौकरी के वक्त से काम कर रहे थे.
रक्षित को कहानी बहुत पसंद आई. ऋषभ ने कहा कि उन्हें जब भी फिल्म बनाने का मौका मिला, वो पहली कहानी यही बनाएंगे और लीड हीरो रक्षित को लेंगे. बतौर हीरो, अपनी पहली फिल्म थिएटर से उतरने के संकेत देखकर आ रहे रक्षित को भरोसा हुआ कि दुनिया में कोई तो है जो उन्हें हीरो के रोल लायक समझता है.
धीरे-धीरे रक्षित ने भी उड़ान भरी और एक्टर ही नहीं डायरेक्टर भी बने. बतौर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म ‘उलीदावरु कांदंते’ (2014) में उन्होंने ऋषभ को विलेन के रोल में लिया था. ये फिल्म कन्नड़ सिनेमा की नई लहर में बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है.
ऋषभ को भी जब डायरेक्टर बनने का मौका मिला तो अपनी डेब्यू फिल्म ‘रिक्की’ (2016) में रक्षित को हीरो लिया. ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब साबित हुई थी. ऋषभ और रक्षित ने एकसाथ कन्नड़ सिनेमा को एक फ्रेश, नया टेक्सचर दिया. इस सफर को साथ तय करते हुए ही इन दोनों बहुमुखी कलाकारों ने पैन इंडिया धमाका भी एकसाथ तय किया था.
2022 के जून में एक डॉग की इमोशनल कहानी लेकर आए रक्षित शेट्टी की ‘777 चार्ली’ उस साल की सरप्राइज पैन इंडिया हिट्स में से एक थी. उसी साल सितंबर में ऋषभ की ‘कांतारा’ ने धमाका किया था. इन दोनों की फिल्मों ने जनता को ‘KGF’ के अलावा कन्नड़ सिनेमा के दो बिलकुल नए और अलग शाहकार दिखाए थे.
सुबोध मिश्रा