Film Review: 'मोहेनजो दारो' में दम नहीं

आज यानी 12 अगस्त को आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'मोहेनजो दारो' रिलीज हुई है. आइए जानते हैं कैसी है ये फिल्म...

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'मोहेनजो दारो' में रितिक रोशन 'मोहेनजो दारो' में रितिक रोशन

सिद्धार्थ हुसैन

  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 6:45 PM IST

फिल्म का नाम: मोहेनजो दारो
डायरेक्टर: आशुतोष गोवारिकर :
स्टार कास्ट: रितिक रोशन, पूजा हेगड़े, कबीर बेदी, अरुणोदय सिंह, नितीश भरद्वाज, नरेंद्र झा, मनीष चौधरी :
रेटिंग: 1 स्टार

रितिक रोशन और निर्देशक आशुतोष गोवारिकर की जोड़ी सुपर हिट फिल्म 'जोधा अकबर' के बाद एक बार फिर तैयार है. हालांकि आशुतोष की पिछली फिल्म 'खेलें हम जी जान से' से बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई थी और रितिक की पिछली फिल्म 'बैंग बैंग' भी कुछ खास करामात नहीं दिखा पाई. अब देखना ये होगा कि 'मोहेनजो दारो' में दोनों मिलकर फिर से कोई जादू चला पाते है या नहीं. आइए जानते हैं आखिर कैसी है यह फिल्म:

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कहानी:
कहानी घिसीपिटी है. एक लड़का संपन्न जो अपना गांव छोड़ मोहनेजो दारो जाना चाहता है क्योंकि वो शहर और उससे जुड़ी बातें उसके ख्वाबों में आती हैं. आखिरकार अपने काका को मनाकर वो शहर पहुंचता है और वहीं उसकी मुलाकात हीरोइन से भी होती है और प्रेम कहानी के साथ उसे पता चलता है कि मोहनेजो दारो का महंत ही उसके पिता का कातिल है. जो लोग उसके पिता के खिलाफ थे उनसे वो बदला लेता है और हीरोइन के साथ सबका दिल जीत लेता है.

स्क्रीनप्ले:
फिल्म का स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर है. पहला भाग खत्म ही नहीं होता. इंटरवल के पहले प्रेम कहानी और इंटरवल के बाद बदला, ना प्रेम कहानी में कोई दम है और बदला भी बेहद घिसापिटा है. गानों के साथ हीरो की बहादुरी दिखाने के लिए मगरमच्छ के साथ एक फाइटिंग सीन है. एक विलेन के बेटे के साथ, एक फाइट दो आदम खोर पहलवानों के साथ और आखिरी फाइट मेन विलेन के साथ यानी गाने और फाइट बराबर से रखे गए हैं.

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फिर एक हीरो का बेवकूफ कॉमीडियन दोस्त, हीरोइन के साथ उसकी एक सहेली, मेन विलेन का एक नालायक जालिम बेटा और हीरोइन का इमानदार पुजारी पिता जो आखिर में मारा जाता है. 60 के दशक का हर मसाला 'मोहेनजो दारो' में है. यकीन नहीं होता है कि ये आशुतोष गोवारिकर की फिल्म है जिन्होंने 'लगान' बनाई थी. उनकी आखिरी फिल्म 'खेलें हम जी जान से' भी बेहद खराब फिल्म थी. बड़ी फिल्म बनाने के बजाय आशुतोष एक अच्छी कहानी बनाने की कोशिश करें तो उनके लिए भी बेहतर होगा और उनके निर्माता के लिए भी.

अभिनय:
रितिक रोशन की चाल और अंदाज आज के जमाने के हिसाब से है. डायलॉग बोलने का अंदाज शुरू में अखरता है, फिर आदत पड़ जाती है. इस फिल्म में रितिक के अलावा कोई भी छाप नहीं छोड़ पाया. पूजा हेगड़े पहली फिल्म के हिसाब से ठीक-ठाक अभिनय करती नजर आईं. बाकी कबीर बेदी और अरुन उदय सिंह जबरदस्ती के मुंह बनाकर भयानक बनने की बेकार कोशिश करते रहते हैं. फिल्म में ऐसा कोई भी कलाकार नहीं जो याद रह जाए.

कमजोर कड़ी:
कमजोर गाने, अजीब से कॉस्ट्यूम्स, नकली आर्ट डायरेक्शन, स्पेशल इफेक्ट्स भी कई जगह पता चल जाते हैं और सबसे अहम बात, कमजोर कहानी कभी भी एक अच्छे स्क्रीन प्ले की शक्ल इख्तियार नहीं कर सकती.

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