होम शांति नाम से एक सीरीज हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है. ज्यादा प्रमोशन नहीं किया गया था, इसलिए इतना बज भी नहीं....लेकिन ट्रेलर देखने के बाद लगा कि ये घर-घर की कहानी टाइप वाली कोई सीरीज दिखाई पड़ती है. कंटेंट रिलेटेबल लगे तो देखने में मजा तो आता है, ऐसे में हमने भी ये सीरीज देखने का फैसला कर लिया. 6 एपिसोड की मिनी सीरीज कह सकते हैं. सुप्रिया पाठक और मनोज पाहवा जैसे अनुभवी और दमदार कलाकार भी मौजूद हैं. बताते हैं कि देखने लायक है या नहीं...
कहानी
अपना खुद का घर बनाने का सपना हर मिडिल क्लास परिवार संजोता है. देहरादून का जोशी परिवार भी कोई अलग नहीं है. जेब में पैसे कम हो सकते हैं, लेकिन सपने इनके भी आसमान छूते हैं. सरला जोशी (सुप्रिया पाठक) पिछले 20 साल से नौकरी कर अपनी आधी सैलरी बचा रही हैं. स्कूल में वाइस प्रिंसिपल की पोस्ट पर हैं और घर में पूरी प्रिंसिपल...मतलब उन्हीं की चलती है, उन्हीं की सुनी जाती है. दूसरे महोदय हैं उमेश जोशी (मनोज पाहवा) जो कविराज हैं, कविताएं सुनाते हैं..... इतनी इनकम नहीं कि घर के खर्चे चला सकें, इसलिए अपनी कविताओं से ही सब को खुश करने की कोशिश करते रहते हैं. इनके दो बच्चे हैं- जिज्ञासा जोशी (चकोरी द्विवेदी) और नमन जोशी (पूजन छाबरा). अब ये पूरा परिवार निकल पड़ा है अपने सालों पुराने सपने को पूरा करने- घर का सपना. भूमि पूंजन से लेकर लैंटर डालने तक, डेकोरेशन से लेकर गृह प्रवेश तक, 6 एपिसोड के जरिए इस पूरी प्रक्रिया को दर्शकों के बीच रख दिया गया है. बस राह इतनी आसान नहीं है, इसमें स्ट्रगल है, सुविधा शुल्क वाला झोल है और घर का नाम क्या रखे जैसे मुद्दों पर तीखी बहस.
आखिर में जाकर टूटी मेकर्स की नींद!
अब होम शांति सीरीज वैसे तो सही में घर घर की कहानी लगती है, लेकिन इसमें एक बड़ा झोल है. वो ये है कि पहले तीन एपिसोड बिल्कुल भी मजेदार से नहीं लगते हैं. मतलब गुल्लक सीरीज से तुलना नहीं करनी है, लेकिन फिर भी वहां सबकुछ रिलेटेबल होता है. इतना ज्यादा कनेक्ट कर जाते हैं कि अपने पुराने किस्सों को याद करने मन करता है. होम शांति के साथ पहले तीन एपिसोड में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. बीच-बीच में कुछ सीन्स मजेदार लगते हैं, लेकिन याद करने लायक कुछ नहीं. हां आखिरी के जो तीन एपिसोड हैं, वहां पर बाजी पलटी है. मतलब अचानक से सीरीज मजेदार भी ज्यादा बन जाती है, इमोशन का टच भी नजर आने लगता है और एक फील गुड फैक्टर भी साथ जुड़ जाता है. इसलिए हम भी इसे घर-घर की कहानी तो बता रहे हैं लेकिन ये दिलों में सिर्फ आधी घर कर पाती है.
किरदारों पर ज्यादा ध्यान नहीं, महिला कैरेक्टर मजबूत
होम शांति का एक्टिंग डिपार्टमेंट कागज पर काफी तगड़ा लगता है. लेकिन जिस तरीके से सभी किरदारों को भुना गया है, कुछ ना कुछ मिसिंग हर बार लगा है. नमन जोशी वाला किरदार ही उठा लीजिए. सीरीज में ये कैरेक्टर पूजन छाबरा निभा रहे हैं. उनकी एक्टिंग पर तो कमेंट नहीं करना लेकिन जिस तरीके से मेकर्स ने इस किरदार को गढ़ा है, सब कुछ ओवर द टॉप लगता है. ओवर एक्टिंग है, बिना सैंस वाली कॉमेडी है और दर्शकों के साथ बिल्कुल भी कनेक्शन नहीं बैठता है. इस मामले में चकोरी द्विवेदी काफी आगे निकल गई हैं. बड़ी बहन के रोल में एकदम सॉलेड लगी हैं. थोड़ी सी दंबगाई है, एक अलग सा स्वैग है और बेहतरीन डायलॉग डिलीवरी का मिश्रण देखने को मिला है.
इस सीरीज के लीड पेयर मनोज पाहवा और सुप्रिया पाठक भी अपने किरदारों के साथ न्याय कर गए हैं. लेकिन फिर वहीं बात, उम्मीद बहुत ज्यादा है जो ये सीरीज तो पूरी नहीं कर पाती. शुरुआती तीन एपिसोड में तो हमे ही बतौर दर्शक इन दोनों की केमिस्ट्री थोपी सी लगती है. बाद में जरूर दोनों किरदारों में निखार आता है, लेकिन ओवर ऑल इमपैक्ट कम रह जाता है. इसके लिए इन कलाकारों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, मेकर्स से ही चूक हो गई है. अब जोशी परिवार पर सीरीज का पूरा फोकस जरूर है, लेकिन इस कहानी के छोटे-मोटे दूसरे किरदार बढ़िया लगे हैं. फिर चाहे ठेकेदार के रोल में हैप्पी रणजीत हों या फिर मजदूर बने अमरजीत सिंह.
डायरेक्शन कहां झोल हुआ और कहां पास?
अब बात करते हैं होम शांति की डायरेक्टर आकांक्षा दुआ की जिन्होंने TVF और Girliyapa के लिए कुछ सीरीज बना रखी हैं. इस बार आकांक्षा पूरी तरह फेल तो नहीं लेकिन पास भी नहीं हो पाई हैं. उन्हें सिर्फ आधी सक्सेस मिली है, वो भी इसलिए क्योंकि आखिर के तीन एपिसोड सही तरीके से परोसे गए हैं. लेकिन क्योंकि फर्स्ट इमप्रेशन इस द लास्ट इमप्रेशन....ऐसे में जब एक सीरीज के रूप में हम होम शांति को देखेंगे तो कमियां ज्यादा और खूबी कम नजर आएंगी. हां पूरी सीरीज में कविताओं वाला आइडिया अच्छा लगा है. हर एपिसोड का एंड एक कविता से होता है जो कहानी को आगे भी बढ़ाता है और थोड़ी बहुत सीख भी दे जाता है.
इतना रिव्यू पढ़ने के बाद आपको भी क्लियर हो ही गया होगा....ये सीरीज गुल्लक जैसी रिलेटेबल या कह लीजिए कि सही मायनों में घर-घर की कहानी नहीं है. आखिर के कुछ एपिसोड चेहरे पर मुस्कान तो ले आएंगे लेकिन बिजी लाइफ में इतना पेशेंस किसके पास है?
सुधांशु माहेश्वरी