वो मासूमियत वाली मुस्कान, हर रोल में ढलने की काबिलियत और अपनी जिंदादिल एक्टिंग से दर्शकों के दिल पर राज करने वाला अंदाज. कुछ ऐसी ही थी द ग्रेट फारुख शेख की जिंदगी जिनका जन्म 25 मार्च 1948 को गुजरात में हुआ था. पिता वकील थे तो उन्हें भी यही जिम्मेदारी संभालनी पड़ गई थी. उस जमाने में तो परिवार का बिजनेस आगे बढ़ाना अपने आप में एक प्रथा होती थी. ऐसे में फारुख ने कम उम्र में ही पिता की वकालत संभाल ली थी.
एक्टर नहीं वकील होते फारुख शेख
फारुख शेख को लेकर बताया जाता है कि उन्होंने वकालत जरूर की थी, लेकिन एक्टिंग का कीड़ा उनके अंदर हमेशा जिंदा रहा था. वो कीड़ा इसलिए कभी नहीं मरा क्योंकि उन्होंने एक्टिंग करने से कभी खुद को रोका नहीं. कॉलेज में नाटक करने की बात हो या फिर किसी स्ट्रीट प्ले में हिस्सा लेने का मौका, फारुख शेख ने हमेशा इंप्रेस किया. ये नाटक उन्हें बॉलीवुड तक तो नहीं ले जा पाए, लेकिन एक मजूबत नींव का निर्माण तो होने ही लगा था. फिर फारुख की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जब उन्होंने परिवार का वकालत वाला बिजनेस छोड़ने का फैसला ले लिया.
जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला
एक्टर की जिंदगी में ये ना सिर्फ एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट था, बल्कि पूरे परिवार के लिए भी बड़ा झटका था. लेकिन फारुख फैसला ले चुके थे. उन्होंने खुद को सिर्फ एक्टिंग के लए समर्पित करने का सोच लिया था. वे सिर्फ नाटकों में एक्टिंग करने लगे. छोटे-बड़े सारे रोल प्ले किए. कई जगह ऑडीशन दिए और देखते ही देखते अपने बॉलीवुड डेब्यू के दहलीज पर पहुंच गए. फारुख को फिल्म गर्म हवा में काम करने का मौका मिल गया. इस फिल्म का निर्देशन एम एस सैथ्यू ने किया था और उनकी तरफ से एक्टर के सामने एक शर्त भी रख दी गई थी. वो शर्त ये भी कि इस फिल्म के लिए फारुख शेख को कोई फीस नहीं मिलेगी.
बिना फीस के एक्टिंग करने का प्रस्ताव
अब बिना पैसे के कोई कलाकार अपनी एक्टिंग का प्रदर्शन करना चाहेगा? आज के जमाने में शायद कोई भी ऐसा करने से मना कर दे, लेकिन वो जमाना अलग था और फारुख भी दूसरों से जुदा थे. उन्होंने उस समय बिना एक पैसा लिए फिल्म में शानदार एक्टिंग कर दी. उनके काम से सभी इंप्रेस नजर आए और बॉलीवुड में उन्हें अच्छे रोल मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. शतरंज के खिलाड़ी, उमराव जान, बाजार, कथा, चश्म-ए-बद्दूर और क्लब 60 कुछ ऐसी ही फिल्में हैं जिन्हें उनके करियर का बेस्ट काम बताया जा सकता है. वैसे फारुख को उनकी पहली फिल्म के लिए 750 रुपये मिले थे.
टीवी की दुनिया में चला सिक्का
फारुख शेख ने कभी भी खुद को फिल्मों तक सीमित नहीं रखा. 90 के दौर में तो उनका फिल्मों में दिखने का सिलसिला काफी कम हो गया. ऐसे में उन्हें फिर लाइमलाइट में लाने का काम जीना इसी का नाम है ने किया था. ये एक ऐसा शो था जहां पर फारुख तमाम बड़े सितारों का इंटरव्यू लिया करते थे. ये शो काफी लंबे टाइम तक टीवी पर दर्शकों को एंटरटेन करता रहा था. एक्टर का साल 2013 में निधन हो गया था और उनकी आखिरी फिल्म 2014 में यंगिस्तान रिलीज हुई थी.
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