क्या AI की वजह से खतरे में है बॉलीवुड राइटर्स का भविष्य? जानें क्या कहती है स्क्रीनप्ले राइटर एसोसिएशन

AI टेक्नोलॉजी ने बॉलीवुड में अपना पैर पसारना शुरू कर दिया है. हॉलीवुड में जिस तरह से राइटर्स एसोसिएशन इसके विरोध में है, उसे देखते हुए भारतीय सिनेमा के राइटर्स भी सतर्क हो गए हैं. स्क्रीनप्ले राइटर्स एसोसिएशन(SWA) जल्द ही इस पर एक मीटिंग भी करने जा रही है.

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हॉलीवुड राइटर्स गिल्ड स्ट्राइक हॉलीवुड राइटर्स गिल्ड स्ट्राइक

नेहा वर्मा

  • मुंबई,
  • 14 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:34 AM IST

हॉलीवुड में इन दिनों AI के प्रयोग से वहां की राइटर्स एसोसिएशन और प्रोडक्शन स्टूडियोज के बीच का कॉन्फ्लिक्ट बढ़ता जा रहा है. AI ने इंडिया में भी दस्तक दे दी है. ऐसे में अब कई बॉलीवुड प्रोजेक्ट्स इसी तकनीक के इस्तेमाल से अपने काम को आसान करेंगे. हालांकि इंडियन राइटर्स अब भी इसी कंफ्यूजन में हैं कि इसके आने के बाद किस तरह से इंडस्ट्री में को-एक्जिस्ट कर काम किया जाएगा. स्क्रीनप्ले राइटर्स एसोसिशन (SWA) के मेंबर और संजू, डॉ जी जैसी फिल्मों के लिए अपनी राइटिंग कर चुके पुनीत शर्मा हमसे सारे पहलू पर बातचीत करते हैं. 

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क्या कहते हैं राइटर्स 
 बॉलीवुड इंडस्ट्री में AI के इफेक्ट पर अपना पक्ष रखते हुए पुनीत कहते हैं, हम हॉलीवुड के प्रोटेस्ट को लगातार फॉलो कर रहे हैं. बात सिर्फ इतनी नहीं है कि AI का इस्तेमाल हो रहा है. AI को लेकर एक सबसे बड़ा सवाल जो है, कि AI जो डाटा इस्तेमाल कर रही है, उसपर कोई कॉपीराइट क्लेम करने के लिए क्या सरकार ने कुछ कदम उठाया है? ये हमेशा से रहा है कि टेक्नॉलोजी तो आती है लेकिन गर्वनमेंट हमेशा उससे पीछे ही रहती है. उसके मॉरल इंप्लेक्ट इश्यूज क्या होंगे? ताकि लोगों के जो राइट्स (अधिकार) हैं, उसे सुरक्षित रखा जा सके. हमारी गर्वनमेंट इस टेक्नॉलोजी के आने के पहले एक लीगल फ्रेमवर्क तैयार कर रखें, ताकि जो खराब इंप्लीकेंशस हों, उससे बचाया जा सके. 

राइटर्स गवां रहें हैं नौकरी

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पुनीत आगे कहते हैं, देखिए AI जो स्क्रिप्ट लिखने के लिए डेटाबेस का इस्तेमाल करने वाली है, वो ह्यूमन डेटाबेस ही होना है. उस पर कॉपीराइट का कैसे इस्तेमाल होना है, उसे लेकर कोई क्लैरिटी नहीं है. जो हमारे लिए बहुत बड़े चैलेंज के रूप में आ सकती है. AI को लेकर जो मैंने डेवलपमेंट देखा है, उससे तो यह बता दूं कि जो राइटर्स के डेटाबेस में मिडियन लाइन के नीचे होगा, वो उससे ज्यादा इफेक्ट होगा. जो न्यूकमर हैं, उनका काम सबसे ज्यादा इफेक्ट होता है. दरअसल उनका काम बहुत स्पेशलाइज्ड नहीं होता है. वो बहुत लोगों की रोजी-रोटी है. मान लीजिए एक सीरियल जब बन रहा होता है, उनकी बकायदा पूरी राइटिंग टीम होती है. जिनमें से कुछ लोगों का काम महज नरेशन लेकर उसे लिखना, जैसे पीचिंग के लिए डॉक्यूमेंट्स बनता है, जो काफी हदतक टेक्निकल काम के तहत आता है. उन सब लोगों के काम का हिस्सा पूरी तरह से AI कर देगी. इसकी तो शुरुआत भी हो चुकी है. कुछ बड़े प्रोडक्शन हाउस स्टूडियोज में जो एक्जीक्यूटिव लोग हैं, वो अब AI के जरिए अपने ये काम पूरा करवा रहे हैं. 

हम तो बस प्रोटेस्ट ही कर सकते हैं 
पुनीत कहते हैं, केवल राइटिंग में ही नहीं बल्कि का इस्तेमाल हर फील्ड पर किया जा रहा है. आप देखें तो एडिटिंग, वीएफक्स. फिल्म मेकिंग के सारे प्रॉसेस धीरे-धीरे सेंट्रलाइज्ड होते जा रहे हैं. पावर का सेंट्रलाइजेशन यहां भी हो रहा है. एक बंदा अब पावर का इस्तेमाल कर बहुत सारी चीजें अपने कंट्रोल में कर सकता है. अगर वो सॉफ्टवेयर को खरीद सकने की पावर रखता है, तो उसे फ्यूचर में अपने राइटर्स और टेक्निशंस को इतना पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा. वो अब कुछ पर कंट्रोल कर सकता है. एक जमाने में जैसे ऑटोमिशन का दौर चला था, वो भी अब आर्ट के साथ हो रहा है. राइटर हमेशा से अघाती रहा है. सिर्फ राइटर्स ही नहीं और भी कई लोगों की जॉब खतरे में होंगी. देखो, इसमें जो जवाब आ सकता है, वो है हमारे गर्वनमेंट का लॉ ऐंड इनफोर्समेंट. हम जैसे लोग तो बस प्रोटेस्ट ही कर सकते हैं. 

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Co-exist के अलावा कोई चारा नहीं है
पुनीत बताते हैं, मैं मानता हूं कि टेक्नॉलोजी के एडवांसमेंट से बचा नहीं जा सकता है. दौर के साथ चीजें इनवॉल्व होती जाती हैं. जब टीवी भी आया था, तो हम यही मान बैठे थे न कि थिएटर अब खत्म हो जाएगा. हालांकि दोनों ने ही खूबसूरती से को-एक्जिस्ट किया है. लोगों को पता है कि बड़े परदे और कम्यूनिटी व्यूविंग का मजा है, वो केवल थिएटर से ही आ सकता है. वेब भी आया, तो लोगों को टीवी खत्म हो जाएगा. हालांकि दोनों ही प्लेटफॉर्म अपने टारगेट ऑडियंस को पूरा कर ही रहे हैं. AI के आने के बाद पर्सनलाइजेशन ऑफ एंटरटेनमेंट पर फर्क आना शुरू होगा. मान लो AI सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए उसमें एक सिचुएशन डालता हूं, जहां मेरा एक्सीडेंट हो गया है. एक्सीडेंट को लेकर जो भी डेटाबेस AI के पास है, वो उस हिसाब से स्क्रिप्ट तो तैयार कर देगा, लेकिन उसमें इमोशन और ह्यूमन टच चला जाएगा. हालांकि, मास ऑडियंस, जो सिनेमा को गहराई से नहीं देखता है, उससे कोई अंतर आने वाला नहीं है. अब रास्ता तो यही बचता है कि हम कैसे अपने हक के साथ एक नई तकनीक संग को-एक्जिस्ट करते हुए चलें. 

अब हर डायरेक्टर, राइटर की क्रिएटिविटी निखर कर सामने आएगी 

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अनीस बज्मी ने अपनी फिल्म प्यार तो होना ही था से बॉलीवुड इंडस्ट्री में वीएफएक्स को ऑफिसियल इंट्रोड्यूज किया था. वीएफएक्स के बढ़ते ट्रेंड और एआई के इनवॉल्वमेंट पर अनीस कहते हैं, मैं मानता हूं कि कोई भी टेक्नोलॉजी, जो फिल्म के एक्सपीरियंस को बढ़ाए और लार्जर दैन लाइफ कर दे, वो फैंटेसी देखना दर्शकों को भी पसंद होता है. हां, लेकिन इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए कि इतना ज्यादा भी स्पेशल इफेक्ट हो जाए, कि लोगों को फर्क स्क्रीन पर दिख जाए. असल वीएफएक्स का काम कामयाब तब माना जाता है कि लोग अंतर ही न ढूंढ पाए. भूल भुलैया में मेरे बहुत से शॉट्स वीएफएक्स से बढ़े हैं लेकिन फिल्म देखने के बाद आप बहुत कम जगहों पर वो डिफरेंस को पहचान पाएंगे. इस तरह की तरक्की तो होते रहेंगे, हर कुछ नया आता रहेगा, आप उसे रोक थोड़े न सकते हैं. हालांकि वो इनवेंशन जो हो, वो लोगों के अच्छे के लिए हो न कि उनके खिलाफ.जितनी भी नॉलेज आपने डाटा, कंप्यूटर पर फीड किए हैं, ये तो आपके ही एक्सपीरियंस का सार है. मैं पर्सनली मानता हूं कि सारे लोगों के पास जब चीजें मशीनी हो जाएंगी, तो इससे कौन कितना वैल्यू को जोड़ता है, उसका क्लासिफिकेशन हो जाएगा. क्योंकि सारी फिल्में एक जैसी दिखने लगेंगी, तो वहां पता लगेगा कि किस डायरेक्टर, राइटर का क्राफ्ट निखर कर सामने आएगा. 

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जिनके पास कहानियां हैं, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं हैं 

जाने माने राइटर अपूर्व असरानी इसपर अपने विचार रखते हुए कहते हैं, बहुत सारी फिल्मों को देख कर ऐसा लगता है कि वो वैसे ङी आर्टिफिसियल ही हैं. इंटेलिजेंस की अदद कमी खलती नजर आती है. अगर आपकी आवाज ओरिजनल है और आप अपनी लाइफ में से किरदार और किस्से खोज रहे हैं, तो आपको किसी AI से खतरा नहीं है. AI तो बाहर की दुनिया से कहानी चुराता है. आपकी अंदरूनी दुनिया में जो कहानियां किस्से बसे हुए हैं, वो तो आप ही के कलम से निकलेंगी. जिनके पास कहानियां हैं, उन्हें AI जैसी चीजों से घबराने की जरूरत नहीं है. 
 

 

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