'कोई ताकत हमें अपने घर जाने से नहीं रोक सकती', जब कश्मीरी पंडितों के हक में बोले अनुपम खेर

अनुपम खेर ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है. इस पुराने वीडियो को शेयर करते हुए अनुपम खेर ने बताया कि 1993 में कश्मीर में कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार के बाद दिल्ली में पीड़ितों की पहली गैदरिंग हुई थी. जहां एक्टर ने कश्मीरी पंडितों के हक में स्पीच दी थी. अनुपम खेर ने कहा कि उन्हें कश्मीरी पंडितों के हक में बोलते हुए 32 साल हो चुके हैं. जानें एक्टर ने क्या कहा.

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अनुपम खेर अनुपम खेर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 30 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST
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कश्मीरी पंडितों के दर्द को 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) फिल्म की वजह से देश-दुनिया को साझा करने में मेकर्स सफल हुए हैं. फिल्म में अनुपम खेर ने पुष्करनाथ पंडित का रोल अदा किया. इस रोल को उन्होंने जीवंत किया. कश्मीरी पंडितों के दर्द को स्क्रीन पर दिखाने में एक्टर इतने कामयाब इसलिए भी हुए क्योंकि वो खुद भी कश्मीरी पंडित हैं. कश्मीरी पंडितों के हक की लड़ाई वे कई सालों से लड़ रहे हैं. 

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अनुपम खेर का वीडियो वायरल
एक्टर ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है. जहां उन्होंने अपने कश्मीरी हिंदू भाई-बहनों के साथ उनका दुख बांटा. इस पुराने वीडियो को शेयर करते हुए अनुपम खेर ने बताया कि 1993 में कश्मीर में कश्मीरी हिंदुओं  के नरसंहार के बाद दिल्ली में पीड़ितों की पहली गैदरिंग हुई थी. जहां एक नामी चेहरा होने की वजह से अनुपम खेर को बुलाया गया था. वहां एक्टर ने कश्मीरी पंडितों के हक में स्पीच दी थी. अनुपम खेर ने कहा कि उन्हें कश्मीरी पंडितों के हक में बोलते हुए 32 साल हो चुके हैं. 

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कश्मीरी पंडितों के हमदर्द बने अनुपम खेर
वीडियो में अपनी स्पीच देते हुए अनुपम खेर पहले तो कश्मीरी भाषा में बात करते हैं. इसके बाद वे हिंदी में बोलते हुए कहते हैं- यहां आज मैं किसी फिल्म अभिनेता या किसी खास व्यक्ति की हैसियत से नहीं हूं. मैं एक भाई, बेटे और भतीजे की हैसियत से खड़ा हूं. उस भाई, बेटे या भतीजे की जिसके घरवालों को मजबूरन वो जगह छोड़ने पड़ी जहां वो बचपन से रहे. इन चेहरों की चमक में, इन चेहरों की छुर्रियों में, इन आंखों के सूनेपन में और इन मुस्कुराहटों की खुशियों में मेरा टैलेंट है.  मैं जो भी हूं इन सब चेहरों का मिश्रण हूं.

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''कभी कभी हैरानी होती है कि ये सब हो कैसे गया. दुख होता है. मेरे दादाजी का एक छोटा सा कमरा था नई सड़क पर,  जब भी मैं वहां छुट्टियों में जाता था सोचता था इस कमरे की जितनी भी किताबें हैं वो मैं दादाजी के बाद अपने साथ लेकर जाऊंगा. उन किताबों का कोई मोल नहीं था. बहुत अफसोस हुआ जब पता चला मेरे दादाजी के बाद मेरे घरवालों को वो छोड़कर एक टूटे फूटे ट्रक में डरे हुए एक शरणार्थी की तरह रहना पड़ा. जब हमारा अपना घर है तो हम तो अपने घर जाएंगे. कोई ताकत हमें अपने घर जाने से नहीं रोक सकती. क्योंकि अगर कोई शांतिप्रिय बिरादरी है तो इस बिरादरी से ज्यादा शांतिप्रिय कोई नहीं हो सकता. ''

अनुपम खेर के इस वीडियो को देख आपका क्या रिएक्शन है?

 

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