आखिर यूपी चुनाव में हर पार्टी के लिए ब्राह्मण क्यों हो गया है सबसे जरूरी, ये है जवाब

विपक्ष लगातार अजय मिश्रा के इस्तीफे की मांग कर रहा है लेकिन बीजेपी के लिए ये मुद्दा ना उगलते बन रहा है ना निगलते. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर जिस मंत्री के बेटे पर इतना बड़ा संगीन इल्जाम है उस पर बीजेपी कार्रवाई क्यों नहीं करती.

Advertisement
अखिलेश यादव ने की परशुराम की पूजा अखिलेश यादव ने की परशुराम की पूजा

aajtak.in

  • लखनऊ,
  • 03 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:41 PM IST
  • अखिलेश यादव ने भगवान परशुराम की पूजा की
  • यूपी चुनाव में ब्राह्मणों को रिझाने में जुटी हुई है राजनीतिक पार्टियां

लखीमपुरखीरी कांड में एसआईटी ने 5 हजार पन्ने की चार्जशीट दाखिल की है जिसमें कई बड़े खुलासे किए हैं. चार्जशीट में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को मुख्य आरोपी बनाया गया है. 

विपक्ष लगातार अजय मिश्रा के इस्तीफे की मांग कर रहा है लेकिन बीजेपी के लिए ये मुद्दा ना उगलते बन रहा है ना निगलते. लोग सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर जिस मंत्री के बेटे पर इतना बड़ा संगीन इल्जाम है उस पर बीजेपी कार्रवाई क्यों नहीं करती. इसका जवाब है यूपी में विधानसभा चुनाव. 

Advertisement

चुनाव को लेकर यूपी में जैसे-जैसे माहौल गरम हो रहा है ,ब्राह्मण कार्ड की गूंज ज्यादा सुनाई दे रही है. ब्राह्मण वोट के सहारे मायावती से लेकर अखिलेश यादव और प्रियंका से लेकर योगी भी हैं. यही वजह है कि बीजेपी इस वक्त ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती है जिससे पहले से ही नाराज चल रहा ब्राह्मण वोटर चुनाव में सिरदर्द बन जाए.

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि जो समाजवादी पार्टी पहले मंडल का झंडा लिए घूम रही थी उसने क्यों ब्राह्मण कार्ड खेला है. मायावती को फिर 15 साल बाद 2007 के करिश्मे की क्यों उम्मीद है. जिस पार्टी ने यूपी में सबसे ज्यादा ब्राह्मण सीएम दिए उस कांग्रेस ने ब्राह्मणों को लुभाने के लिए क्या दांव चला है.

ब्राह्मणों को रिझाने में क्यों जुटी हुई है पार्टियां

Advertisement

ब्राह्मणों को रिझाने के लिए समाजवादी पार्टी ने लखनऊ में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के करीब परशुराम की भव्य प्रतिमा बनवाई है. साथ ही कई ब्राह्मण चेहरों को अपनी पार्टी में अखिलेश यादव ने जगह भी दी है. ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि अखिलेश का हृदय अचानक परिवर्तन हो गया.

दरअसल यूपी की सियासत में भले ही ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 8 से 10 फीसदी वोट तक सिमटी हुई है, लेकिन ब्राह्मण समाज का प्रभाव इससे कहीं ज्यादा है और आंकड़े इसकी गवाही भी देते हैं. यूपी के करीब 60 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण निर्णायक भूमिका में हैं तो वहीं दर्जनभर जिले में इसकी आबादी 20 फीसदी भी ज्यादा है.

ब्राह्मण वोटरों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए बीजेपी भी जोर लगा रही है और इसकी वजह भी है. पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 में यूपी के 312 बीजेपी विधायकों में से 58 ब्राह्मण उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. योगी सरकार में जिन 56 चेहरों को मंत्री पद दिया गया था उनमें श्रीकांत शर्मा, ब्रजेश पाठक, दिनेश शर्मा और जितिन प्रसाद समेत 9 ब्राह्मण मंत्री बनाए गए.

इसके बावजूद बीजेपी से ब्राह्मण खफा हो गए हैं.  योगी सरकार पर लगातार ठाकुरवाद के आरोप लगे और कई मौके पर ब्राह्मणों की नाराजगी देखने को मिली जिसके बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली. प्रदेश के ब्राह्मण नेताओं और मंत्रियों के साथ मंथन किया. जेपी नड्डा ने फीडबैक लिया और एक कमेटी बनाकर ब्राह्मणों को बीजेपी के पाले में फिर से करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.  

Advertisement

समाजवादी पार्टी से लेकर बीजेपी और कांग्रेस से लेकर बीएसपी तक सभी दलों को जीत का मंत्र ब्राह्मण वोटरों में ही दिख रहा है. यही वजह है कि जगह-जगह पार्टियां ब्राह्मण सम्मलेन महीनों से कर रही है. कुछ दिन पहले मायावती शंख ,कृपाण ,गणेश की मूर्ति के साथ ब्राह्मण रैली में दिखी थीं 

मायावती को 2007 जैसा करिश्मा होने की उम्मीद

मायावती को 2007 का करिश्मा दुहराने का भरोसा है जब बीएसपी ने नारा दिया था -'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा', हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु महेश है. 15 साल पुराना ये नारा सबको याद है जिसने मायावती को यूपी की कुर्सी पर बैठा दिया था.

यूपी की सियासत के इसी तिलस्म को तोड़ने के लिए कांग्रेस भी हाथ पैर मार रही है. हालांकि कांग्रेस के राज में ज्यादातर मुख्यमंत्री ब्राह्मण समुदाय के बने लेकिन बीजेपी के उदय के साथ ही ब्राह्मण समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग हुआ जिसके बाद कांग्रेस को यूपी में कभी सत्ता नहीं मिली. लेकिन अब कांग्रेस भी यूपी विधानसभा में इस कार्ड को जमकर खेल रही है.

यूपी में ताश के पत्तों की तरह ब्राह्मण कार्ड को फेट दिया गया है लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि किसके हाथ में सत्ता का इक्का आता है और किसे दुग्गी से ही संतोष करना पड़ता है.

Advertisement

आजतक ब्यूरो

ये भी पढ़ें:


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement