यूपी चुनाव: संजय निषाद की प्रेशर पॉलिटिक्स! बीजेपी पर आरक्षण का वादा पूरा करने का दबाव

निषाद समाज की अहमियत को अच्छे से भांप चुकी बीजेपी इस समुदाय के वोटबैंक को किसी भी तरह अपने से दूर नहीं जाने देना चाहती. इस बात को संजय निषाद भी बखूबी समझ रहे हैं. इसीलिए संजय निषाद एक के बाद एक डिमांड बीजेपी के सामने रखते जा रहे हैं.

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स्वतंत्रदेव सिंह, धर्मेंद्र प्रधान, संजय निषाद स्वतंत्रदेव सिंह, धर्मेंद्र प्रधान, संजय निषाद

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 08 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:38 AM IST
  • बीजेपी पर दबाव बनाने में जुटे संजय निषाद
  • निषाद आरक्षण पर बीजेपी को अल्टीमेटम
  • यूपी की सियासत में निषाद वोटर अहम है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियां जोरो पर हैं. 2022 में जीत का परचम फहराने के लिए बीजेपी अपने सियासी समीकरणों को फिर से मजबूत करने में जुटी है. यूपी में लगातार तीन चुनाव में बीजेपी जाति आधारित छोटे दलों के साथ गठबंधन कर बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही थी और उसी सफलता को एक बार फिर से दोहराने के लिए अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ हाथ मिलाया है, लेकिन चुनावी रण में उतरने से पहले बीजेपी के सहयोगी अपनी मांगे मनवाने के लिए प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चल रहे हैं. 

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संजय निषाद की बीजेपी को चेतावनी

यूपी चुनाव से पहले निषाद समाज पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने रविवार को बड़ा बयान दिया है. संजय निषाद ने कहा कि उनके समुदाय के लोग तब तक वोट नहीं देंगे जब तक आरक्षण नहीं दिया जाता है. अब ये बीजेपी सरकार का कर्तव्य है कि वो अपना वादा पूरा करे. उन्होंने कहा कि 9 नवंबर से हम हर जिले में धरना प्रदर्शन करेंगे. बीजेपी ने वादा पूरा नहीं किया तो गठबंधन पर भी असर पड़ सकता है. 

संजय निषाद का यह बयान ऐसे समय आया है जब हाल ही में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने बीजेपी को झटका देकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ हाथ मिला लिया है. ऐसे बदलते सियासी माहौल में पूर्वांचल के इलाके में बीजेपी के लिए चुनौतियां खड़ी हो गई हैं, जिसे देखते हुए संजय निषाद ने बीजेपी पर प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी है. 

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एमएलसी के बाद आरक्षण की डिमांड

उत्तर प्रदेश की सियासत में निषाद समाज की अहमियत को अच्छे से भांप चुकी बीजेपी इस समुदाय के वोटबैंक को किसी भी तरह अपने से दूर नहीं जाने देना चाहती. इस बात को संजय निषाद भी बखूबी समझ रहे हैं. बीजेपी के जरिए पहले खुद को संजय निषाद ने राज्यपाल कोटे से विधान परिषद के लिए मनोनीत कराया और अब निषाद समाज के आरक्षण को लेकर बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. 

यूपी के चित्रकूट के राजापुर में संजय निषाद ने कहा कि निषाद पार्टी यूपी में बीजेपी के साथ जरूर है, लेकिन अगर समय से उन्हें आरक्षण नहीं दिया तो निषाद समाज भाजपा को वोट नहीं देगा. संजय निषाद ने आरक्षण के मुद्दे को लेकर आक्रमक रुख अपना लिया है. आरक्षण को लेकर निषाद पार्टी ने यूपी में एक रथ यात्रा निकाली थी. उन्होंने कहा था कि उनके समाज को जब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल जाता है तब तक वो इसके लिए लड़ाई लड़ते रहेंगे. 

मुकेश सहनी यूपी में आरक्षण पर सख्त

दरअसल, निषाद समाज के जरिए बिहार में सियासत करने वाले विकासशील इंसान पार्टी के संस्थापक व बिहार सरकार के मंत्री मुकेश सहनी यूपी में निषाद जातियों को एससी (अनुसूचित जाति) का आरक्षण की मांग को लेकर लगातार मोर्चा खोले हुए हैं. उन्होंने कहा है कि इस बार चुनाव में निषाद समाज अपनी ताकत दिखाएगा. बिना निषादों के किसी की नैया पार नहीं लगेगी. यूपी में उनकी पार्टी हर हाल में समाज को आरक्षण दिलाकर रहेगी. ऐसे में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद पर भी दबाव बढ़ गया है, जिसके चलते बीजेपी पर आरक्षण की मांग को लेकर तेवर दिखाना शुरू कर दिया है 

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यूपी की राजनीति में जाति आधारित पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण इस बार बनती जा रही हैं. ये जाति आधरित पार्टियां मुख्य तौर पर पिछड़ी जातियों की हैं. इन्हीं पिछड़ी जातियों में से एक प्रमुख जाति है, निषाद है. मछली मारने या जिनकी रोजी-रोटी नदियों-तालाबों पर निर्भर है, वैसी जातियां इसमें आती हैं. इसमें केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, मांझी, गोंड जैसी जातियां हैं. उत्तर प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटों पर इनकी अच्छी-खासी आबादी है. इसलिए निषाद समुदाय राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण बन गया है.

संजय निषाद ने पिछले दिनों कहा था कि यूपी की 52 विधानसभा सीटों पर निषाद पार्टी चुनाव लड़ेगी. बीजेपी के सामने संजय निषाद की सिर्फ 52 सीटों की मांग ही नहीं बल्कि आरक्षण की भी डिमांड कर रहे हैं. इसके अलावा मछुआरों को नदी-तालाब के पट्टे सहित कई मांगे रखी है, जिसे चुनाव से पहले बीजेपी से वो पूरा कराने चाहते हैं. हालांकि, बीजेपी संजय निषाद की डिमांड में से कितनी शर्तों को मानती है, यह देखने वाली बात होगा? 

निषाद वोटर की सियासी अहमियत

हालांकि, ओमप्रकाश राजभर की सियासी कमी की भरपाई के लिए बीजेपी संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ मिलकर 2022 के चुनाव लड़ने का फैसला किया है ताकि पूर्वांचल में सियासी समीकरण को मजबूत बनाया जा सके. ओम प्रकाश राजभर बलिया से हैं तो संजय निषाद गोरखपुर से हैं. इस तरह से दोनों ही पूर्वांचल और अतिपिछड़ी जाति से आते हैं. यही वजह है कि बीजेपी ने संजय निषाद को साथ लाकर अपना सियासी समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद की है, लेकिन संजय निषाद एक के बाद एक डिमांड पेश कर करते जा रहे हैं. 

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बीजेपी संजय निषाद के जरिए अति पिछड़ों में सर्वाधिक जनसंख्या वाले निषाद जाति संबंधित करीब 6-7 उपजातियों को साधने की कोशिश की है. राजभर समुदाय की तरह निषाद समुदाय का भी पूर्वांचल में अच्छा खासा वोट बैंक हैं. निषाद समुदाय के तहत निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, मांझी, गोंड आदि उप जातियां आती हैं. सूबे में 20 लोकसभा सीटें और तकरीबन 60 के करीब विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां निषाद वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. 

गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद ,फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर जिले में निषाद वोटरों की संख्या अधिक है. ऐसे में बीजेपी ने संजय निषाद को साथ मिलाकर राजभर समजा की नाराजगी से संभावित नुकसान से बचने के लिए की कवायद की है, लेकिन सूबे में निषाद समाज अलग-अलग खेमों में बटे हैं और सभी खेमों के अलग-अलग नेता हैं. वहीं, संजय निषाद भी अब सियासी तेवर दिखाने लगे हैं. 

 

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